मां वटवासिनी महाकाली गालापुर मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़

By Arun Kumar

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मां वटवासिनी महाकाली गालापुर मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़- Huge crowd of devotees in Maa Vatvasini Mahakali Galapur temple.

2000 वर्ष पूर्व स्थापित होने के साथ साथ,भक्तो की मुरादे होती हैं पूरी,

यूपी। सिद्धार्थनगर जिले के पश्चिमी छोर पर स्थित डुमरियागंज तहसील मुख्यालय से पांच किमी दूर इटवा मार्ग पर जाने पर चौखड़ा पहुंच कर वहां से चार किमी पूरब चल कर महाकाली स्थान गालापुर पहुंचा जा सकता है। स्थान तक सीधे दो पहिया चार पहिया वाहन के भी जाने का मार्ग है।

महाकाली का ये स्थान आबादी से तो दूर है लेकिन शांति से भरपूर है। स्थान के चारों तरफ काफी दूर तक कोई आबादी नहीं है। स्थान के नाम विशाल मदार का वट वृक्ष और उस पर लटकती लताएं। और हजारों छोटी बड़ी घंटी व मनौती के धागे। यही स्थान की पहचान है।स्थान तक पहुंचने के लिए बना विशाल द्वार स्थान तक पहुंचाता है। यहां आने पर श्रद्धालुओं के मन को मिलने वाली शांति उन्हें बार बार आने पर मजबूर कर देती है। मान्यता है कि यहां श्रद्धा से मांगी गई सभी मनौती महाकाली पूरी करती हैं।

दो हजार वर्ष पूर्व

मान्यता के अनुसार लगभग दो हजार वर्ष पूर्व कलहंस वंश के राजा केशरी ¨सह ने अपने राज पुरोहितों से कुल देवी महाकाली को लाने का आदेश दिया। पुराहितों ने गोण्डा के खोरहस जंगल में जाकर छह माह तक कठिन तपस्या की। तब जाकर काली मां प्रकट हुई और मांगने की अनुमति दी। तो पुराहितों ने अपनी बात बताते हुए साथ चलने का आग्रह किया। माँ ने कहा कि ठीक मै चलूगी, लेकिन एक शर्त है, जहां भी एक बार रख दोगे वही स्थापित हो जाऊगीं। और सामने मदार के पौधे का सिर पर रखने का आदेश देते हुए कहा कि मैं इसी में चल रही हूं। एक पुरोहित ने पौधे को सर पर रखा और सभी पुरोहित चल पड़े। जब सभी पंडित राज दरबार के पास पहुंचे तो राजा के कुछ चाटुकारों ने मजाक समझते हुए राजा से कहा कि ये मदार को सिर पर रख कर इसे महाकाली बता रहे हैं, राजा ने भी बिना विचार किए मदार को वही जमीन पर रख देने का आदेश दे दिया।

वट वृक्ष

पुरोहितों ने जैसे ही मदार भूमि पर रखा भयंकर गरजना के साथ जमीन फटी और मदार उसी में समा गया। और वट वृक्ष निकल आया जो आज भी मौजूद है। जिसे महाकाली स्थान गालापुर के नाम से जाना जाता है।

प्राकृतिक परिवेश में स्थित मां के दरबार में सबकी मनौती पूरी होती है, नवरात्र में पूरे देश के अलावा विदेश से भी भारी संख्या में भक्त आते है, मान्यता है कि प्रेम व विश्वास के साथ मांगी गई मनौती पूरी होती ही है।सोमवार और शुक्रवार को भी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जमा होती है।

निर्माणाधीन मंदिर

किसी चर्चित वास्तुकला के माध्यम से माँ वटवासिनी गालापुर महाकाली मंदिर का निर्माण नहीं हुआ है, स्थानीय श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होने के बाद उनके द्वारा क्षेत्रीय कारीगरों से प्रचलित वास्तुकला से वटवृक्ष के चारों ओर चबूतरे का निर्माण करवाया गया है। वट वृक्ष के सामने एक विशाल हवनकुंड बनाया गया है, जहां भक्तगण अपनी मनोकामना की पूर्ति हेतु हवन पूजन करते है। स्थान पर प्रवेश के लिए एक विशाल द्वार का निर्माण कराया गया है, जो स्थान की भव्यता को और बढ़ाता है।इसके अलावा भगवान शिव जी का भी मंदिर निर्माणाधीन है जल्द ही पूरा हो जाएगा।

माँ के दरबार में आने वाले सभी भक्तों के लिए एक समान व्यवस्था बनाई गई है, स्थान पर व्यवस्था से जुड़े सभी सदस्यों और दुकानदारों को सख्त निर्देश दिए गए है कि किसी भी श्रद्धालु को कोई परेशानी न होने पाए। मां के स्थान के साथ ही पूरे चबूतरे का प्रतिदिन साफ-सफाई कराई जाती है। – राजेश पाण्डेय / निखिल पाण्डेय पुजारी

मैं पहली बार यहां आया हूं मुझे काफी सुकून और शांत वातावरण मिला।इसके पहले लोगो से माता जी इस मंदिर की अद्भुत महिमा का गुणगान सुन चुका यहां पर अक्सर लोगो की मुरादे पूरी होती हैं। मेरा स्वयं का मानना है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई मुराद जरूर पूर्ण होती है। – सुशांत पाण्डेय , रूधौली बस्ती श्रद्धालु

Arun Kumar

Arun Kumar is a senior editor and writer at www.bhartiyasarokar.com. With over 4 years of experience, he is adept at crafting insightful articles on education, government schemes, employment opportunities and current affairs.

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