सुभद्राकुमारी चौहान जीवन परिचय :- राष्ट्रीय चेतना की अमर गायिका तथा वीर रस की एकमात्र कवयित्री श्रीमती सुभद्राकुमारी चौहान का जन्म सन् 1904 ई० में इलाहाबाद जिले के निहालपुर गाँव के एक सम्पन्न परिवार में हुआ था।
परिचय: एक दृष्टि में
नाम | सुभद्राकुमारी चौहान |
पिता का नाम | रामदास सिंह |
जन्म | सन् 1904 ई० |
जन्म स्थान | इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) |
शिक्षा | क्रॉस्थवेट गर्ल्स कॉलेज की छात्रा, देश सेवा में लग जाने के कारण शिक्षा अधूरी |
भाषा-शैली | भाषा-साहित्यिक खड़ीबोली। शैली–ओजयुक्त व्यावहारिक । |
प्रमुख रचनाएँ | सीधे-सादे चित्र, बिखरे मोती उन्मादिनी, मुकुल और त्रिधारा |
निधन | सन् 1984 ई० |
साहित्य में स्थान | वीर रस के अतिरिक्त नारी हृदय की भावनाओं का सफल प्रतिनिधित्व करनेवाली कवयित्री के रूप में श्रेष्ठ स्थान |
इनके पिता श्री रामदास सिंह अत्यन्त भावुक और उदार प्रवृत्ति के थे। सुभद्राजी इलाहाबाद के क्रॉस्थवेट गर्ल्स कॉलेज की छात्रा थीं। इनका विवाह 15 वर्ष की आयु में खण्डवा (म०प्र०) निवासी ठाकुर लक्ष्मणसिंह चौहान के साथ हुआ था।सुभद्राकुमारी चौहान के जीवन में विवाह के पश्चात् एक नया मोड़ आया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से प्रभावित होकर इन्होंने अपनी पढ़ाई-लिखाई बीच में ही छोड़ दी और देश सेवा के लिए तत्पर हो गई तथा राष्ट्रीय कार्यों में सक्रियता से भाग लेने लगीं। गांधीजी से प्रभावित होकर राष्ट्र-प्रेम से सम्बन्धित कविताएँ लिखने लगी।
राष्ट्र प्रेम की इस ललक के कारण इन्हें अनेक बार जेल भी जाना पड़ा। साहित्यिक तथा राजनैतिक कार्यों में सुभद्राजी को पं० माखनलाल चतुर्वेदी से विशेष प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। सन् 1948 ई० में एक मोटर दुर्घटना में इनका निधन हो गया।
साहित्यिक परिचय
सुभद्राकुमारी चौहान ने भूषण और चन्दबरदाई जैसे कवियों से ओज, शौर्य, देश भक्ति ग्रहणकर ऐसी काव्यधारा का निर्माण किया जो युग-युग तक हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर के रूप में सुरक्षित रहेगी। हिन्दी-साहित्य में देशभक्ति, वात्सल्य और प्रेम-भावना की त्रिवेणी बहानेवाली सुभद्राजी अपनी सरलता, सुबोधता और सोद्देश्य काव्य-रचना के लिए वास्तव में ‘स्मरणीय कवयित्री’ हैं।
कृतियाँ:
काव्य-संग्रह- ‘मुकुल’ और ‘त्रिधारा’) कहानी संग्रह- ‘सीधे-सादे चित्र’, ‘बिखरे मोती’ और – ‘उन्मादिनी’। ‘मुकुल’ काव्य-संग्रह पर इन्हें सेकसरिया पुरस्कार प्रदान किया गया।
भाषा-शैली : भाषा-सुभद्राजी की भाषा साहित्यिक खड़ीबोली है। भाषा में संस्कृत, फारसी के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है, परन्तु इनके प्रयोग से भाषा-सौन्दर्य को किसी भी प्रकार की क्षति नहीं पहुँची है। इस प्रकार इनकी भाषा सरल, सुबोध और व्यावहारिक है तथा इसमें यथास्थान मुहावरों का प्रयोग होने से उसकी सजीवता बढ़ गई है।
शैली-सुभद्राजी की शैली लयपूर्ण है, इसमें कहीं भी कृत्रिमता या अस्वाभाविकता के दर्शन नहीं होते हैं। इनकी शैली को कोई विशेष नाम तो नहीं दिया जा सकता है, परन्तु सरल और सुबोध होने के कारण इसे औजयुक्त व्यावहारिक शैली कहा जा सकता है। इसमें प्रवाह, माधुर्य, ओज, प्रसाद आदि गुण विद्यमान हैं। इन्होंने काव्य में सरलतम छन्दों का प्रयोग किया है, उन्हीं के द्वारा अपने सरल भावों को व्यक्त किया है। यही कारण है कि इनकी शैली सुबोध, सरल तथा सुन्दर बन पड़ी है। इन्होंने छन्दों के प्रयोग में सहनशीलता से काम लिया है।
हिन्दी-साहित्य में स्थान– सुभद्राकुमारी चौहान की राष्ट्रीय कविताओं में तड़प और ओज है। वह इस लोक की कवयित्री थीं, इनकी कविताओं में नारी-हृदय का सफल प्रतिनिधित्व मिलता है। इनका काव्य हिन्दी-साहित्य-जगत् की अमूल्य निधि है।
निष्कर्ष
भारतीय सरकार की इस पोस्ट में आपका स्वागत है हम इस पोस्ट के माध्यम से सुभद्राकुमारी चौहान से संबंधित यूपी बोर्ड परीक्षा में लगातार पूछे जा रहे हैं टॉपिक के बारे में पूरी जानकारी दे चुका हूं।
FAQ
Q.सुभद्रा कुमारी चौहान की लिखी कविता कौन कौन सी है?
A. सीधे-सादे चित्र, बिखरे मोती उन्मादिनी, मुकुल और त्रिधारा
Q. सुभद्रा कुमारी चौहान के काव्य का मूल स्वर क्या है स्पष्ट कीजिए?
A.हमें नहीं, इस भू-मंडल को, माँ पर बलि – बलि जाने दो ।” सुभद्रा कुमारी चौहान की कविताओं का मूल स्वर राष्ट्रीय है और उनमें राष्ट्रीयता के सम्पोषक तथा स्वातंत्र्य चेतना जगाने में समस्त उपादानों का प्रयोग किया ।