पारसन्स का जीवन परिचय, सिद्धांत एवं महत्वपूर्ण लेख

पारसन्स का जीवन परिचय: टालकॉट पारसन्स (Talcolt Parsons 1902-1979) एक शास्त्रीय परम्परा के अमेरिकी समाजशास्त्री थे, जिन्हें सामाजिक क्रिया सिद्धान्त, संरचनात्मक, कार्यात्मक, प्रकार्यवाद के विचार के लिए जाना जाता है। इन्होंने सामाजिक क्रिया को सिद्धान्त का आधार माना तथा सामाजिक संरचना को एक क्रमबद्धता के रूप में रखा।

नामटालकॉट पारसन्स
जीवन काल 1902-1979
स्थान अमेरिकी समाजशास्त्री
रचनाद सोशल सिस्टम , सिस्टम ऑफ मॉडर्न सोसाइटिज, अमेरिकन सोसाइटी : ए थ्योरी ऑफ द सोशियल कम्युनिटी, इकोनोमी एण्ड सोसाइटी,
फैमिली, सोशिलाइजेशन एण्ड इण्टरेक्शन प्रोसेज,
द स्ट्रक्चर ऑफ सोशल एक्शन

पारसन्स का प्रकार्यवाद (Functionalism of Parsons)

प्रकार्यात्मक परिप्रेक्ष्य के साथ अमेरिकी समाजशास्त्री टालकॉट पारसन्स का नाम विशेष रूप से जुड़ा है। दुखींम की तरह पारसन्स भी अपना विश्लेषण इस प्रश्न से प्रारम्भ करते हैं कि सामाजिक व्यवस्था किस प्रकार बनी रहती है। उसका कहना है कि सामाजिक जीवन का लक्षण पारस्परिक लाभ एवं शान्तिपूर्ण सहयोग है न कि पारस्परिक शत्रुता एवं विनाश। जहाँ दुखींम नैतिक प्रतिबद्धता व सामाजिक नियमों पर अधिक बल देते हैं।

पारसन्स दुखम के विचारों से सहमत लगते हैं। उनके अनुसार हॉब्स का विश्लेषण सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने का उचित स्पष्टीकरण नहीं करता। पारसन्स का विश्वास था कि केवल सामान्य मूल्यों के प्रति वचनबद्धता समाज में व्यवस्था का आधार है।

पारसन्स के प्रकार्यवादी परिप्रेक्ष्य को निम्न रूपों में स्पष्ट किया जा सकता है

  • पारसन्स ने व्यापारिक सौदे के उदाहरण द्वारा अपने विचारों का स्पष्टीकरण किया है। उनका कहना है कि व्यापारिक अनुबन्ध कुछ नियामक या आदर्शात्मक नियमों की व्यवस्था के आधार पर होता है। पारसन्स के अनुसार नैतिक वचनबद्धता दोनों पक्षों को उन नियमों को मानने के लिए बाध्य करती है।
  • पारसन्स ने मूल्य-मतैक्य पर अधिक बल दिया है। उनके अनुसार समाजशास्त्र का मुख्य उद्देश्य किसी सामाजिक व्यवस्था में मूल्यों के प्रतिमानों के संस्थाकरण की व्याख्या करना है। जब मूल्यों का संस्थाकरण हो जाता है और उनके अनुकूल व्यवहार संरक्षित हो जाता है, तो इसका परिणाम स्थायी व्यवस्था होती है। इस प्रकार सामाजिक सन्तुलन दो प्रकार से समाजीकरण द्वारा व सामाजिक नियन्त्रण द्वारा बनाए रखा जा सकता है।
  • पारसन्स ने समाज को एक व्यवस्था माना है और सामाजिक व्यवस्था के संरचनात्मक व प्रकार्यात्मक पहलुओं का बड़ा सटीक विश्लेषण किया है।
  • सामाजिक व्यवस्था व्यक्तिगत कर्ताओं की बहुलता है और उनकी क्रियाएँ एवं अन्तःक्रियाएँ अर्थपूर्ण एवं उद्देश्यपूर्ण होती हैं।
  • सामाजिक व्यवस्था की मूलभूत इकाइयाँ-कर्ता, उनकी प्रक्रियाएँ, स्थिति, भूमिका एवं समूह हैं।

पारसन्स के अनुसार प्रकार्यात्मक समस्याएँ

पारसन्स के अनुसार, सामाजिक व्यवस्था को अपनी संरचना में स्थायित्व बनाए रखने तथा अपने अस्तित्व की रक्षा करने के लिए निम्नलिखित चार प्रकार की प्रकार्यात्मक समस्याओं को सुलझाना पड़ता है

1. अनुकूलन कोई भी व्यवस्था शून्य में स्थित नहीं होती, बल्कि किसी पर्यावरण में स्थित एवं कार्यरत होती है। इसको भी पारसन्स ने दो भागों| भौतिक या भौगोलिक पर्यावरण तथा सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण में बाँटा है।

2. लक्ष्य प्राप्ति सामाजिक व्यवस्था की दूसरी प्रमुख प्रकार्यात्मक आवश्यकता सदस्यों की मूलभूत आवश्यकताओं अर्थात् लक्ष्य की पूर्ति से सम्बन्धित है।

3. एकीकरण व्यवस्था में एकीकरण तथा समन्वय जरूरी है। इस सामाजिक व्यवस्था का निर्माण परस्पर सम्बन्धित एवं अन्तःक्रियारत इकाइयों द्वारा होता है। सामाजिक व्यवस्था एकीकरण की समस्या का समाधान अनेक सकारात्मक एवं नकारात्मक नियमों के विकास के द्वारा करती है। जिनमें विभिन्न अंगों, उप-समूहों एवं उप-संरचनाओं में तालमेल एवं समाकलन के द्वारा व्यवस्था में स्थायित्व बना रहता है।

4. प्रतिमानात्मक स्थायित्व तथा तनाव नियन्त्रण सामाजिक व्यवस्था की चौथी आवश्यकता व्यवस्था के विभिन्न अंगों के पारस्परिक सम्बन्धों या प्रतिमानों को बनाए रखने और समय-समय पर इनमें जो तनाव उत्पन्न होता है, इसे कम करने से सम्बन्धित है। भूमिकाओं एवं सम्बन्धों के संस्थाकरण द्वारा विभिन्न अंगों में प्रकार्यात्मक एकता बनाए रखी जा सकती है।

सामाजिक व्यवस्था की चारों प्रकार्यात्मक आवश्यकताओं में संघर्ष, मानव की अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त करने की प्रवृत्ति, वस्तुओं की न्यूनतम उपलब्धता तथा सीमित एवं विरोधी इच्छाओं की अनुकूलनात्मकता मानव प्रकृति के कारण होती है। प्रत्येक व्यवस्था के लिए इस संघर्ष को नियमित करना अनिवार्य है।

पारसन्स का प्रकार्यवाद का आलोचनात्मक विश्लेषण

पारसन्स के प्रकार्यात्मक परिप्रेक्ष्य की अनेक आधारों पर आलोचना की जाती है। समाज को व्यवस्था मानकर या किसी इकाई को व्यवस्था मानकर उसके प्रकार्यात्मक पक्षों की विवेचना करने में आपत्तियाँ उठाई गई हैं।

पहला, प्रकार्यात्मक परिप्रेक्ष्य इस मान्यता पर आधारित है कि समाज की उत्पत्ति कुछ प्रकार्यात्मक आवश्यकताओं के कारण हुई है।

दूसरा, प्रकार्य शब्द के प्रति भी आपत्ति उठाई जाती है।

तीसरा, समाज की उप-कल्पनाओं की कल्पना एवं उनके आदान-प्रदान वाली अन्तः क्रिया की कल्पना तो सरल है, किन्तु आनुभविक रूप से उन अन्तःक्रियाओं की ठोस माप करना बहुत कठिन है और

चौथा, समाज का प्रकार्यात्मक विश्लेषण समाज में क्रमबद्धता और स्थायित्व को नष्ट करने में सक्षम है, लेकिन परिवर्तन की प्रक्रियाओं को स्पष्ट करने में इतना सशक्त नहीं है, परन्तु फिर भी उनका दृष्टिकोण दूसरों की अपेक्षा ठीक है। वास्तव, में समाज को एक व्यवस्था के रूप में मानना और इसके प्रकार्यवादी पक्षों का विश्लेषण करना समाज के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए विभिन्न उपागमों से एक उपागम है।

टालकॉट पारसन्स की प्रमुख पुस्तकें

  • द सोशल सिस्टम
  • सिस्टम ऑफ मॉडर्न सोसाइटिज
  • अमेरिकन सोसाइटी : ए थ्योरी ऑफ द सोशियल कम्युनिटी
  • इकोनोमी एण्ड सोसाइटी
  • फैमिली, सोशिलाइजेशन एण्ड इण्टरेक्शन प्रोसेज
  • द स्ट्रक्चर ऑफ सोशल एक्शन

निष्कर्ष

भारतीय सरोकार में आपका स्वागत है। इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको इस लेख के माध्यम से टालकॉट पारसन्स (Talcott Parsons) जीवन चरित्र, सिद्धांत एवं लेख संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी इस पोस्ट के माध्यम से आप तक भारतीय सरोकार के माध्यम से पहुंचा दी गई।

Q. पार्सन्स के सिद्धांत का क्या नाम है?

A. पार्सन्स के मत में वही सामाजिक सिद्धांत प्रत्यक्षवादी होता है

Q. पार्सन्स का प्रकार्यवाद क्या है?

A. सामाजिक प्रणाली का अस्तित्व बनाए रखने में संस्थाओं एवं प्रक्रियाओं के योगदान को पार्सन्स ने प्रकार्यात्मक माना है ।

Q. प्रकार्यवाद का जनक कौन है?

A. विलियम जेम्स (1842-1910) द्वारा प्रकार्यवाद की स्थापना अमेरिका के हारवर्ड विश्वविद्यालय में की गयी थी।

Q. टैल्कॉट पार्सन्स ने क्या किया?

A. टैल्कॉट पार्सन्स (13 दिसंबर, 1902 – 8 मई, 1979) शास्त्रीय परंपरा के एक अमेरिकी समाजशास्त्री थे,

Q. प्रकार्यवाद के चार मुख्य उद्देश्य क्या हैं?

A. समाज की योजना बनाना और निर्देशन करना, सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करना, कानून और व्यवस्था बनाए रखना और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का प्रबंधन करना।

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