राजनीतिशास्त्र क्या है? इसके सिद्धांत महत्व एवं स्वरूप..

By Arun Kumar

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राजनीतिशास्त्र (Politics)

परम्परागत राजनीति विज्ञानशास्त्र में राजनीति विज्ञान को राज्य सरकार या राज्य और सरकार दोनों के अध्ययन के रूप में परिभाषित किया जाता है। जैसे-गार्नर का कथन है कि राजनीति विज्ञान का प्रारम्भ और अन्त राज्य से होता है।

परम्परागत राजनीति विज्ञान दृष्टिकोण की निम्न विशेषताएँ हैं

  • इसमें आदर्शात्मक शासन स्थापित करने पर बल दिया गया है।
  • इसकी अध्ययन पद्धति कल्पनात्मक या ऐतिहासिक है।
  • इसके अध्ययन की इकाई राज्य है।
  • इसमें तुलनात्मक अध्ययनों पर बल दिया जाता है।
  • यह कानूनी, औपचारिक और संस्थागत अध्ययन पर बल देता है।
  • परम्परागत राजनीति सिद्धान्त नीतिविज्ञान से सम्बद्ध रहा है।
  • इसके प्रमुख कार्य हैं-समालोचना तथा पुनर्निर्माण।

परम्परागत राजनीतिक सिद्धान्त की दो धाराएँ हैं-प्रथम, जो राजनीतिक सिद्धान्त को राजनीतिक दर्शन के रूप में व्यक्त करती है। दूसरी धारा, जो राजनीतिक सिद्धान्त को इतिहास के रूप में चित्रित करती है।

यूनेस्को के तत्वावधान में हुए सम्मेलन के अनुसार राजनीति विज्ञान के क्षेत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित विषय समझे जाने चाहिए

  • राजनीतिक सिद्धान्त और राजनीतिक विचारों का इतिहास
  • संविधान और सरकार
  • तुलनात्मक राजनीतिक संस्थाएँ
  • दल, समूह एवं जनमत
  • अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति, अन्तर्राष्ट्रीय संगठन एवं प्रशासन व अन्तर्राष्ट्रीय कानून।

परम्परागत राजनीति विज्ञान की कमी है। इसमें वैज्ञानिकता व राजनीतिक प्रक्रिया की उपेक्षा की है, फिर भी राजनीति विज्ञान के विकास में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।

आधुनिक दृष्टिकोण

आधुनिक समय में राजनीतिशास्त्र के नवीन दृष्टिकोण का उद्भव एवं विकास हुआ है, इसके अन्तर्गत शक्ति, सत्ता, मानवीय व्यवहार और राजनीतिक व्यवस्था जैसे तत्त्वों के अध्ययन पर बल दिया गया। इन अवधारणाओं के कारण इस विषय का स्वरूप अधिक क्रमबद्ध, व्यवस्थित और वैज्ञानिक बन गया है।

परम्परागत राजनीति विज्ञान व आधुनिक राजनीति विज्ञान के दृष्टिकोण में निम्नलिखित अन्तर है

  • 1. परम्परागत राजनीति विज्ञान, राजनीति विज्ञान को राज्य और सरकार के रूप में परिभाषित करता है तो आधुनिक राजनीति विज्ञान, राजनीति विज्ञान को मानव व्यवहार के अध्ययन के रूप में परिभाषित करता है।
  • 2. परम्परागत राजनीति विज्ञान के अध्ययन की इकाई राज्य है, वहीं आधुनिक राजनीति विज्ञान के अध्ययन की इकाई व्यक्ति है और यह राजनीति व्यवस्था के अध्ययन पर बल देता है।
  • 3. परम्परागत राजनीति विज्ञान वस्तुपरक है, किन्तु आधुनिक राजनीति विज्ञान विषयपरक है।
  • 4. परम्परागत राजनीति विज्ञान में जहाँ मूल्यों के अध्ययन पर बल दिया जाता है, वहीं आधुनिक राजनीति विज्ञान में तथ्यों के अध्ययन पर बल दिया। जाता है।
  • 5.परम्परागत राजनीति विज्ञान की पद्धति निगमनात्मक है, वहीं आधुनिक राजनीति विज्ञान की पद्धति आगमनात्मक है।
  • 6.परम्परागत राजनीति विज्ञान में राज्य सरकार, दल जनमत आदि का अध्ययन किया जाता है, वहीं आधुनिक राजनीति विज्ञान में मानवीय प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।

राजनीतिक सिद्धान्त

राजनीतिक सिद्धान्त ज्ञान की वह शाखा है, जो राजनीति विज्ञान के अध्ययन का सामान्य ढाँचा प्रस्तुत करती है। राजनीतिक सिद्धान्त के अध्ययन के दो प्रमुख उपागम परम्परागत उपागम एवं आनुभवकीय उपागम हैं।राजनीतिक सिद्धान्त के अध्ययन का सान्दर्भिक दृष्टिकोण परम्परागत उपागम के क्षेत्र में आता है। वस्तुतः सान्दर्भिक दृष्टिकोण ऐतिहासिक उपागम के प्रमुख प्रवक्ता जे. एच. सेबाइन से प्रभावित है। सेबाइन का मत है कि राजनीतिक घटनाओं का अध्ययन समय, परिस्थिति और सन्दर्भ को ध्यान में रखकर करना चाहिए। प्रस्तुतः सेबाइन का तर्क है कि विभिन्न राजनीतिक विचार और सिद्धान्तों का अध्ययन इन तीनों के आधार पर भली-भाँति रूप से किया जा सकता है। उदाहरणार्थ हमें लोकतन्त्र का अध्ययन करना है, तो उसके लिए इंग्लैण्ड की गौरवपूर्ण क्रान्ति और लॉक के विचारों का सन्दर्भआवश्यक है।सेबाइन के विचारों को आगे चलकर बटलर, स्टोकर और मार्स ने आगे बढ़ाया। इन्होंने भी विभिन्न राजनीतिक सिद्धान्तों और घटनाओं का अध्ययन ‘सन्दर्भ’ का आधार बनाकर किया।

सान्दर्भिक दृष्टिकोण का इन कमियों के बावजूद राजनीतिक सिद्धान्त के अध्ययन में विशेष महत्त्व है, इससे एक तो राजनीतिक घटना की ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती है, दूसरी ओर इससे दो संस्थाओं का या घटनाओं का तुलनात्मक अध्ययन भी सम्भव है।

राजनीतिक सिद्धान्त के हास

डेविड ईस्टन अपनी पुस्तक ‘द पॉलिटिकल सिस्टम’ में राजनीतिक सिद्धान्त के ह्रास के पक्ष में निम्न तक देते हैं

• परम्परागत राजनीतिक सिद्धान्त पुराने ऐतिहासिक मूल्यों पर बल देता है, जिनकी वर्तमान में कोई प्रासंगिकता नहीं है।

• परम्परागत राजनीतिक सिद्धान्तवेत्ता तथ्यों व वैज्ञानिकता पर बल देते हैं।

• परम्परागत राजनीतिक सिद्धान्त में सिद्धान्त निर्माण का प्रयास नहीं किया जाता है।

अल्फ्रेड काबा अपनी पुस्तक The Decline of Political Theory में लिखतेहैं कि लोकतान्त्रिक निष्क्रियता और शक्तिवादी दृष्टिकोण ने परम्परागत राजनीति सिद्धान्त का ह्रास कर दिया। इसी प्रकार सीमोर लिप्सेट भी परम्परागत राजनीतिक सिद्धान्त के हास की बात करते हैं, परन्तु इस्की और लियो स्ट्रॉस जैसे विद्वान् ‘What is Political Phiolosophy? में लिखते हैं कि परम्परागत राजनीतिक सिद्धान्त या राजनीतिक दर्शन का महत्त्व आज भी बना है, आधुनिक राजनीतिक सिद्धान्त (अनुभववाद) की यह विजय गटर की विजय है। इसी प्रकार डाटे जर्मिनी, बर्लिन, हरबर्ट मार्क्यूजे आदि विद्वान् भी वर्तमान में परम्परागत राजनीतिक सिद्धान्त (राजनीतिक दर्शन) के महत्त्व को स्वीकारते हैं।

पम्परागत राजनीतिक सिद्धान्त (राजनीतिक दर्शन) और आधुनिक राजनीतिक सिद्धान्त (राजनीति विज्ञान) – दोनों राजनीतिक सिद्धान्त के महत्त्वपूर्ण भाग हैं। अतः मूल्य और तथ्य दोनों का समन्वय ही राजनीतिक सिद्धान्त का आधार है।

राजनीति विज्ञान या शास्त्र के स्वरूप

विज्ञान के रूप में

राजनीति विज्ञान शास्त्र के स्वरूप के बारे में निम्न विचार हैं

  • • राजनीति विज्ञान एक प्रकार का क्रमिक ‘विज्ञान’ है-लेविस, सिजविक, ब्राइस जैसे विचारक इस मत का समर्थन करते हैं। इसके पक्ष में निम्न तर्क देते हैं
  • – राजनीति विज्ञान एक क्रमबद्ध ज्ञान है, जो निरीक्षण, प्रयोग वर्गीकरण आदि पर बल देता है।
  • – राजनीति विज्ञान मानव व्यवहार के अध्ययन पर बल देता है।
  • – यह कार्य-कारण के सम्बन्ध पर बल देता है।
  • – इसमें प्रत्यक्ष अनुसन्धान पर बल दिया जाता है।
  • – इसमें सिद्धान्त निर्माण पर बल दिया जाता है।
  • – इसमें भविष्यवाणी करने की क्षमता है।

विज्ञान न मानने के रूप में

• राजनीति विज्ञान वास्तविक अर्थ में ‘विज्ञान’ नहीं है-मैटलैण्ड, बकल आदि विद्वान इसका समर्थन करते हैं। इसके पक्ष में निम्न तर्क देते हैं-

  • – इसमें सिद्धान्त की एकरूपता नहीं पाई जाती है।
  • – इसमें विज्ञान की भाँति कार्य-कारण सम्बन्ध नहीं पाया जाता है।
  • – इसमे पूर्ण वैज्ञानिकता सम्भव नहीं है।
  • – इसमें विज्ञान की भाँति भविष्यवाणी सम्भव नहीं।
  • – मानव व्यवहार परिवर्तनशील है, इसके बारे में वैज्ञानिक अध्ययन सम्भव नहीं।

राजनीति विज्ञान एक कला के रूप में

इसके समर्थक विद्वानों में बकल, ब्लंटशली गेटेल फ्रेडरिक, पोलाक आदि हैं। कला से तात्पर्य ऐसे ज्ञान से है, जिसका लक्ष्य मानव जीवन को सुन्दर बनाना है। इस दृष्टि से राजनीति विज्ञान सच्चे अर्थों में कला है। यह एक आदर्श नागरिक का निर्माण करता है। इसमें नागरिकता, स्वतन्त्रता, समानता, अधिकार और कर्त्तव्य, कानून, प्रतिनिधित्व, निर्वाचन और मताधिकार जैसे व्यावहारिक तथ्यों का विश्लेषण किया जाता है, जो आदर्श नागरिक जीवन के लिए अनिवार्य माने जाते हैं। अतः यह एक विकसित कला है।

FAQ

Q.राजनीति के जनक कहा जाता है।

A. अरस्तु को राजनीति का जनक कहा जाता है।

Arun Kumar

Arun Kumar is a senior editor and writer at www.bhartiyasarokar.com. With over 4 years of experience, he is adept at crafting insightful articles on education, government schemes, employment opportunities and current affairs.

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