ग्रामीण नेताओं के प्रकार
भारतीय गाँव के नेताओं को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
परम्परागत अथवा कार्यात्मक नेता, व्यावसायिक नेता और समूह नेता।
परम्परागत नेताओं को उनके द्वारा सम्पादित कार्यों के आधार पर विभिन्न वर्गों में विभक्त किया गया। यह विभाजन जन्म और केवल जन्म पर आधारित था। इसके अनुसार ज्ञान के क्षेत्र का नेतृत्व ब्राह्मण जनों के हाथ में था। क्षत्रियों को देश की रक्षा का भार सौंपा गया था, व्यापार तथा कृषि के क्षेत्र में वैश्यजन नेता थे। निम्न जातियों में जाति-पंचायतों के माध्यम से नेतृत्व होता था।
गाँवो में कार्यात्मक नेताओं के अतिरिक्त गाँव पंचायतो के नेता भी थे जो अधिकांशतः ऊंची जातियों के थे। औद्योगीकरण तथा तीव्र संचार के साधनों के कारण कार्यगत आधार वाले नेतृत्व में कमी आई। ज्ञान क्षेत्र में अब ब्राह्मणों के हो अधिकार नहीं रहे और न देश की रक्षा का भार क्षत्रियों के हाथ में रहा और न वैश्यों के हाथ में व्यापार और कृषि का एकाधिकार ही शेष रह गया। गाँव में उच्च जातियों का प्रभुत्व बना रहा है, क्योंकि इन लोगों ने औद्योगीकरण और व्यवसाय के संसाधनों द्वारा अपनी आर्थिक, सामाजिक स्थिति मजबूत कर ली। इन्हें ही व्यावसायिक नेता कहा गया है।
समूह नेता वे होते हैं जो समाज की आवश्यकतानुसार किसी एक विशिष्ट समूह का नेतृत्व करते हैं। जहाँ तक वर्तमान आवश्यकता का प्रश्न है, हमे ग्राम पंचायतों, सहकारी समितियों के नेताओं, प्रसार नेताओं (उत्तम कृषक), औद्योगिक नेताओं, युवक नेताओं, महिला नेताओं, समाज सुधारकों और खेल-कूद नेताओं की नितान्त जरूरत है। जिनका वर्तमान में सर्वथा अभाव है। प्रचलित व्यवस्था में जातिगत नेता,
धार्मिक नेता, राजनैतिक नेता और सांस्कृतिक (भजन, कीर्तन, खेल-कूद व ड्रामा से सम्बन्ध रखने वाले) नेता ही उपलब्ध हैं। हमारा अभिप्राय वर्तमान संरचना में नेताओं के महत्त्व को कम करने का नहीं है, किन्तु यदि हम जाति, धर्म अथवा लिग सम्बन्धी भेदों से मुक्त एक जनतान्त्रिक संरचना गाँव में उत्पन्न करना और अपने ग्राम वासियों के रहन-सहन के स्तर को वास्तव में उठाना चाहते हैं, तो हमें इस नवीन व्यवस्था में उत्तम नेताओं की आवश्यकता होगी।
वर्तमान में सभी नेताओं की दशा में सुधार करना होगा और जीवन सम्बन्धी उनके दृष्टिकोण को अधिक व्यापक बनाना होगा। यह स्मरण रखना अनिवार्य है कि हमें वर्तमान संरचना से ही कार्य प्रारम्भ करना है, इसलिए उसे नष्ट न करके उसमें ही संशोधन करने होंगे।
अब तक नेताओं का चुनाव अधिकांशतः अनौपचारिक आधार पर (न कि निर्वाचन से) किया जाता था, परन्तु अब हमें पंचायतों, सहकारी समितियों, युवक संगठनों इत्यादि के लिए अधिक औपचारिक (अर्थात् चुनाव में निर्वाचित) नेताओं की आवश्यकता है। लोगों को इस बात का प्रशिक्षण देना होगा कि वे नेताओं का चुनाव जाति अथवा बन्धुता पर न करके, उनके गुणों के आधार पर किया करें।