गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय

जीवन-परिचय

लोकनायक गोस्वामी तुलसीदासजी के जीवन चरित्र से सम्बन्धित प्रामाणिक सामग्री अभी तक नहीं प्राप्त हो सकी है। डॉ० नगेन्द्र द्वारा लिखित ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ में उनके सन्दर्भ में जो प्रमाण प्रस्तुत किए गए हैं.

वे इस प्रकार है- बेनीमाधवप्रणीत ‘मूल गोसाईचरित तथा महात्मा रघुवरदास रचित ‘तुलसीचरित’ में तुलसीदासजी का जन्म संवत् 1564 बि (सन् 1417 ई०) दिया गया है। बेनीमाधवदास की रचना में गोस्वामीजी को जन्म तिथि श्रावण शुक्ला सप्तमी का भी उल्लेख है। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित दोहा प्रसिद्ध है-

पंद्रह सौ चौवन बिस, कालिंदी के तीर।

श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी धर्यो सरीर॥

‘शिवसिंह सरोज’ में इनका जन्म संवत् 1583 दि (सन् 1526 ई०) बताया गया है। पं० रामगुलाम द्विवेदी ने इनका जन्म संवत् 1589 वि० (1532 ई०) स्वीकार किया है। सर जॉर्ज ग्रियर्सन द्वारा भी इसी जन्म संवत् को मान्यता दी गई है। अन्तः साक्ष्य के आधार पर इनका जन्म संवत् 1589 वि० (सन् 1532 ई०) युक्तियुक्त प्रतीत होता है।

परिचय: एक दृष्टि में

नामगोस्वामी तुलसीदास
पिता का नामआत्मराम दुवे
जन्मसन् 1532 ई०
जन्म-स्थानराजापुर गाँव जिला बांदा (उ0प्र0)
साहित्य में स्थानश्रेष्ठ भक्त, ज्ञानी, विचारक, लोकनायक दार्शनिक व मानव जीवन के सफल पारखी के रूप में सर्वश्रेष्ठ अमर कवि
शिक्षासन्त बाबा नरहरिदास ने भक्ति की शिक्षा के साथ वेद-वेदांग, दर्शन, इतिहास, पुराण आदि की शिक्षा दी।
भाषा-शैलीभाषा अवधी तथा ब्रजभाषा ।
शैली उप्पय, दोहा, चौपाई, गीत, कवित्त सवैया
प्रमुख रचनाएँश्रीरामचरितमानस, जानकी- मंगल, दोहावली, गीतावली, पार्वती मंगल, रामलला नहछू, रामाज्ञा प्रश्न आदि।
निधनसन् 1623 ई०

इनके जन्म स्थान के सम्बन्ध में भी पर्याप्त मतभेद हैं। ‘मूल गोसाईचरित’ ‘तुलसीचरित’ में इनका जन्मस्थान राजापुर बताया गया है। शिवसिंह सेंगर और रामगुलाम द्विवेदी भी राजापुर को गोस्वामीजी का जन्मस्थान मानते हैं। कुछ विद्वान् तुलसीदास द्वारा रचित पंक्ति “मैं पुनि निज गुरु सन सुनि, कथा सो सूकरखेत ” के आधार पर इनका जन्मस्थल ‘सोरो’ नामक स्थान को मानते हैं, जबकि आचार्य रामचन्द्र शुक्ल आदि विद्वानों का मत है कि ‘सूकरखेत’ को भ्रमवश ‘सोरो’ मान लिया गया है। ‘सूकरक्षेत्र’ गोडा जिले में सरयू के किनारे एक पवित्र तीर्थ है। जनुश्रुतियों के आधार पर यह माना जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम दुबे एवं माता का नाम हुलसी था। कहा जाता है कि इनके माता-पिता ने इन्हें बाल्यकाल में ही त्याग दिया था। ‘कवितावली’ के “मातु पिता जग जाइ तज्यी विधिहू न लिख्यो

काल भला अथवा बारे तेलात बिलात द्वार-द्वार दोन, चाहत हो चार फल चारि हो चनक को आदि अन्तः साक्ष्य यह स्पष्ट करते हैं कि तुलसीदास का बचपन अनेकानेक आपदाओं के बीच हुआ है। इनक पालन पोषण प्रसिद्ध सन्त बाबा महरिदास ने किया और इन्हें ज्ञान एवं भक्ति को शिक्षा प्रदान की। इन्हीं की कृपा से तुलासी जी वेद-वेदाग, दर्शन, इतिहास, पुराण आदि में निष्णात हो गए। इनका विवाह पं0 दीनबन्धु पाठक की पुत्री रत्नावली मे हुआ था। कहा जाता है कि अपनी रूपाली पत्नी के प्रति अत्यधिक आसक्त थे। इस पर इनकी पत्नी ने एक बार इनकी भर्त्सना करते हुए कहा-“लाज न आयी आपको दौरे आये साथ।” इससे उनकी भावधारा प्रभु की और उन्मुख हो गई। संवत 1680 सन् 1623 ई०) में काशी में इनका निधन हो गया है।

इस सम्बन्ध में यह दोहा प्रसिद्ध है-

‘संवत् सोलह सौ असी, असी गंग के तीर।

साहित्यिक परिचयश्रवण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तज्यो शरीर ॥”

साहित्यिक परिचय

तुलसीदासजी हिन्दी-साहित्य के महान कवि है, इन्होंने अपनी सबल और आस्थावान लेखनी से निराशा, पीड़ा, घुटन किया है। इनके इस कार्य ने भारतीय जनता में चेतना, आशा, विश्वास और कर्तव्य परायणता की भावना का जन्म दिया। दयनीयता और दासता के युग में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदशों का पुनीत जीवन चरित भारतीय जनता के समक्ष प्रस्तुत समन्वयवादी तुलसी का काव्य भावपक्ष और कलापक्ष का अद्भुत संगम है। आज इनके द्वारा रचित महाकाव्य ‘श्रीरामचरितमानस’ विश्व-साहित्य को अमर कृति है। तुलसीदासजी समन्वय के कवि हैं। इनके काव्य में ज्ञान, भक्ति, कर्म, व्यक्ति, समाज, भाषा व सिद्धान्तों का समन्वय हुआ है। इस समन्वय की भावना के कारण ही तुलसीदासजी भारत । लोकनायक कवि का पद प्राप्त कर सके।

कृतियाँ—तुलसी के बारह अन्य प्रामाणिक माने जाते -(1) वैराग्य-सन्दीपनी (2) रामाज्ञा प्रश्न(3) रामलला नहछू, (4) जानकी मंगल, (5) श्रीरामचरितमानस, (6) पार्वती-मंगल, (7) श्रीकृष्णणगीतावली (8) गीतावली (9) विनय पत्रिका, (10) दोहावली, (11) बरवे रामायण (12) कवितावली

भाषा-शैली भाषा- तुलसीदासजी ने अपनी रचनाओं में अवधी तथा ब्रज दोनों भाषाओं का प्रयोग किया है। श्रीरामचरितमानस अवधी भाषा में है, जबकि विनय पत्रिका, कवितावली, गोतावली आदि रचनाओं में ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है। तुलसीदासजो की भाषा परिष्कृत है इसमें प्रवाह भी है। इन्होंने संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग भी किया है। तुलसीदासजी ने काव्य भाषा में मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग अर्थ को तीव्र करने और कचन को प्रभावशाली बनाने के लिए किया है।

शैली-शैली की दृष्टि से तुलसीदासजी का हिन्दी साहित्य में बहुत ऊँचा स्थान है। उन्होने तत्कालीन सभी प्रचलित शैलियों का अपने साहित्य में प्रयोग किया। इनके समय में काव्य रचना को पाँच शैलियाँ थी—

(1) छप्पय पद्धति (वीरगाथाकाल की

(2) दोहा पद्धति (जायसी की )

(3) चौपाई पद्धति (जायसी को)।

(4) गीत पद्धति (विद्यापति तथा सूरदास की) ।

(5) कवित्त सर्वया पद्धति (भाट चारणों की ) ।

इन पांचों शैलियों में तुलसीदासजी ने अपने काव्य की रचना की। छप्पय शैलों में ‘कवितावली‘ की रचना की। दोहा औरचौपाई शैली में ‘श्रीरामचरितमानस‘ महाकाव्य की रचना की। गीत शैली में ‘गीतावली’, ‘श्रीकृष्णणगीतावली’ और “विनय पत्रिका’ की रचना की। कवित सवैया शैली ‘कवितावली’ में देखने को मिलती है। गोस्वामीजी की शैली अत्यन्तव्यापक, स्पष्ट, मधुर और प्रभावोत्पादक है।

हिन्दी साहित्य में स्थान– तुलसी ने अपनी भक्ति भावना को सरल धारा से हिन्दी पाठकों को ओत-प्रोत कर दिया। काव्य के प्रत्येक क्षेत्र में तुलसोदासजी का जैसा अधिकार था वैसा हिन्दी के किसी अन्य कवि का नहीं। उनके काव्य के समान जनता के हृदय पर अन्य किसी कवि का प्रभाव नहीं है। तुलसीदासजी श्रेष्ठ भक्त, ज्ञानी, विचारक, लोकनायक, दार्शनिक और मानव जीवन के सफल पारखी है। वास्तव में तुलसीदासजी हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ और अमर कवि है।

निष्कर्ष

भारतीय सरकार में आपका स्वागत है इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको गोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन चरित्र, उनके द्वारा रचित रचनाओं से संबंधित पूरी जानकारी इस पोस्ट के माध्यम से दी गई है। मैं आशा करता हूं इस पोस्ट के माध्यम से आपको इस संबंध पूरी जानकारी मिल चुकी होगी।

FAQ

Q.तुलसीदास की 12 रचनाएं कौन कौन सी है?

A. रामललानहछू, वैराग्यसंदीपनी, रामाज्ञाप्रश्न, जानकी-मंगल, रामचरितमानस, सतसई, पार्वती-मंगल, गीतावली, विनय-पत्रिका, कृष्ण-गीतावली, बरवै रामायण, दोहावली और कवितावली

Q. तुलसीदास जी कौन से युग में थे?

A.तुलसीदास जी का जन्म 1554 ईश्वी में श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था।

Q. तुलसी ने कृष्ण को क्या श्राप दिया था?

A.तुम्हारे धोखे के कारण मेरी प्रतिज्ञा टूट गयी और मेरे पति की मृत्यु हो गयी। मैं तुम्हारे कारण विधवा हो गयी हूँ ।

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