हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 में हिन्दुओं में विवाह की आवश्यक शर्तें निर्धारित की गई है, जो इस प्रकार हैं –
- – विवाह के समय किसी पक्ष को पति-पत्नी जीवित नहीं होना चाहिए।
- – विवाह की आयु में वर्ष 1976 में संशोधन कर वर की आयु 21 – वर्ष और कन्या की आयु 18 वर्ष कर दी गई। इसको वर्ष 1978 में लागू किया गया।
- – दोनों पक्षों में से कोई भी विवाह के समय विकृत पागल न हो। वर ने 18 वर्ष तथा वधू ने 15 वर्ष की आयु विवाह के समय पूरी कर लो हो।
- – दोनों पक्ष एक-दूसरे से सपिण्ड नहीं होने चाहिए।
- – दोनों पक्ष निषेधात्मक पक्ष की श्रेणी में न आते हों जब तक कि कोई प्रथा, जिसके द्वारा वे नियन्त्रित होते हैं और इस प्रकार का विवाह करने की आज्ञा न देती हो।
- – यदि वधू ने 15 वर्ष की आयु प्राप्त नहीं की है, तब यदि उसके कोई अभिभावक हो, की अनुमति विवाह के लिए प्राप्त करना जरूरी है।
- – एक विवाह प्रथा को मान्यता।
- – स्त्री-पुरुष को समान रूप से विवाह विच्छेद का अधिकार।
मुस्लिम विवाह अधिनियम (Muslim Marriage Act), 1937 में स्त्रियों को सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकार दिए गए। 1939 के अधिनियम में तलाक का अधिकार मिला।
बाल-विवाह निरोधक अधिनियम (Child Marriage Restraint Act), 1929 में लागू हुआ। जिसे शारदा एक्ट (Sharda Act) भी कहते हैं। इसमें लड़की की उम्र 14 वर्ष तथा लड़के की 18 वर्ष निर्धारित की गई थी, जिसे बाद में संशोधन कर लड़की की उम्र 15 वर्ष कर दी गई।
विधवा पुनर्विवाह अधिनियम (Widow Remarriage Act), 1856 के अन्तर्गत सभी जातियों की विधवाओं को पुनः विवाह करने का अधिकार मिला।
विशेष हिन्दू विवाह अधिनियम Special Hindu Marriage Act) (1872, 1923, 1954); वर्ष 1954 में पारित विशेष विवाह अधिनियम के द्वारा पहले के दोनों कानूनों को समाप्त कर दिया गया और इसी में अन्तर्जातीय विवाह को मान्यता प्रदान की गई।
नोट – पति द्वारा तलाकशुदा पत्नी को दिया जाने वाला अनुरक्षण भत्ता निर्वाहिका कहलाता है।