राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2005 के उद्देश्य क्या है? प्रकार…

By Arun Kumar

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राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना के माध्यम से ही समाज के प्रत्येक क्षेत्र में सन्तुलन बना रहे।

(1) सन्तुलित विकास का सिद्धान्त –

समाज के प्रत्येक क्षेत्र में सन्तुलन बना रहे, इस उद्देश्य से राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 में सन्तुलित विकास का महत्त्वपूर्ण स्थान है, जैसे- आदर्शवाद को प्रयोजनवाद की तुलना में कम स्थान प्रदान किया गया, नैतिक व मानवीय मूल्यों को पाठ्यक्रम में उचित स्थान देना।

(2) एकता का सिद्धान्त-

राष्ट्र की अखण्डता को सुनिश्चित करने हेतु पाठ्यक्रम में एकता के सिद्धान्त को माना गया है तथा विभिन्न संस्कृतियों को एकता के सूत्र में पिरोते हुए धर्मनिरपेक्ष से सम्बन्धित विषय-वस्तु को प्रस्तुत किया गया है।

(3) मानवता का सिद्धान्त-

मानवीय मूल्यों का इतिहास प्राचीन है। भारतीय परम्परा मानवीय मूल्यों पर आधारित रही है इसलिए पाठ्यक्रम में प्रारम्भ से ही ऐसे प्रकरणों का समावेश किया गया है जिससे छात्रों में प्रेम, सहयोग, परोपकार एवं सहिष्णुता की भावना का विकास हो सके।

(4) रुचि का सिद्धान्त प्रायः

यह देखा जाता है कि पाठ्यक्रम की प्रभावशीलता एवं सफलता का मूल्यांकन नहीं किया जाता है। जब उसका अनुकूल प्रभाव शिक्षक, छात्र व समाज पर दृष्टिगोचर होता है। इससे यह ज्ञात नहीं होता है कि छात्र की पाठ्यक्रम में रुचि है या नहीं। रुचि के अभाव में शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया प्रभावी रूप में नहीं चल सकती है। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 के निर्माण में शिक्षकों की रुचि, छात्रों की रुचि तथा अभिभावकों की रुचि को विशेष स्थान दिया गया है।

Arun Kumar

Arun Kumar is a senior editor and writer at www.bhartiyasarokar.com. With over 4 years of experience, he is adept at crafting insightful articles on education, government schemes, employment opportunities and current affairs.

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