पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जीवन परिचय, निबंध संग्रह

By Arun Kumar

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पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जीवन परिचय

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का जन्म मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के वैरागढ़ नामक स्थान पर सन् 1894 ई० में हुआ था। इनके पिता का नाम पुन्नालाल बख्शी था। इनके पिता एवं बाबा दोनों ही साहित्यानुरागी और साहित्य निर्माता थे।

परिचय : एक दृष्टि में

नामपदुमलाल पुन्नालाल बंकी
पिता का नामपुन्नालाल बख्शी
जन्मसन 1894 ई०
जन्म-स्थानमध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के खैरागढ़ में
शिक्षाबी.ए
सम्पादनसरस्वती’ और ‘छाया
लेखन- विद्याकाव्य. कहानी, आलोचना तथा निबन्धा
भाषा-शैलीआदर्श प्रवाहमय, भावात्मक,विचारात्मक व्याख्यात्मका।
प्रमुख रचनाएँपंचपात्र, तीरिणु, कुछ बिखरे पन्ने (निबन्ध संग्रह) शतदल, अदल (काव्य), झलमला, अंजलि कहानी-संग्रह), विश्व साहित्य साहित्य शिक्षा (आलोचना )।
निधनसन् 1971 ई0
साहित्य में स्थानपदुमलाल पुन्नालाल बख्शी द्विवेदी युग के सुप्रसिद्ध रचनाकार सिद्ध हुए।

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के साथ ही साथ इनकी माता भी साहित्य में रुचि रखती थी। इस प्रकार इनका पारिवारिक कतावरण साहित्य से प्रभावित था, जिसका प्रभाव इनके मन पर भी बहुत अधिक पड़ा। विद्यार्थी जीवन से ही ये कविताओं और कहानियों की रचना करने लगे। बी०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् बख्शीजी ने साहित्य के क्षेत्र मेंपदार्पण किया। प्रारम्भ में इनकी कहानियां और कविताएँ हितकारिणी’ में प्रकाशित हुआ करती थीं। बाद में वे अन्यपत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होने लगी।

इन्होंने ‘सरस्वती’ और ‘छाया’ पत्रिका का सम्पादन का कार्य किया। ‘सरस्वती’ का सम्पादन कार्य छोड़ने के बाद बख्शीजी खैरागढ़ में शिक्षक के पद पर कार्य करने लगे तथा कई वर्षों तक शिक्षण कार्य करने के पश्चात् वे अवकाश ग्रहण कर खैरागढ़ में हो निवास करने लगे। इनका निधन सन् 1971 ई० को हो गया।

साहित्यिक परिचय

बख्शीजी ने साहित्य सेवा को हो अपने जीवन का प्रमुख बनाया। इनकी कविताएँ स्वच्छन्दतावादी थी जिन पर अंग्रेजीसाहित्य के कवि वइसवर्ष का प्रभाव दिखाई देता था।

बख्शीजी कुछ दिनों के बाद आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी जी के सम्पर्क में आए। द्विवेदीजी के सम्पर्क में आकर बख्शीजी कोअपनी साहित्यिक प्रतिभा निखारने का पर्याप्त अवसर प्राप्त हुआ। सन् 1920 ई० से सन् 1927 ई० तक बख्शाँजी ने ‘सरस्वती’ का सम्पादन कार्य किया। बख्शीजी को संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी आदि भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। विश्व साहित्य में इनकी अच्छी पैठ थी। इन्होंने स्वच्छन्दतावादी कविताओं के साथ-साथ उच्चकोटि के ललित निबन्ध और समीक्षात्मक कृतियों को रचना भी को। इन्होने जीवन, समाज, धर्म, संस्कृति आदि विषयों पर श्रेष्ठ निबंधों की रचना की। यह है कि बहुमुखी के धनी थे। उसी का परिणाम है कि इन्होंने काव्य, निबन्ध, कहानी, आलोचना, अनुवाद आदि पर अपनी लेखनी चलाईएक सम्पादक के रूप में हिन्दी साहित्य को इनका विशेष योगदान प्राप्त हुआ।

कृतियाँ:

निबन्ध संग्रह– ‘पंचपात्र’, ‘तीर्थर’, ‘प्रबना-पारिजात’, ‘कुछ बिखरे पन्ने’, ‘म बिन्दु’ ‘पआदि काव्य-संग्रह- शतदल’, ‘अश्रदल’ कहानी-संग्रह- ‘झतमला’, ‘अंजलि।

आलोचना-विश्व-साहित्या”हिन्दी-साहित्य-विमर्श’, ‘हिन्दी-उपन्यास-साहित्य’, ‘साहित्य शिक्षा’ आदि। अनूदित—प्रायश्चित’, ‘उन्मुक्ति का निबन्ध’,’तीर्थस्थल’ आदि।

भाषा-शैली : भाषा-शीजी की भाषा का अपना एक आदर्श है। बख्शी जी ने अपने विचार शुद्ध साहित्यिक खड़ीबोली में प्रकट किए हैं। भाषा की दृष्टि से बशीजी और शुक्लजी में बहुत साम्य है। यह शुक्लजी की तरह ही सुद परिष्कृत और परिमार्जित भाषा के पक्षपाती है, परन्तु भाषा को स्वाभाविक और सरल बनाने के लिए इन्होंने आवश्यकतानुसार उर्दू और अंग्रेजी भाषा का भी प्रयोग किया है। इनकी भाषा में जटिलता और रूखापन नहीं है।

शैली बख्शीजी में भी शुक्लजी की तरह गागा में सागर भरने की अपार शक्ति है। इनके निबन्धों में हमको इनकीशैली के निम्नलिखित रूप प्राप्त होते हैं-

1. समीक्षात्मक शैली—यह शैली इनके साहित्यिक निबन्धों में प्राप्त होती है, जिसमे भाषा गम्भीरता को धारण किए हुए है। संस्कृत भाषा के शब्दों के आधिक्य के कारण भाषा संपत, स्पष्ट और प्रवाह को ग्रहण किए हुए होती है।

2. भावात्मक शैली– वह शैली हमें इनके कथात्मक निबन्धों में दिखाई देती है। इस शैली की भाषा सरल एवं सरस है। इसके वाक्य छोटे-छोटे हैं और भाव बड़े सुन्दर ढंग से प्रकट किए गए हैं।

3. विचारात्मक शैली– यह शैली बख्शीजी ने बहुत कम निबन्धों में अपनाई है। इस शैली द्वारा किया गया विवेचन दर्शनीय है। इसके अन्तर्गत भाषा के छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग किया गया है।

4. व्याख्यात्मक शैली – यह शैली बख्शीजी के आलोचनात्मक निबन्धों में प्राप्त होती है। विषय- गाम्भीर्य के कारण वाक्य बड़े हो गए हैं, जिससे कुछ क्लिष्टता का आभास होता है। इनकी भाषा में गम्भीरता का गुण विद्यमान है।

5. व्यंग्यात्मक शैली– बख्शीजी व्यंग्यात्मक शैली के प्रयोग में बड़े सिद्धहस्त हैं। इस शैली में इन्होंने जो व्यंग्य कियाहै, वह वास्तव में अत्यधिक तीखा है, वह हृदय पर सीधा प्रभाव डालता है।

हिन्दी साहित्य में स्थान– बख्शीजी एक सफल आलोचक, भावुक कवि, प्रसिद्ध कहानीकार और श्रेष्ठ निबन्धकार थे। बख्शीजी हिन्दी साहित्य की उन महान विभूतियों में से थे जिन्होंने स्वयं अपनी साधना से अपने साहित्यिक व्यक्तित्व का निर्माण किया। बख्शीजी की गणना द्विवेदी युग के साहित्यकारों में की जाती है। वे अपने विषयों, भावों और विचारों की दृष्टि से आज भी नवीन हैं। इनकी गणना हिन्दी के गणमान्य निबन्धकार और आलोचकों में की जाती है।

निष्कर्ष

भारतीय सरकार में आपका स्वागत है। बख्शीजी एक सफल आलोचक, भावुक कवि, प्रसिद्ध कहानीकार और श्रेष्ठ निबन्धकार थे। बख्शीजी हिन्दी साहित्य की उन महान विभूतियों में से थे जिन्होंने स्वयं अपनी साधना से अपने साहित्यिक व्यक्तित्व का निर्माण किया।

FAQ

Q. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के निबंध संग्रह कौन कौन से हैं?

A. साहित्य चर्चा, कुछ, और कुछ, यात्री, मेरे प्रिय निबंध, मेरा देश, तुम्हारे लिए आदि

Q.पदुमलाल बख्शी का जन्म कहाँ हुआ था?

A. राजनांदगाँव

Q. तीर्थ स्थल किसकी रचना है?

A. तीर्थ सलिल’ पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी द्वारा रचित एक निबंध ह। ै पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध साहित्यकार रहे हैं।

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Arun Kumar

Arun Kumar is a senior editor and writer at www.bhartiyasarokar.com. With over 4 years of experience, he is adept at crafting insightful articles on education, government schemes, employment opportunities and current affairs.

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