सूरदास का जीवन परिचय

By Arun Kumar

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जीवन-परिचय

महाकवि सूरदास का जन्म ‘रुनकता’ नामक ग्राम (आगरा के निकट) में सन् 1478 ई० में पं० रामदास के परिवार में हुआ था। पं० रामदास सारस्वत ब्राह्मण थे। कुछ विद्वान ‘सीही’ नामक स्थान को सूरदास का जन्मस्थल मानते है।

सुदासी जन्मान्ध थे या नहीं, इस सम्बन्ध में भी अनेक मत है। कुछ लोगों का कहना है कि बाल मनोवृत्तियों एवं मानव स्वभाव का जैसा सूक्ष्म और सुन्दर वर्णन सुरदास ने किया है, वैसा कोई जन्मान्य व्यक्ति कर ही नहीं सकता, इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि वे सम्भवतः बाद में अन्धे हुए होगे।

परिचय: एक दृष्टि में

नामसूरदास
पिता का नामपण्डित रामदास
जन्मसन् 1478 ई०
जन्म-स्थानरुनकता ग्राम ( आगरा के निकट)
भाषाभाषा – ब्रजभाषा
शैली – सरल एवं प्रभावपूर्ण ।
प्रमुख रचनाएँसूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी
निधनसन् 1583 ई०
साहित्य में स्थानवात्सल्य रस के समाद और कृष्णभक्त कवियों में सर्वोच्च स्थाना

सुरदासजी श्री वल्लभाचार्य के शिष्य थे। ये मथुरा के गऊघाट पर श्रीनाथजी के मन्दिर में रहते थे। सूरदास का विवाह भी हुआ था। विरक्त होने से पहले ये अपने परिवार के साथ ही रहा करते थे। पहले ये दीनता के पद गाया करते थे, किन्तु वल्लभाचार्य जी के सम्पर्क में आने के बाद ये कृष्णलीला का गान करने लगे। कहा जाता है कि एक बार मथुरा में सूरदासजी से तुलसीदासजी की भेंट हुई थी और धीरे-धीरे दोनों में प्रेम-भाव बढ़ गया था। सूरदासजी से प्रभावित होकर ही तुलसीदासजी ने ‘श्रीकृष्णगीतावली’ की रचना की थी।

सूरदासजी की मृत्यु सन् 1583 ई० में गोवर्धन के पास ‘पारसीली’ नामक ग्राम में हुई थी। मृत्यु के समय महाप्रभु वल्लभाचार्य के सुपुत्र विट्ठलनाथजी वहाँ उपस्थित थे। अन्तिम समय में इन्होंने गुरु-वन्दना सम्बन्धी यह पद गाया था-

भरोसो दृढ इन चरनन केरो ।

श्रीवल्लभ नख-छन्द छटा-बिनु सब जग माँझ अँधेरो।

साहित्यिक-परिचय

सूरदास ने अपने काव्य में भावपक्ष को सर्वाधिक महत्व दिया। गहन दार्शनिक भावो को कोमल और सुकुमार भावनाओं के माध्यम से व्यक्त करना इनके काव्य को प्रमुख विशेषता है। इन्होंने श्रीकृष्ण के सगुण रूप के प्रति सखा भावकी भक्ति का निरूपण किया और इस आधार पर मानव हृदय को कोमल भावनाओं का प्रभावपूर्ण चित्रण किया। इनके काव्य से राधा – कृष्ण की लीला के विभिन्न रूपों का मनोहारी चित्रण हुआ है। वात्सल्य भाव की जो अभिव्यक्ति सूर के काव्य में हुआ। उसका उदाहरण विश्व साहित्य में मिल पाना दुर्लभ है। ‘प्रमरगीत’ में गोपियों एवं उद्भव के संवाद के माध्यम से सूर अत्यंत नर्मस्पर्शी विरहपूर्ण स्थितियों का चित्रण किया है।

कृतिया भक्त शिरोमणि सुरदास ने लगभग सवा लाख पदों की रचना की थी। काशी नागरी प्रचारिणी सभा की खोज तथा पुस्तकालय में सुरक्षित नामावली के अनुसार सूरदास के अन्यों की संख्या 25 मानी जाती है, किन्तु उनके तीन ग्रंथ ही उपलब्ध हुए है-

1. सुरसागर,

2. सूरसारावली तथा

3. साहित्य लहरी

1. सूरसागर – सूरसागर सूरदास की एकमात्र प्रामाणिक कृति है। इसके सवा लाख पदों में से केवल 8-10 हजार पद ही उपलब्ध हो पाए है। सम्पूर्ण ‘सूरसागर एक गीतिकाव्य है। इसके पद तन्मयता के साथ गाए जाते है।

2. सूरसारावली – यह ग्रन्थ अभी तक विवादास्पद स्थिति में है, किन्तु कथावस्तु, भाव, भाषा-शैली और रचना में दृष्टि से निःसन्देह यह सूरदास की प्रामाणिक रचना है। इसमें 1.107 छन्द है।

3. साहित्य-लहरी– ‘साहित्य-लहरों’ में सूरदास के 118 दृष्टकूट-पदों का संग्रह है। इसमें मुख्य रूप से नायिकाओंएवं अलंकारों की विवेचना की गई है। कहाँ-कहाँ पर श्रीकृष्ण की बाललीला का वर्णन तथा एक-दो स्थलों पर महाभारत को कथा के अशो की भी झलक है।

सूरदास ने अपनी इन रचनाओं में श्रीकृष्ण की विविध लीलाओं का वर्णन किया है। इनकी कविता में भावपक्ष और कलापक्ष दोनों समान रूप से प्रभावपूर्ण है। सभी पद गेय है; अतः इनमें माधुर्य गुण की प्रधानता है। इनकी रचनाओं में व्यक्तसूक्ष्म दृष्टि का ही कमाल है कि आलोचक अब इनके अन्या होने में भी सन्देह करने लगे हैं।

भाषा शैली: भाषा सर्वप्रथम सूरदासजी ने ही ब्रजभाषा को साहित्यिक सौन्दर्य एवं प्रौढ़ता प्रदान की। इनके काव्यकी भाषा लोक प्रचलित ब्रजभाषा होते हुए भी साहित्यिक गुणों से परिपूर्ण है। इसके अतिरिक्त भाषाभिव्यंजकता, संगीतात्मकताएवं चित्रात्मकता तो सूरदासजी की भाषा को अपनी विशेषता है। इसमें लोक गीतों जैसी मोहक मधुरता एवं सहजता है। सूरदासजी की भाषा में जैसी कोमलकान्त पदावली, शब्द चयन की माधुरी, प्रवाह, संगीत एवं ध्वनि की सजीवता पाई जाती है मोअन्यत्र दुर्लभ है।

शैली-सुरदासजी ने सरल एवं प्रभावपूर्ण शैली का प्रयोग किया है। सूर के काव्य में दो प्रकार की शैली दिखाई देती है— सरल शैली और कूट शैली सरल शैली को विशेषता यह है कि इसमें प्रवाह है और सरलता है। इसे जनसाधारण भी समझ सकता है। कूट शैली बड़ी कठिन है। इसे समझना सरल नहीं है। सूर का एक-एक पद सरसता, मथुरा और प्रेम के पवित्र भावों से पूर्ण है।

हिन्दी साहित्य में स्थान– सूरदासजी हिन्दी साहित्य के प्रतिभासम्पन्न कवि थे। सूरदासजी जहाँ वात्सल्य रस केसम्राट है, वहाँ श्रृंगार रस को सौन्दर्य प्रदान करने में भी समर्थ है। इन्होंने विरह का भी अपनी रचनाओं में बड़ा ही मनोरमचित्रण किया है। हिन्दी साहित्य के कृष्णभक्त कवियों में इनका सर्वोच्च स्थान है।

निष्कर्ष

भारतीय सरकार में आपका स्वागत है दोस्तों इस पोस्ट के माध्यम से हम सूरदासजी जी के जीवन क्षेत्र पर उनके द्वारा लिखित लेख एवं उनके जीवन से संबंधित पूरी जानकारी इस पोस्ट के माध्यम से आप तक पहुंचा रहे हैं निश्चित रूप से इस पोस्ट में आपको सूरदासजी जी से संबंधित पूरी जानकारी मिल चुकी होगी।

FAQ

Q. सूरदास की प्रमुख रचनाओं का नाम क्या है?

A. सूरसागर, सूरसरावली, नागलीला, भागवत्, गोवर्धन लीला, सूरपचीसी, सूरसागर सार, प्राणप्यारी,साहित्य लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो के अतिरिक्त दशमस्कंध टीका आदि।

Q. सूरदास की मुख्य भाषा कौन सी है?

A. ब्रज भाषा

Q. सूरदास को हिंदी का क्या कहा जाता है?

A. हिंदी साहित्य का सूर्य

Arun Kumar

Arun Kumar is a senior editor and writer at www.bhartiyasarokar.com. With over 4 years of experience, he is adept at crafting insightful articles on education, government schemes, employment opportunities and current affairs.

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