सुमेरियनवासियों के सामाजिक एवं आर्थिक दशा

By Arun Kumar

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Light on the social and economic condition of the Sumerians

सुमेरियन सभ्यता (sumerian civilization) के नामकरण का आधार सुमेर नामक नगर है। यह दजला-फरात घाटी का दक्षिणी भाग है। इसके उत्तर पश्चिम में अवकाद अवस्थित है। दोनों के मध्य कोई स्पष्ट विभाजक रेखा नहीं है किन्तु साधारणतया निप्पुर के उत्तर का भू-भाग अक्काद तथा दक्षिण का सुमेर माना जाता है। इस सभ्यता ने मेसोपोटामिया, वैविलोनियों जैसी सभ्यताओं को मुब्बित तथा पल्लवित होने में पर्याप्त योगदान दिया। सुमेरियन सभ्यता के सामाजिक जीवन को इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है –

व्यवहारिक दृष्टि से सुमेरियन समाज अभिजात, सर्वसाधारण एवं दास तीन वर्ग में बेटा था। अभिजातवर्ग में राजपुरुष, उच्चाधिकारी तथा पुरोहित सम्मिलित थे। सर्वसाधारण वर्ग का गठन मध्यम श्रेणी के किन्तु स्वतंत्र नागरिकों द्वारा किया गया था जैसे – कृषक, व्यापारी तथा विभिन्न प्रकार के शिल्पी तृतीय वर्ग में दास शामिल थे।

समाज में उपरोक्त वर्गों के स्तर में बहुत अन्तर या अभिजात वर्ग के सदस्यों का जीवन अधिक साधन सम्पन्न था। यद्यपि सर्वोच्च स्थान शासकीय वर्ग को प्राप्त था लेकिन उनका मानना था कि राजाओं के पहले पुरोहित शासन करते थे।

अतः पुरोहितों का भी स्थान भी महत्वपूर्ण था। पुरोहितों व राजाओं के पश्चात राज कर्मचारी एवं लिपिकों का स्थान था। साधारण वर्ग के सदस्य अर्थात, कृषक, व्यापारी, शिल्पी इत्यादि यद्यपि स्वतंत्र थे और दासों की तुलना में अच्छी स्थिति में थे किन्तु इनका दर्जा अभिजात वर्ग के बाद ही माना जा सकता है। दासों की स्थिति सबसे दयनीय थी। उनका मुख्य कार्य कृषि, सिंचाई तथा निर्माण कार्य करते थे। दास या तो युद्ध बन्दी से या फिर ऋण न चुका सकने के कारण बनाए गए थे। सुमेरिया का आरम्भिक काल में पड़ोसी राज्यों के साथ युद्ध हुआ करता था। फलत युद्ध-बन्दी दासों की संख्या प्रतिदिन बढ़ती गयीन अदा कर सकने के कारण व्यक्ति को स्वयं या अपनी पत्नी, पुत्र या पुत्री को दास बना देना पड़ता था

कभी-कभी माता-पिता की अवज्ञा करने वाला भी दास बना दिया जाता था दण्ड निधन के समय तीन वर्गों के सदस्यों को निम्नवर्ग के सदस्यों की अपेक्षा अधिक सुविधा प्राप्त थी। वहीं दूसरी ओर इन वर्गों के सदस्यों की गतिविधियों पर अंकुश भी रखा जाता था। ऐसा सम्भवतः सामाजिक संतुलन एवं समन्वय स्थापित करने के लिए किया जाता था।

सुमेरियन सामाजिक जीवन में स्त्रियों की दशा थी। रापि विधान विशेष परिस्थितियों में पुरुष अपनी सी को बेच सकता था। किन्तु व्यवहार में ऐसा बहुत कम होता था। सुमेरिया में विवाह संस्थाएँ पूरी तरह विकसित थी और इससे सम्बंधित अनेक प्रकार के नियम थे। दहेज में प्राप्त सम्पत्ति पर एकमात्र स्त्री का अधिकार था और उसकी इच्छानुसार उसे हस्तान्तरित किया जा सकता था। पति या व्यवस्क पुत्र के अभाव में वही सम्पति की देखभाल करती थी। स्त्रियाँ अपने पति से अलग व्यापार कर सकती थी तथा दासियों रख सकती थी। इन अधिकारों के साथ-साथ सुमेरियन स्त्रियों के कर्तव्य भी कुछ कम नहीं थे। जहाँ एक ओर पुरुष के लिए व्यभिचार सम्य था वहीं स्त्रियों इस कार्य के लिए मृत्युदण्ड दिया जाता था। इतना ही नहीं उनके लिए पुत्र पैदा करना आवश्यक था यदि कोई स्त्री ऐसा नहीं कर पाती तो उसे छोड़ दिया जाता था। इस सम्बन्ध में यह कहना आवश्यक है कि सुमेरिया में मन्दिरों में देवताओं की सेवा में स्त्रियों को नियोजित करने की प्रथा थी। वे मन्दिरों में काम करती थी तथा एक तरह से देवता की रखेल मानी जाती थी सुमेरियन इससे अपमानित होने के बजाय अपने को गौरवान्वित महसूस करते थे। इनकी समाधियों से सुमेर की स्त्रियों के रहन-सहनएवं विलासपूर्ण जीवन से सम्बंधित बहुतेरी सामग्री प्राप्त हुई है। सुमेरियन सभ्यता कृषि प्रधान थी यहाँ के निवासी गेहूँ, खजूर जी आदि का भोजन करते थे। फलों का भी उत्पादन तथा अगूर की उपज होने से कहा जा सकता है कि ये लोग फल भी खाते थे। मांसाहारी भी प्रचलन में था।

मृतक संस्कार के सम्बन्ध में सूचना मिलती है कि सामान्य लोगों को घर के आंगन में या कमरे में गाड़ते थे। इसके लिए समाधियाँ भी बाहर बनायी जाती थी। इनका कब्र चतुर्भुजाकार होता था जिसमें मृतक को लिटाकर ऊपर से कच्ची ईटों की मेहराब की तरह सजा देते थे। शव के साथ जीवनोपयोगी वस्तुओं, आयुधों आभूषणों आदि को भी गाड़ा जाता था ताकि परलोक में उसे उपयोगी वस्तुएँ मिल सके।

आर्थिक जीवन: सुमेरियन आर्थिक जीवन को निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत व्यक्त किया जा सकता है-

कृषि :- सुमेरियन अर्थव्यवस्था मूलतः कृषि आधारित थी, भूमि की उर्वरता सिंचाई विधियों के आविष्कार और सुमेरियन किसानों के अथक श्रम के फलतः यहाँ सर्वत्र हरियाली दिखाई पड़ती थी। कृषि के विकास तथा हल की उपयोगिता के कारण ही हेनरी लूकस जैसे विद्वान इले हल – प्रधान संस्कृति (Plow Culture) मानते है। भूमि पर नगर शासक, मंदिर या सैन्य अधिकारियों का प्रभुत्व रहता था। मंदिरों के पास 16.5 प्रतिशत कृषि भूमि थी। इस प्रकार मंदिर अर्थ-व्यवस्था के मूलाधार थे। सुमेरियन आर्थिक गठन दो रूपों में विकसित हुआ था। एक तरफ कृषि भूमि मंदिरों की सम्पत्ति समझी जाती थी जो राज्य की सम्पत्ति थी। इस पर शुरू में ऐसी का अधिकार था पर कालान्तर में शासकों का हो गया। दूसरी ओर कुछ भूमि व्यक्तिगत अधिकार में थी जिस पर मन्दिर अथवा राज्य का कोई अधिकार नहीं था। मूलतः गेहूँ, जौ, तिल, मटर तथा खजूर की खेती करते थे। कृषि गाँवों में होती था तथा अन्न को नगरों में भेजकर उसके बदले अन्य वस्तुएँ मंगायी जाती थी। कृषि योग्य जमीन की पैमाइश बीज एवं उत्पादन का लेखा-जोखा, सावधानी पूर्वक रखा जाता था।

पशुपालन :- उपजाऊ भूमि और कृषि प्रधान सभ्यता होने से पशुओं की यहाँ आवश्यकता थी। इसीलिए पशुपालन यहाँ का दूसरा मुख्य उद्योग था। प्रायः गाय, बैल, भेंड, बकरी, सुअर आदि पाले जाते थे। इनमें से कुछ तो दूध के लिए पाले जाते होगे और कुछ सामान ढोने के लिए। इस सभ्यता में गाय की प्रधानता थी। गाय के रूप में देवियों की कल्पना की गई थी जो गौ देवी के मंदिर भी मिले हैं। इसका महत्व इससे भी सिद्ध होता है कि यहाँ प्रमुख देवियों का मुख भी के समान बना है। हल जोतने के लिए बैलों का प्रयोग होता था। चरवाहों का एक पृथक वर्ग होना इसकी महत्ता को दर्शाता है। ये विशेषतः सुअर चराने का कार्य करते थे। पालतू पशुओं के पशुशालाएँ बनी थी। मंदिरों के साथ भी ऐसी पशुशालाएँ बनी थी। राज्य की ओर से चारागाहों की भी व्यवस्था की गई थी। दुधारू पशुओं के रूप में भेड़ भी पाली जाती थी। गाड़ी खींचने के लिए भी गदहों तथा खच्चरों का प्रयोग किया जाता था।

उद्योग धन्धे :- कृषि एवं पशुपालन सुमेरियन अर्थ-व्यवस्था की रीढ़ थी लेकिन अनेक प्रकार के उद्योग-धन्धों एवं व्यवसायों का विकास भी कर लिया गया था। उद्योग-धन्धे प्रायः मन्दिरों की निगरानी में चलते थे। यहाँ विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ बनायी जाती थी जो वस्तुएँ उपयोग से अधिक होती थी उन्हें बाहर भेजा जाता था। मुख्यतः धातु उद्योग, वस्त्र उद्योग तथा गाडी निर्माण के उद्योग प्रचलन मेथे सुमेरिया में कच्चे माल की कमी थी अतः धातुएं बाहर से मंगानी पड़ती थी। ताँबे, कांसे के साथ-साथ सोने, चांदी और शीशे की मदद से विविध प्रकार की वस्तुएँ बनायी जाती था सोने का जितना अच्छा काम सुमेरिया में किया गया उतना शायद कहीं नहीं किया गया धातु-उद्योग के पश्चात दूसरे क्रम में वस्त्र उद्योग का वर्णन किया जा सकता है। पेड़ों से प्रर्याप्त मात्रा में प्राप्त होने वाले ऊन मे वस्त्र उद्योग को और विकसित किया। इसके लिए एक प्रकार के उनकी खेती भी की जाती थी। वस्त्र उद्योग शासक द्वारा नियुक्त अधिकारियों के संरक्षण में चलता था।

वस्तुतः वस्त्र उद्योग एक विशेष वर्ग के हाथ में जो सूत काटने से लेकर बुनने तथा रंगने का कार्य करते थे सुमेरिया में गाड़ी बनाने के उद्योग भी थे। माही के चक्के तो लकड़ी बनाये जाते थे किन्तु इन पर ताँबे या चमड़े के छाल चढ़ा दिये जाते किश नामक स्थान से प्राप्त पहिये मुक्त गाड़िया विश्व की सबसे मीन गाड़ियाँ है। इनके साथ-साथ सम्भवत रोटी, शराब और वर्तन बनाने का भी व्यवसाय प्रचलित था।

व्यापार:- व्यापार भी कृषि एवं पशुपालन के समान सुमेरियन अर्थ-व्यवस्था एक महत्वपूर्ण अंग था। यहाँ कच्चे माल की उपलब्धता “नहीं थी अतः इसका अन्य देशों से आयात करना पड़ता था। आयातित माल द्वारा वस्तुएँ बनाकर वे स्वयं उपयोग करते थे तथा बचे माल को बाहर भेजते थे। कच्चे माल के स्थान पर उन्हें अपनी जरूरत से अधिक अन्न बाहर भेजना पड़ता था। ताँबा, सोना, शीशा, चाँदी तथा इमारती लकड़ियों का आयात किया जाता था। विदेशी व्यापार में सुमेरियनों के समक्ष अनेक असुविधाएँ थी पहली समस्या तो कच्चे माल की थी। इसे उन्होंने आयात द्वारा हल कर लिया था। उनके सामने दूसरी समस्या थी कि उनकी उत्पादित वस्तुएँ बाजार में अन्यों की तुलना में अच्छी हो और व्यापारिक विकास और सुरक्षा के लिए शासकीय संरक्षण प्राप्त हो अंतिम दोनों समस्याओं का हल सुमेरियन शासकों के प्रयास से सम्भव हो गया। वे निरन्तर उत्पादन पर निगरानी रखते थे तथा सभी प्रकार की व्यापारिक सुविधाएँ प्रदान करने के लिए प्रयासरत थे। व्यापार को सुचारू ढंग से चलाने के लिए वे प्रायः सभी आवश्यक विधियों का प्रयोग करते थे। बिल, प्राप्ति पत्र, नोट, जमा, ऋण ब्याज, व्यापारिक पत्र इत्यादि का वे बराबर प्रयोग करते थे। प्रत्येक लेन देन को साक्षियों की उपस्थिति तथा उनके हस्ताक्षर से लिपिबद्ध कर लिया जाता था।

सुमेरियवासी वस्तुओं के विनिमय के स्थान पर धातु को विनिमय का माध्यम बनाना आरम्भ किये। वे चाँदी का जो उस समय पर्याप्त सुलभ था. इस कार्य के लिए प्रयोग निश्चित मात्रा के टुकड़ों के रूप में करते थे। इनका वजन एक रोकल का एक पौण्ड का सोलहवाँ हिस्सा होता था। प्रारम्भ में चाँदी का मूल्य स्वर्ण के मूल्य का चौथा हिस्सा था लेकिन ज्यों-ज्यों चाँदी अधिक सुलभ होती गई. उसका मूल्य गिरता गया। ध्यातव्य है कि सुमेरियन वास्तविक मुद्रा-प्रणाली से बहुत दूर थे जनता करों को चाँदी के स्थान पर अधिकांशता खाद्यान्न, खजूर तेल तथा सुरा आदि के रूप में चुकाती थी।

इस प्रकार हम देखते है कि सुमेरियनों का आर्थिक जीवन समुन्नत था।

निष्कर्ष

भारतीय सरकार के इस प्राचीन इतिहास पोस्ट के लेख में आपका स्वागत है, दोस्तों इस पोस्ट के माध्यम से हम सुमेरियन सभ्यता से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी इस पोस्ट के माध्यम से आप तक पहुंचाएं ने का प्रयास किया हूं इसमें सुमेरियन लोगो के रहन-सहन, उनकी आर्थिक स्थिति उनका जीवन उद्योग व्यापार के बारे में पूरी जानकारी इस पोस्ट के माध्यम से अब तक पहुंचा दी गई है।

FAQ

Q.सुमेरियन कौन थे हिंदी में?

A. इसका समय ईसा से 3500 वर्ष पूर्व माना जाता है। सुमेरी लोगों के भारत के साथ व्यापारिक सम्बन्ध थे। सुमेरी लोग समूचे पूर्व को अपना उद्गम मानते थे। ख्‍यात इतिहासकार लैंगडन के अनुसार ध्‍यान से देखा जाए तो मोहन जोदड़ो सभ्‍यता की लिपि और मुहरें, सुमेरी लिपि और मुहरों से मिलती-जुलती हैं।

Q. सुमेरियन सभ्यता के जनक कौन थे?

A. कुछ विद्वानों का मत है कि सुमेरिया के मूल निवासी मंगोल अथवा द्रविड़ रहे होंगे, तो कुछ विद्वानों का मत है कि सुमेरियन सभ्यता में आर्य और द्रविड़ दोनों सभ्यताओं के तत्त्वों का समावेश है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार भूमध्यसागरीय लोग सुमेरियन सभ्यता के जनक थे।

Q. सुमेरियों के मुख्य आविष्कार क्या हैं?

A. सुमेरियों ने पहिया, क्यूनिफॉर्म लिपि, अंकगणित, ज्यामिति, सिंचाई, आरी और अन्य उपकरण, सैंडल, रथ, भाला और बीयर सहित प्रौद्योगिकी की एक विस्तृत श्रृंखला का आविष्कार या सुधार किया।

Arun Kumar

Arun Kumar is a senior editor and writer at www.bhartiyasarokar.com. With over 4 years of experience, he is adept at crafting insightful articles on education, government schemes, employment opportunities and current affairs.

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