ऑगस्त कॉम्टे कर जीवन एवं उनके सिद्धांत

By Arun Kumar

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ऑगस्त कॉम्टे 19 वीं शताब्दी में सामाजिक विचारधारा को वैज्ञानिक आधार पर संगठित करने का श्रेय फ्रांसीसी विचारक ऑगस्त कॉम्टे (August Comte) को है। सच तो यह है कि प्रत्येक महान व्यक्ति अपने समय में विद्यमान परिस्थितियों में उत्पन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करता है शायद यहीं बात कॉम्टे के विषय में सही उतरती है। ऑगस्त कॉम्टे राजनीतिक नहीं थे, वे धार्मिक नेता भी नहीं थे, किन्तु राजनीतिक व्यवस्था और नैतिक मूल्यों व आदर्शों की स्थापना के लिए जो बौद्धिक पृष्ठभूमि उन्होंने निर्मित किया वह इनके समय की सर्वप्रमुख आवश्यकता थी।

सामाजिक विचारों की वैज्ञानिकता प्रदान करने में कॉम्टे का दृष्टिकोण व्यवहारिक उपयोग के रूप में स्वीकार करने योग्य है। वास्तव में उन्नीसवीं शताब्दी की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थिति में दार्शनिक चिन्तन और वैरानिक चिंतन के संघर्ष में सामाजिक प्रगति और सामाजिक व्यवस्था के स्थायित्व में कॉम्टे का प्रादुर्भाव युग की प्रमुख आवश्यकता थी।

तीन स्तरों या त्रिस्तरीय तीन अवस्थाओं का नियम– सामाजिक विचारधारा एवं नये सामाजिक विज्ञान की रचना के क्षेत्रमें कॉम्टे द्वारा प्रदिपादित ‘तीन अवस्थाओं के नियम’ (Law of Threestages) उनैकी एक महत्वपूर्ण देन है। इस नियम का प्रतिपादन कॉम्टे ने 1822 में जब वे 24 वर्ष की आयु में कर लिया था। कॉम्टे इस नियम को स्पष्ट करते हुए लिखा “मानवीय बुद्धि प्रकृति की दृष्टि से ज्ञान की प्रत्येक शाखा को अपने विकास में अनिवार्य रूप से क्रमानुसार तीन विभिन्न सैद्धान्तिक दशाओं से होकर गुजरती है, धर्मशास्त्रीय या काल्पनिक, तात्विकया अमूर्त और वैज्ञानिक या प्रत्यक्षवादी अवस्था ।

1. धर्मशास्वीय या काल्पनिक अवस्था मानव इस अवस्थामें समाज को सभी घटनाओं की व्याख्या धार्मिक आधार पर करता है मनुष्य यह मानता है कि कोई भी घटना आलौकिक शक्ति की क्रिया का ही परिणाम है। जब आदि मानव किसी घटना को समझनेमें अक्षम था तो उसकी व्याख्या कल्पनाओं के आधार पर करता था। कॉम्टे ने इस स्तर के भी तीन उपभागों का उल्लेख किया-(i) जीवित सत्तावाद- इसके अन्तर्गत प्रत्येक वस्तु में जीव को कल्पना की गयी चाहें वह सजीव हो या निर्जीव।

(1) बहुदेववाद- इस स्तर में विभिन्न देवी-देवताओं कीकल्पना की गयी जिनका संबंध विभिन्न प्रकार की घटनाओं से था। इस अवस्था में अनेक देवताओं की कल्पना की गयी जिससे बहुदेववादका जन्म हुआ।

(1) एकेश्वरवाद जब मनुष्य ने यह सोचा कि संसार के प्रत्येक घटना का संचालन एक ही ईश्वर द्वारा होता है और अन्य सभी उसके द्वारा उत्पन्न किये हुए है तो एकेश्वरवाद को भावना का जन्म हुआ जो कि धर्मशास्त्रीय या काल्पनिक स्तर का अन्तिम चरण था।2. तत्व दार्शनिक या अमूर्त अवस्था- यह पहली अवस्था का संशोधित रूप है। मस्तिष्क के विकास के साथ-साथ मनुष्य की तर्क करने की शक्ति बढ़ती जाती है संसार में जो कुछ भी घटित होता है मनुष्य उसको व्याख्या ईश्वर के आधार पर नहीं वरन् अदृश्य या निराकार शक्ति के आधार पर करता है। प्रथम और दूसरी अवस्था में अन्तर केवल यह है कि प्रथमं अवस्था में ईश्वर की कल्पना मूर्त वस्तु में की जाती है जबकि दूसरी अवस्था में ईश्वर को अमूर्तमाना गया है जो सभी वस्तुओं में उपस्थित होता है।

3. प्रत्यक्षवाद या वैज्ञानिक अवस्था- कॉम्टे के अनुसार मानवीय चिंतन की तीसरी व अन्तिम अवस्था प्रत्यक्षवादी या वैज्ञानिक अवस्था है।

इस अवस्था को व्यक्त करते हुए कॉम्टे ने लिखा है कि अन्तिम तौर पर प्रत्यक्षवादी अवस्था में मस्तिष्क दैवीय धारणाओं ब्राह्माण्ड की उत्पत्ति और लक्ष्य तथा घटनाओं के कारणों की खोज को त्याग देता है और उसके नियमों अर्थात् उनके अनुक्रम और समानताओं के निश्चित संबंधों के अध्ययन में लग जाता है।

कॉम्ट का कहना है कि उक्त ती अवस्थाओं का सिद्धान्त भक्ति समाज एवं बौद्धिक तथा सामाजिक जीवन पर भार होता है अर्थात यह सभी इन तीनों अवस्थाओं से होकर गुजरते है विज्ञान की विभिन्न शाखाओं का विकास भी इन्हीं स्तरों से हुआ है।

कॉम्टे का प्रत्यक्षवाद– कॉम्ट को प्रत्यक्षवाद का संस्थापक माना जाता है इन्होंने प्रत्यक्षवाद की अवधारणा का उल्लेख अपनी दो पुस्तकों दि पॉजिटिव फिलोसोफी और दि पॉजिटिव पॉलीटीक में किया है। प्रथम पुस्तक में प्रत्यक्षवाद की सैद्धान्तिक व्याख्या की और द्वितीय पुस्तक में व्यवहारिक।

कॉम्ट ने प्रत्यक्षवाद का अर्थ ‘वैज्ञानिक‘ बताया है उनका कथन है कि सभी घटनाओं को वास्तविक रूप में या, प्रत्यक्ष तौर पर निरीक्षण, परीक्षण, वर्गीकरण प्रणाली से सब कुछ समझना ही प्रत्यक्षवाद है और यही काम्टे की विचारधारा का आधार है। की घटनाओं को समझना है तो उनकी व्याख्या धार्मिक, तात्विक एवं आलौकिक आधार पर नहीं बल्कि वैज्ञानिक आधार पर करनी होगी। वैज्ञानिक निधि में कल्पना का सहारा नहीं लिया।

Arun Kumar

Arun Kumar is a senior editor and writer at www.bhartiyasarokar.com. With over 4 years of experience, he is adept at crafting insightful articles on education, government schemes, employment opportunities and current affairs.

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