डॉ० भगवतशरण उपाध्याय का जीवन परिचय

By Arun Kumar

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जीवन परिचय

डॉ० भगवतशरण उपाध्याय का जन्म बलिया जिले के उजियारपुर ग्राम से सन् 1910 ई० में हुआ था। इनको प्रारम्भिक शिक्षा यहाँ हुई। प्रारम्भिक शिक्षा समाप्त करने के उपरान्त उपाध्यायणी उच्च शिक्षा के लिए बनारस गए।

परिचय: एक दृष्टि में

नामडॉ० भगवतशरण उपाध्याय
जन्मसन् 1910 ई0
जन्म-स्थानउत्तर प्रदेश के बलिया जिले के उजियारीपुर गाँव में
शिक्षाएम०ए०
लेखन-विधाआलोचना यात्रा साहित्य, पुरातत्त्व, संस्मरण एवं रेखाचित्र
भाषा-शैलीशुद्ध, प्राकृत और परिमार्जित, विवेचनात्मक, वर्णनात्मक, भावात्मक शैली
प्रमुख रचनाएँमन्दिर और भवन, भारतीय मूर्तिकला की कहानी, इतिहास साक्षी है, प्राचीन भारत का इतिहास, विश्व साहित्य की रूपरेखा, साहित्य और कला, कलकत्ता से पीकिंग, लालचीन, मैंने देखा दूँठा आम
निधनसन् 1982 ई०
साहित्य में स्थानउपाध्यायजी ने साहित्य, संस्कृति। के विषयों पर सौ से भी अधिक पुस्तकों की रचना की है। ये अपनी सशक्त लेखनी के माध्यम से हिन्दी साहित्य में अमर है।

यहाँ पर इन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से प्राचीन इतिहास के विषय लेकर एम०ए० को परीक्षा उत्तीर्ण को उपाध्यायजी संस्कृत साहित्य तथा पुरातत्त्व के समर्थ अध्येता एवं हिन्दी-साहित्य के प्रसिद्ध उन्नायक रहे हैं। इन्होंने भारत के प्राचीन इतिहास एवं भारतीय संस्कृति का विशुद्ध और गहन अध्ययन किया। इन्होंने पुरातत्त्व एवं प्राचीन भाषाओं के साथ आधुनिक यूरोपीय भाषाओं का भी गहन अध्ययन किया। हिन्दी साहित्य की सेवा करते हुए सन् 1982 ई० में इनकास्वर्गवास हो गया।

साहित्यिक परिचय

शिक्षा समाप्त करने के उपरान्त उपाध्यायजी ने पुरातत्त्व विभाग, प्रयाग संग्रहालय एवं लखनऊ संग्रहालय में अध्यक्ष पद पर कार्य किया। तत्पश्चात् पिलानी में बिड़ला महाविद्यालय के प्राध्यापक पद पर भी कार्यरत रहे। इसके बाद इन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन (म०प्र०) में प्राचीन इतिहास विभाग में प्रोफेसर एवं अध्यक्ष पद पर कार्य करते हुए वहाँ से अवकाश ग्रहण किया। अवकाश ग्रहण करने के उपरान्त उपाध्यायजी देहरादून आ गए और वहीं स्थायी रूप से रहते हुए निरन्तर साहित्य की सेवा करते रहे। उपाध्यायजी ने कई बार यूरोप, अमेरिका, चीन आदि देशों की यात्रा की। इन देशों में भारतीय संस्कृति एवं साहित्य पर महत्त्वपूर्ण व्याख्यान भी दिए। उपाध्यायजी ने पुरातत्त्व, इतिहास, आलोचना, यात्रा वृत्तान्त, संस्मरण, रेखाचित्र आदि विधाओं पर सौ से भी अधिक ग्रन्थों की रचना की। उपाध्याय जी की रचनाओं में इनके गहन अध्ययन विद्वत की छाप स्पष्ट दिखा देती है। करने की विलक्षण योगिता के आधार पर इन्होंने भारतीय साहित्य कला एवं संस्कृतिको प्रमुखताओं को पूर्ण के सामने स्पष्ट कर दिया। इस प्रकार उन्होंने हिन्दी साहित्य की अपूर्वा की।

कृतियाँ: पुरातत्त्व ‘मन्दिर भारतीय मूर्तिकला और की कहानी ‘भारतीय चित्रकला की कहानी ‘कालिदास का भारत’ आदि इतिहास’ के ”इतिहास’, ‘इतिहास के पन्नों पर’, ‘प्राचीन भारत का ‘इतिहास’, ‘साम्राज्यों के उत्थान-पतन आदि। आलोचना-विवाह की रूपरेखा” और कला आदि।

यात्रा-वृत्तान्त ‘कलकत्ता से पीकिंग’, ‘सागर की लहरों पर’, ‘लाली’ आदि संस्मरण और रेखाचित्र मैने देखा।’आम’ आदि अंग्रेजी भाषा में लिखी इनकी रचनाएँ विभिन्न देशों में अपना संघ से पढ़ी जाती है।

भाषा– शैली भाषा- उपाध्याय की भाषा तत्धान शुद्ध साहित्यिक खड़ीबोली है। इनकी भाषा दो रूपसामने आते है एक संस्कृतनिष्ठ और दूसरी साधारण बोलचाल की व्यवहारिक भाषा इनकी भाषा शुद्धखड़ीबोली ही अधिक पाई जाती है। इतना होने पर भी भाषा में कहीं भी क्लिष्टता या दुर्बोधता नहीं दिखाई देती। इस प्रकारइनकी भाषा में सजीवता और चिन्तन की गहराई सर्वत्र विद्यमान है।

शैली उपाध्यायजी ने विषय के अनुरूप शैली का प्रयोग किया है, अतः इनकी शैली के निम्नलिखित रूप प्राप्तहुए है-

1. विवेचनात्मक शैली– इस शैली का प्रयोग हमें इनकी पुरातत्व सम्बन्धी रचनाओं में मिलता है।

2. समीक्षात्मक शैली – इस शैली का प्रयोग ‘साहित्य और कला’, ‘कालिदाम’ आदि रचनाओं में दिखाई देता है। इस शैली में भाषा की गम्भीरता और विद्वता का परिचय मिलता है।

3. वर्णनात्मक शैली– इस शैली का स्वरूप हमें यात्रा-वृत्तों, वस्तुओं और व्यक्तियों का वर्णन करते समय प्राप्तहोता है।

4. आलंकारिक शैली उपाध्यायजी ने अपने साहित्य में आलंकारिक शैली का भी प्रयोग किया है।

5. चित्रात्मक शैली-उपाध्यायजी किसी दृश्य या वस्तु का वर्णन करते समय शब्दों द्वारा ऐसा सजीव चित्र अंकितकर देते थे कि वह पाठकों के समक्ष साकार रूप में दिखाई देने लगता है।

हिन्दी साहित्य में स्थान– उपाध्यायजी की विद्वत्ता और अध्ययनशीलता का रूप उनकी रचनाओं में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। भारतीय संस्कृति एवं पुरातत्त्व के आचार्य उपाध्यायजी समर्थ आलोचक एवं सशक्त शैलीकार भी थे। इनके निबन्धों में चित्रात्मकता एवं मौलिकता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। उपाध्यायजी अपनी सशक्त लेखनी के बल पर हिन्दी- साहित्य में अमर हैं।

निष्कर्ष

भारतीय सरोकार में आपका स्वागत है दोस्तों इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको डॉ० भगवतशरण उपाध्याय जी के बारे में पूरी जानकारी आप तक पहुंचा दी गई है। भगवती शरण उपाध्याय निश्चित रूप से हिंदी क्षेत्र में अपना विशेष योगदान देते हुए आपने लेखनी के माध्यम से हिंदी साहित्य को सजा के रख दिया।

FAQ

Q. डॉ भगवतशरण उपाध्याय कौन थे?

A. भगवतशरण उपाध्याय शिक्षाविद् तथा हिन्दी साहित्यकार थे।

Q. भगवतशरण उपाध्याय के पिता का नाम क्या था?

A. पंडित रघुनंदन उपाध्याय

Q. 3 भगवतशरण उपाध्याय द्वारा रचित निबन्ध कौन सा है?

A. विश्व साहित्य की रूपरेखा, कालिदास का भारत, कादम्बरी, ठूँठा आम, लाल चीन, गंगा-गोदावरी, बुद्ध वैभव, साहित्य और कला, सागर की लहरों पर

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Arun Kumar

Arun Kumar is a senior editor and writer at www.bhartiyasarokar.com. With over 4 years of experience, he is adept at crafting insightful articles on education, government schemes, employment opportunities and current affairs.

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