दण्ड के सिद्धान्त तथा इससे संबंधित सावधानियां

दण्ड के सिद्धान्त तथा इससे संबंधित सावधानियां (Principles of Punishment And Precautions Related To It )

(1) प्रतिकारात्मक सिद्धान्त (Retributive Theory) –

इस सिद्धान्त के अनुसार यदि बालक ने गलती की है तो उसे उसका परिणाम भुगतना ही पड़ेगा। यह सिद्धान्त ईंट का जवाब पत्थर से देने की कहावत को चरितार्थ करता है। बालक को उसके गलत कार्य के लिए बदले की भावना से दण्ड दिया जाता है। यह सिद्धान्त विद्यालय में अनुशासन स्थापन हेतु न्यायसंगत नहीं है क्योंकि शिक्षा का उद्देश्य बालकों में अच्छी आदतों का विकास करना है।

(2) सुधारात्मक सिद्धान्त (Reformative Theory)-

इस सिद्धान्त के अनुसार बालक को दण्ड उसकी गलत आदतों तथा व्यवहार को सुधारने के लिए दिया जाता है। यह सिद्धान्त इस बात में विश्वास करता है कि दण्ड देकर बालक को उसकी गलती का अनुभव कराया जाए जिससे वह पुनः वही गलती न दोहराए।उदाहरण के लिए, कक्षा में देर से आने वाले बच्चों को दण्ड इस उद्देश्य से दिया जाता है कि वह विद्यालय प्रतिदिन नियमित समय पर पहुँचें।

(3) उदाहरणात्मक सिद्धान्त (Exemplary Theory) –

इस सिद्धान्त के अनुसार बालकों को दण्ड देना इसलिए जरूरी है जिससे अन्य छात्रों के समक्ष यह उदाहरण रखा जा सके कि अपराध करने, गलत कार्य करने या नियमों के उल्लंघन के लिए दण्ड नहीं दिया जाता है तो उस बालक द्वारा तथा अन्य बालकों द्वारा गलत कार्य की पुनरावृत्ति को बढ़ावा मिलता है।

(4) अवरोधात्मक सिद्धान्त (Preventive Theory)-

यह सिद्धान्त इस बात पर जोर देता है कि अच्छा विद्यालय वातावरण तथा परिस्थितियाँ देने पर बालक गलत कार्य करने के लिए प्रवृत्त नहीं होगा। विद्यालय की स्पष्ट प्रशासन नीति, विभिन्न शिक्षण विधियों का प्रयोग, मधुर शिक्षक-छात्र सम्बन्ध, व्यक्तिगत विभिन्नता को ध्यान में रखते हुए शिक्षण कार्य विद्यालय वातावरण को सुन्दर बनाने में सहायता देते हैं तथा बालक को स्वतः ही अनुशासन में रहने के लिए अभिप्रेरित करते हैं।

दण्ड देते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए

  • दण्ड देते समय व्यक्तिगत आधार या जातिवाद के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए।
  • दण्ड की मात्रा का निर्धारण अपराध की तीव्रता को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए। छोटी-सी गलती के लिए अत्यधिक दण्ड नहीं देना चाहिए।
  • शिक्षक को दण्ड हमेशा सकारात्मक भाव से देना चाहिए।
  • दण्ड देते समय यदि आवश्यक हो तो अभिभावकों से भी सलाह ली जानी चाहिए।
  • दण्ड देने से पूर्व गलत कार्य के कारणों और परिस्थितियों को भी ध्यान में रखना चाहिए तथा भविष्य में उन दूषित परिस्थितियों में बदलाव लाने का प्रयास करना चाहिए।
  • सामूहिक गलती के लिए कुछ छात्रों को या एक-दो छात्रों की गलती के लिए पूरी कक्षा को दण्ड देना उचित नहीं है।
  • दण्ड देने के बाद यह ध्यान रखना भी आवश्यक है कि गलत आदतों में कितना सुधार आया है।
  • एक प्रकार की त्रुटि या अपराध के लिए सभी बालकों को एक समान दण्ड देना चाहिए। दण्ड देते समय छात्रों की उम्र को भी ध्यान में रखना चाहिए।
  • दण्ड देते समय बालक के प्रति व्यक्तिगत विचारों तथा पूर्व में हुए अनुभव से प्रभावित होकर दण्ड नहीं देना चाहिए।

FAQ

Q. दंड क्या है दंड के प्रमुख सिद्धांतों को समझाइए?

A. दंड एक अपराधी को उसके द्वारा किए गए धर्म के किसी भी उल्लंघन को सुधारने का एक तरीका प्रदान करता है

Q. दंड कितने प्रकार के होते हैं?

A. भारत में अपराधियों को दी जाने वाली पांच सज़ाएँ हैं: मृत्युदंड, आजीवन कारावास, कारावास, संपत्ति जब्ती और एकांत कारावास।

Q. भारत में कुल कितने धारा है?

A. विधेयक में पहले की 511 धाराओं की जगह 358 धाराएं होंगी। अब तक, 1860 का आईपीसी भारत के क्षेत्र पर लागू प्रमुख आपराधिक कानून है। इसकी विभिन्न धाराएँ विशिष्ट अपराधों को परिभाषित करती हैं और उनके लिए सज़ा का प्रावधान करती हैं।

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