परिचय
भारतीय सरोकार में आपका स्वागत है इस पोस्ट के माध्यम से हम समाजिक मूल्य (Social Value) से संबंधित सामाजिक परिभाषा सामाजिक मूल्य की विशेषता, सामाजिक मूल्यों के प्रकार तथा सामाजिक मूल्यों का महत्व एवं प्रकार के बारे में पूरी जानकारी दी गई। जो अक्सर सोशियोलॉजी (Sociology) BA,MA, यूजीसी नेट सहित कंपटीशन पेपर में अक्सर पूछे जाने वाले क्वेश्चन में से एक हैं।
इस अध्याय में
- सामाजिक मूल्य
- सामाजिक मानदण्ड
- सामाजिक नियम
- अधिकारी तन्त्र/नौकरशाही
- वैयक्तिक, हैबिटस और एजेन्सी
- सत्ता और प्राधिकरण या प्राधिकार
सामाजिक मूल्य किसी समाज में प्रचलित वे आदर्श नियम अथवा लक्ष्य होते हैं जिनके प्रति समाज के सदस्य श्रद्धा रखते हैं। सामाजिक जीवन में सामाजिक मूल्यों को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना जाता है। ये सामाजिक मूल्य उचित-अनुचित, भला-बुरा, योग्य आयोग्य, नैतिक-अनैतिक, पाप-पुण्य आदि की व्याख्या करने में सहायक की भूमिका निभाते हैं। अस प्रकार मूल्य एक सामान्य मानक है और इन्हें उच्चस्तरीय मानदण्ड कहा जाता है। स्वयं मानदण्डों का मूल्यांकन भी मूल्यों के आधार पर होता है। मूल्य एक प्रकार से सामाजिक माप या पैमाना है जो समजा के नियमों तथा कानूनों को बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, सामाजिक मूल्य समाज की उपज होते हैं और समाज के सदस्य उनके प्रति जागरूक होते हैं। सामाजिक मूल्य का सम्बन्ध किसी व्यक्ति विशेष से न होकर सम्पूर्ण समाज से होता है।
सामाजिक मूल्य व्यवहार का सामान्य तरीका तथा सामान्य प्रतिमान है जो किसी समाज में अच्छे या बुरे, सही या गलत को तय करता है। उदाहरण के लिए सदा सत्य बोलो, सब पर दया करो, स्त्री-पुरुष को समान अधिकार प्राप्त हो, प्रजातन्त्र एक अच्छी शासन व्यवस्था है आदि हमारे समाज में सामान्य मूल्य हैं। हमारे सामाजिक सम्बन्धों को सन्तुलित बनाए रखने में मूल्य अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सामाजिक मूल्यों के द्वारा ही सामाजिक व्यवहार में एकरूपता बनी रहती है।
डॉ. राधाकमल मुखर्जी सामाजिक मूल्यों की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि मूल्य मानव समूहों और व्यक्तियों के द्वारा प्राकृतिक एवं सामाजिक विश्व से सामंजस्य करने के उपकरण है। ऐसे प्रतिमानों को मूल्य कहते है जो व्यक्तियों की विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु मार्गदर्शन करते हैं। ये सामाजिक अस्तित्व के केन्द्रीय तत्त्व कहे जा सकते हैं और समूह के सदस्य इनको रक्षित रखने हेतु हर सम्भव त्याग करने को तैयार रहते हैं। मूल्य एक प्रकार से सामूहिक लक्ष्य होते हैं जो प्रत्येक सदस्य के लिए आस्था का प्रतीक होते हैं।
सामाजिक मूल्यों की परिभाषाएँ
सामाजिक मूल्यों की कुछ प्रमुख परिभाषाएं निम्नलिखित है
- राधाकमल मुखर्जी के अनुसार, “मूल्य समाज द्वारा स्वीकृत वे इच्छाएँ तथा लक्षण है जिनका अन्तरीकरण सीखने या सामाजीकरण की प्रक्रिया से आरम्भ होता है। जो कि इनके पश्चात् अभिमान्यताएँ बन जाती है।”
- हेरी एम जानसन के अनुसार, “मूल्य की व्याख्या एक विचारधारा या मानदण्ड की तरह की जा सकती है। यह विचारधारा सांस्कृतिक या व्यक्तिगत हो सकती है। इस धारणा के कारण ही एक वस्तु की तुलना दूसरी वस्तु से की जा सकती है। जिस व्यक्ति का मूल्य विचाराधारा के कारण ऊंचा किया जाता है, नीचा होता है, तो उसे अस्वीकार किया जाता है”
- वुड्स के अनुसार, “सामाजिक मूल्य के सामान्य सिद्धान्त हैं, जो दिन प्रतिदिन के जीवन में व्यवहार को नियन्त्रित करते हैं। ये मानव व्यवहार को दिशा प्रदान करने के साथ-साथ अपने आप में आदर्श तथा उद्देश्य भी है। सामाजिक मूल्य में केवल यही नहीं देखा जाता कि क्या होना चाहिए बल्कि यह भी देखा जाता है कि क्या सही है या क्या गलत है।”
- हारालाम्बोस के अनुसार, “एक मूल्य एक विश्वास है जो यह बताता है कि क्या अच्छा और वांछनीय है।”
- फिचर के अनुसार, “सामाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से मूल्यों को उन कसौटियों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिनके माध्यम से समूह अथवा समाज व्यक्तियों, प्रतिमानों, उद्देश्यों और अन्य सामाजिक-सांस्कृतिक वस्तुओं के महत्त्व का निर्णय करते हैं।”
सामाजिक मूल्यों के प्रकार
सामान्य रूप से सामाजिक मूल्यों को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है
1. वैयक्तिक मूल्य वैयक्तिक मूल्य के मूल्य हैं जो मानव व्यक्तित्व के विकास से सम्बन्धित होते हैं जिसके कारण मानव व्यक्तित्व की रक्षा होती है; जैसे ईमानदारी, राजभक्ति, सत्यशीलता, सम्मान आदि।
2. सामूहिक मूल्य सामूहिक मूल्य, समूह की सुदृढ़ता से सम्बन्धित होते.है अर्थात् समूह के सामूहिक प्रतिमान होते है जैसे न्याय सामूहिकदृढ़ता, समानता आदि।
सामाजिक मूल्यों को डॉ. मुखर्जी ने सोपानिक व्यवस्था के अनुसार दो वर्गों में वर्गीकृत किया है
1. साध्य मूल्य साध्य मूल्य के लक्ष्य एवं सन्तुष्टियां हैं, जिनको व्यक्ति एवं समाज जीवन और मस्तिष्क के विकास के लिए अपनाता है जो व्यक्ति के व्यावहारिक अंग होते हैं। ये मूल्य पारलौकिक और अमूर्त होते हैं। इनका मानव जीवन में उच्चतम् एवं विशिष्ट स्थान होता है; जैसे- ‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’।
2. साधन मूल्य साधन मूल्य वे होते हैं जिनको व्यक्ति एवं समाज साध्य मूल्यों को प्राप्त करने हेतु, उनकी सेवा एवं उन्हें उन्नत करने के साधन के रूप में अपनाता है। इस प्रकार साधन मूल्यों के समुचित चुनाव पर ही व्यक्ति एवं समाज द्वारा साध्य मूल्यों की प्राप्ति सम्भव है। स्वास्थ्य, सम्पत्ति, पेशा, सत्ता, सुरक्षा, प्रस्थिति इत्यादि साधन मूल्य है क्योंकि इनका प्रयोग व्यक्ति द्वारा कुछ लक्ष्य एवं सन्तुष्टियों की प्राप्ति हेतु किया जाता है।
प्रायः लोगों का लगाव साध्य मूल्यों की तुलना में साधन मूल्यों से होता है।
सामाजिक मूल्यों की विशेषताएँ
सामाजिक मूल्यों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं–
- सामाजिक मूल्यों का सम्बन्ध वैयक्तिक न होकर सामूहिक होता है।
- सामाजिक मूल्य सामूहिक अन्तः क्रिया की उपज एवं परिणाम होते हैं।
- सामाजिक मूल्य उच्च स्तरीय सामाजिक प्रतिमान हैं। जिनके माध्यम से हम किसी वस्तु का मापन करते हैं।
- समाज और समूह के सभी सदस्य सामाजिक मूल्यों को एक मत से स्वीकार करते हैं। इसी कारण मूल्यों के उल्लंघन पर समाज प्रतिक्रिया व्यक्त करता है।
- सामाजिक मूल्यों में समय एवं परिस्थितियों के साथ परिवर्तनशीलता आती है। अर्थात् सामाजिक मूल्य गतिशील होते हैं।
- अलग-अलग समाजों में अलग-अलग प्रकार के सामाजिक मूल्य होते हैं।
- सामाजिक मूल्यों से सामाजिक कल्याण एवं विभिन्न सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।
- सामाजिक मूल्यों की प्रकृति सार्वभौमिक है अर्थात् मूल्य सभी समाजों में विद्यमान होते है।
- सामाजिक मूल्य एक सोपान व्यवस्था होती है।
- सामाजिक मूल्यों की निरन्तरता का कारण व्यक्ति का संवेग और भावनाएँ होती हैं।
सामाजिक मूल्यों का महत्त्व एवं प्रकार्य
सामाजिक मूल्य हमारे दैनिक व्यवहारात्मक विनिमय के सामान्य सिद्धान्त हैं। ये हमारे व्यवहार को दिशा निर्देशित ही नहीं करते वरन् ये आदर्श भी होते हैं। मूल्यों के महत्त्व का उल्लेख करते हुए डॉ. मुखर्जी जी का कथन है कि मूल्यों का सामाजिक विज्ञान के लिए वही महत्त्व है जो भौतिक विज्ञान के लिए गति एवं गुरुत्वाकर्षण का है तथा शरीर विज्ञान के लिए पाचन क्रिया एवं रक्त संचार का है। गति, गुरुत्वाकर्षण एवं रक्त संचार को तो प्रकृति की घटनाओं से अलग करके मापा जा सकता है और सूत्रबद्ध किया जा सकता है परन्तु मूल्यों को जीवन, बुद्धि और समाज से अलग करना सम्भव नहीं हैं। मनुष्य की आधारभूत इच्छाओं एवं आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करने में मूल्यों का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
सामाजिक मूल्य समाज को एकत्रित संगठित एवं नियन्त्रित बनाए रखते हैं। इमाइल दुर्खीम ने सामाजिक मूल्यों को आदर्श माना है। आपका मत है कि मूल्य की विवेचना एक सामाजिक तथ्य के रूप में होनी चाहिए। दुखम के अनुसार, सामाजिक तथ्य की तरह सामाजिक मूल्य की दो अनिवार्य विशेषताएँ है: बाह्यता और बाध्यता। दुखम का कहना है कि मूल्य सामाजिक सदस्यों की मानसिक अन्तःक्रिया का फल है। सामाजिक मूल्य किसी एक व्यक्ति का मूल्य नहीं होता अतः यह व्यक्तियों के व्यवहार को प्रभावित करता है और व्यक्ति को एक विशेष ढंग से व्यवहार करने को बाध्य करता है।
सामाजिक मूल्यों के मुख्य प्रकार्य निम्नलिखित है
- सामाजिक मूल्य समाज में एक विशेष प्रकार के मापदण्डीय एवं स्वीकृत व्यवहारों की उत्पत्ति करते है।
- समूह एवं व्यक्ति की क्षमता एवं योग्यता का मूल्यांकन सामाजिक मूल्यों द्वारा ही सम्भव है। व्यक्ति की समाज में स्थिति एवं संस्तरण का मूल्यांकन मूल्यों द्वारा होता है।
- सामाजिक मूल्य समाज का निर्माण एवं सामाजिक सम्बन्धों में समानता लाते हैं।
- ये समाज के सदस्यों के व्यवहारों को निश्चित एवं निर्धारित करते हैं। व्यक्ति की विभिन्न प्रस्थितियों एवं उससे जुड़ी भूमिकाओं को निर्देशन मूल्यों के द्वारा ही होता है।
- सामाजिक मूल्य, समाज के सदस्यों के अनौपचारिक नियन्त्रण में सहायक होते हैं।
- सामाजिक मूल्य मानव व्यवहारों की अनुरूपता एवं विचलन को स्पष्ट करते हैं।