सुमित्रानन्दन पन्त का जीवन परिचय -Biography of Sumitranandan Pant

By Arun Kumar

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सुमित्रानन्दन पन्त जीवन परिचय:

कविवर सुमित्रानन्दन पन्तजी का जन्म अल्मोड़ा जनपद में लगभग 25 मील उत्तर की ओर कौसानी नामक ग्राम में सन् 1900 ई० में पं० गंगादत्त पन्त के परिवार में हुआ था।

Biography of Sumitranandan Pant

परिचय : एक दृष्टि में

नामसुमित्रानन्दन पन्त
पिता का नामपण्डित गंगादत्त पन्त
जन्मसन् 1900 ई०
जन्म स्थानकौसानी ग्राम, जिला अल्मोड़ा
शिक्षाबारहवीं
भाषा-शैलीभाषा-खड़ीबोली
शैली- चित्रमय तथा संगीतात्मक
प्रमुख रचनाएँवीणा, पल्लव, शिल्पी, युगवाणी, उत्तरा, लोकायतन, वाणी, कला और बूढ़ा चाँद आदि
निधनसन् 1977 ई०
साहित्य में स्थानहिन्दी काव्य में नवीन विचार और
नई काव्यधारा का परिचय कराने- वाले पन्तजी का हिन्दी काव्य में श्रेष्ठ स्थान है।

इनकी माता श्रीमती सरस्वती देवी पुत्र को जन्म देकर कुछ घण्टों बाद ही इस संसार से विदा हो गईं। इनका मूल नाम गुसाईं दत्त था।पन्तजी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में ही सम्पन्न हुई। लगभग 12 वर्ष की अवस्था में इनको राजकीय हाईस्कूल अल्मोड़ा में प्रवेश दिलाया गया। यहाँ से इन्होंने नवीं कक्षा उत्तीर्ण की। इसके पश्चात् काशी आ गए और यहाँ पर हाईस्कूल और इण्टरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण की। इस बीच ये स्वतन्त्र रूप से संस्कृत-हिन्दी, बांग्ला और अंग्रेजी भाषाओं का अध्ययन करते रहे। इन्होंने सन् 1921 ई० में असहयोग आन्दोलन आरम्भ होने पर कॉलेज छोड़ दिया। पन्तजी की आयु जब सात वर्ष की थी, तभी इन्होने एक कविता लिखी। इन्हें पं० शिवाधर पाण्डेय ने बहुत प्रेरणा प्रदान की। पन्तजी सन् 1931 ई० में कालाकांकर चले गए और वहाँ इन्होंने मार्क्सवाद का अध्ययन किया। अरविन्द दर्शन से प्रभावित होकर इन्होने ‘स्वर्णकिरण’, ‘स्वर्ण धूलि’, ‘उत्तरा’ आदि काव्य संकलनों की रचना की। सन् 1950 ई० में पन्तजी आकाशवाणी से जुड़ गए। पन्तजी प्रयाग में रहकर स्वच्छन्द रूप से साहित्य रचना में संलग्न रहे। सन् 1977 ई० में पन्तजी का निधन हो गया।

साहित्यिक-परिचय

पन्त जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इन्होंने कविता के अतिरिक्त नाटक, उपन्यास और कहानियों की भी रचना की। इन्होंने उपनिषद्, दर्शन, आध्यात्मिक साहित्य और रवीन्द्रनाथ टैगौर के साहित्य का गम्भीर अध्ययन किया। इससे इनकी साहित्यिक प्रतिभा को बड़ा बल प्राप्त हुआ। प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका ‘सरस्वती’ में इनकी कविताओं के प्रकाशन के बाद काव्य-मर्मज्ञों के हृदय में इनकी धाक जम गई। पन्तजी ने अपनी छायावादी, प्रगतिवादी और दार्शनिक कविताओं से हिन्दी-साहित्य को धनी बनाया। इन्हें ‘कला और बढ़ा चाँद पर साहित्य अकादमी, ‘लोकायतन’ पर सोवियत लेण्ड पुरस्कार और ‘चिदम्बरा’ पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ। पन्तजी की साहित्य सेवाओं से प्रभावित होकर भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मभूषण’ को उपाधि से विभूषित किया।

कृतियाँ– पन्तजी ने अपनी बहुमुखी प्रतिभा से कविता के साथ-साथ उपन्यास, कहानी, नाटक, आलोचना आदि विधाओं पर भी अपनी लेखनी चलाई। इनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ इस प्रकार है- ‘वीणा’, ‘पल्लव’, ‘गुंजन’, ‘प्रन्थि ‘युगान्त’, ‘युगवाणी’, ‘स्वर्णकिरण’, ‘स्वर्ण धूलि’, ‘उत्तरा’, ‘अतिमा’ आदि। लोकायतन पन्तजी का महाकाव्य है। रचनाओं के अतिरिक्त ‘वाणी’, ‘कला और बूढ़ा चांद’, ‘चिदम्बरा’, ‘रश्मिबन्ध’, ‘रजतशिखर’ शिल्पी’ आदि शीर्षक से भी काव्य कृतियों उपलब्ध होती है।

भाषा-शैली: भाषा पन्तजी खड़ीबोली के सबसे अधिक लोकप्रिय कवि है। इन्होंने अपनी रचनाओं में संस्कृत, ब्रजभाषा, फारसी भाषा के शब्दों का भी प्रयोग किया है। इनकी शब्दावली सरस, सरल, संक्षिप्त, लघु, सामाजिक पदावली में युक्त होती है। इसमें व्याकरण की कठोरता भी कोमल हो गई है। पन्तजी की काव्यभाषा में माधुर्य, चित्रोपमता और कोमलता अधिक है। मुहावरे और कहावतों का पन्तजी के काव्य में अभाव है।

शैली – पन्तजी की शैली चित्रमयता और संगीतात्मकता के गुणों से सुशोभित है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि इनकी कविता राग, नाद और संगीत की त्रिपुटी से सुशोभित है। इनकी शैली के साधारण रूप से दो स्वरूप दिखाई देते हैं। जहाँ कहीं वह जागृति की बात कहते हैं, वहाँ इनकी शैली सरल और स्पष्ट हो जाती है तथा जहाँ वे दार्शनिक भूमि पर उतरकर मानव-जीवन का विश्लेषण-परीक्षण करने लगते हैं, वहाँ इनकी शैली दुरूह और दुर्बोध हो जाती है। पन्तजी ने अपनेकाव्य में मात्रिक छन्दों का प्रयोग किया है।

इन्होंने निरालाजी की भाँति मुक्त छन्द पर विशेष बल दिया है। पन्तजी ने अपने काव्य में गीति और प्रबन्धात्मक शैली का प्रयोग किया है। रूपमाला, सखी, रोला, पीयूषवर्षण, पद्धटिका आदि छन्दों का प्रयोग पन्तजी के काव्य में देखने को मिलता है।

हिन्दी साहित्य में स्थान– पन्तजी हिन्दी काव्य में नवीन विचार और नई काव्यधारा को लेकर आए। वे सबसे बड़े मानवतावादी कलाकार, युग चिन्तक, स्वप्नदृष्टा और आधुनिक काव्य को नवीन गतिविधि प्रदान करनेवाले कवि रहे। इन्होंने प्रकृति सौन्दर्य और मानव जीवन को कौतूहल, उल्लास और रहस्य की दृष्टि से देखा। भाव और कला दोनों दृष्टि से पन्तजी का काव्य वैभवपूर्ण है। आधुनिक हिन्दी काव्य में पन्तजी का स्थान सर्वोपरि है।

निष्कर्ष

भारतीय सरोकार में आपका स्वागत है दोस्तों हम इस पोस्ट के माध्यम से आपको सुमित्रा पंत नंद जी के बारे में उनके जीवन चरित्र उनके द्वारा लिखित रचनाएं तथा यूपी बोर्ड में पूछे जाने वाली क्वेश्चन लगातार जो बंद है आप लोगों के बीच में लाया हूं निश्चित रूप से लगातार देखा जाए तो यूपी बोर्ड सुमित्रा पंत जी के जीवन चरित्र के बारे में पूछता रहता है इसको ध्यान में रखते हुए हम और हमारी टीम लगातार ऐसी टॉपिक को कवर करने में लगी हुई है मैं आशा करता हूं हमारे इस पोस्ट से आपको लाभ मिलेगा बहुत-बहुत धन्यवाद।

FAQ

Q. सुमित्रानंदन पंत की प्रमुख रचनाएं

A. ग्रन्थि, गुंजन, ग्राम्या, युगांत, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, चिदंबरा, सत्यकाम आदि।

Q. पंत जी की प्रथम रचना कौन सी है?

A. वीणा

Q. सुमित्रानंदन पंत के महाकाव्य का क्या नाम है?

A. लोकायतन

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Arun Kumar

Arun Kumar is a senior editor and writer at www.bhartiyasarokar.com. With over 4 years of experience, he is adept at crafting insightful articles on education, government schemes, employment opportunities and current affairs.

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