रसखान का जीवन परिचय,उनका लेख एवं महत्वपूर्ण कृतियां

रसखान का जीवन परिचय

रसखान का नाम सैयद इब्राहीम था। इनका जन्म सन् 1533 ई० के लगभग दिल्ली में हुआ माना जाता है। इनका जीवन-वृत्त अभी भी अन्धकार में है। इनका सम्बन्ध दिल्ली के राजवंश से था। इस तथ्य पर निम्नलिखित दोहे से प्रकाश पड़ता।

देखि गदर हित साहिबी, दिल्ली नगर मसान।

छिनहिं बादशा वंश की, उसक छाड़ि रसखान ॥

परिचय: एक दृष्टि में

नामरसखान।
(मूल नाम सैयद इब्राहीम)
जन्मसन 1533 ई०
जन्म-स्थानदिल्ली
भाषा-शैलीभाषा – सरल व्रजभाषा।
शैली– गीत, छन्द, सवैया, दोहा आदि।
प्रमुख रचनाएँप्रेमवाटिका और सुजान रसखान।
निधनसन् 1618 ई०
साहित्य में स्थानमुसलमान होते हुए भी कृष्ण-भक्त कवियों में महत्त्वपूर्ण स्थान

डॉ० नगेन्द्र के अनुसार इन पंक्तियों में उल्लिखित ‘गदर’ और ‘दिल्ली’ के श्मशान बन जाने का समय विद्वानों ने सन् 1555 ई० अनुमानित किया है; क्योंकि इसी वर्ष मुगल सम्राट् हुमायूँ ने दिल्ली के सूरवंशीय पठानशासकों से अपना खोया हुआ शासनाधिकार पुनः हस्तगत किया था। इस अवसर पर भयंकर नर-संहार और विध्वंस होना स्वाभाविक था और कवि-प्रकृति के कोमलहृदय रसखान द्वारा उस ‘गदर’ के ताण्डव रूप को देखकर विरक्त हो जाना भी अस्वाभाविक नहीं। कवि ने जिस ‘बादशाह वंश’ की ‘उसक’ का त्याग किया, वह वही पठान (सूर) वंश प्रतीत होता है, जिसके शासन का उदय शेरशाह सूरी के साथ सन् 1528 ई० में हुआ और अन्त इब्राहीम खाँ तथा अहमद खाँ के पारस्परिक कलह के कारण सन् 1555 ई० में हुआ। इस ‘गदर’ के समय रसखान की आयु यदि बीस-बाईस वर्ष मान ली जाए तो उनका जन्म 1533 ई० के आस-पास स्वीकार किया जा सकता है। कुछ समय पहले तक यह माना जाता रहा है कि ‘रसखान’ पिहानी के सैयद इब्राहीम का ही उपनाम था, किन्तु परवर्ती अनुसन्धानों के आधार पर यह धारणा मिथ्या सिद्ध हो चुकी है। ‘प्रेमवाटिका’ में स्वयं कवि द्वारा दिल्ली छोड़कर गोवर्धन-धाम जाने के उल्लेख से उनका जन्म स्थान एवं प्रारम्भिक निवास दिल्ली अथवा उसके आस-पास ही मानना उपयुक्त है।

एक जनश्रुति के अनुसार रसखान किसी स्त्री से बहुत प्रेम करते थे, किन्तु वह उन्हें अपमानित किया करती थी। वैष्णव धर्म में दीक्षा लेने पर इनका लौकिक प्रेम अलौकिक प्रेम में बदल गया और रसखान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त बन गए।

रसखान रात-दिन श्रीकृष्ण के प्रेम में तल्लीन रहते थे। इन्होंने गोवर्धन-धाम में जाकर अपना जीवन श्रीकृष्ण के भजन-कीर्तन में लगा दिया। वैष्णव धर्म ग्रहण करने पर इन्हें सबने बहुत डराया, परन्तु श्रीकृष्ण के रंग में रंगे रसखान ने उत्तर दिया-

काहे के सोच कर रसखानि, कहा करिहै रविनंद बिचारो।

कौन की संक परी है जु, माखन चाखनवारो है राखनहारो॥

प्रसिद्ध है कि रसखान ने गोस्वामी विद्रलनाथजी से वल्लभ सम्प्रदाय के अन्तर्गत दीक्षा ली थी। उनके काव्य में अन्य वल्लभानुयायी कृष्णभक्त कवियो जैसी प्रेम माथुरी एवं भक्ति-शैली से इस बात की पुष्टि होती है। ‘दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता’ में भी उन्हें वल्लभसम्प्रदायानुयायी बताया गया है। ‘मूल गुसाई चरित’ में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा स्वचारित ‘श्रीरामचरितमानस की कथा सर्वप्रथम रसखान को सुनाने का उल्लेख है : जमुना तट पे त्रय वत्सर ली, रसखानाह जा सुनावत भौ।” रसखान-काव्य के प्रायः सभी समीक्षक इस बात पर सहमत है कि प्रेमवाटिका (सन् 1614 ई० उनकी अन्तिम काव्य-कृति है। सम्भवतः इसकी रचना के कुछ ही वर्ष पश्चात् सन् 1618 ई० के लगभग उनका देहावसान हो गया होगा।

साहित्यिक परिचय

रसखान रीतिकालीन कवि हैं, परन्तु इनकी रचनाएँ कृष्ण भक्ति काव्यधारा की परम्परा में हैं। कृष्ण-भक्त कवियों में रसखान का विशिष्ट स्थान है। श्रीकृष्ण की भक्ति में पूर्ण रूप से अनुरक्त होकर इन्होंने अपने काव्य की रचना की। कृष्ण के प्रति इनके प्रेम भाव में अत्यन्त तीव्रता, गहनता और आवेशपूर्ण तन्मयता मिलती है। इसी कारण इनकी रचनाएँ हृदय पर मार्मिक प्रभाव डालती हैं। अपनी भाव सबलता तथा सरलता के कारण इनकी रचनाएँ अत्यन्त लोकप्रिय हैं। इनके काव्य में श्रीकृष्ण के बाल-रूप और यौवन-रूप के अनेक मोहक रूप दिखाई देते हैं। सारांश यह है कि रसखान का सम्पूर्ण काव्य अत्यन्त सरस, मनोरम, मधुर और हृदयस्पर्शी है।

कृतियाँ-रसखान द्वारा रचित केवल दो ही ग्रन्थ उपलब्ध हैं— ‘प्रेमवाटिका’ और ‘सुजान रसखान’। भाषा-शैली : भाषा-रसखान की भाषा बोलचाल की सरल ब्रजभाषा है। सरलता व स्वाभाविक स्रोत इनकी शब्द योजना में दिखाई देता है। भाषा में प्रसाद गुण की अधिकता है और सर्वत्र ही सरल, सुमधुर, सरस, प्रवाहमय व भाव-गाम्भीर्ययुक्त भाषा के दर्शन होते हैं। इन्होंने अपने काव्य में लोक प्रचलित मुहावरों का प्रयोग किया है जिससे भाषा की सजीवता बढ़ गई है।

शैली-रसखान की शैली अत्यन्त सरल और प्रभावोत्पादक है, उसमें कहीं पर भी अस्वाभाविकता या बनावटीपन दृष्टिगोचर नहीं होता है। रसखान के समय में गीत-पद्धति का प्रचलन था। सूर, नन्ददास, कृष्णदास, मीरा आदि सभी ने गीतों में अपनी कृतियों का सृजन किया। इसका अभिप्राय यह नहीं है कि उस समय अन्य छन्दों का प्रयोग ही नहीं होता था; अन्य छन्दों में भी रचनाएँ होती थीं, परन्तु उनकी संख्या बहुत ही कम थी। गीत छन्दशास्त्र के बन्धनों से मुक्त होता है, इस कारण रसखान ने अपने भाव प्रकट करने के लिए कवित्त, सवैया और दोहा छन्दों का प्रयोग किया। रसखान ने मत्तगयंद सवैये और मनहरण कवित्त लिखे हैं। रसखान ने कवित्त और सवैये में रचना करके कोई नवीन बात नहीं की: हाँ, इतना अवश्य कर दिया कि इस शैली को पुनः जीवित कर दिया।

हिन्दी – साहित्य में स्थान– हिन्दी-साहित्य में रसखान का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनके काव्य में सरसता, सरलता, सुबोधता और प्रभावोत्पादकता जैसे उत्तम गुण हैं। रसखान ने एक मुसलमान होते हुए भी ऐसे काव्य की रचना की कि असंख्य हिन्दू उनके पदों को गाकर आत्मविभोर हो जाते हैं।

निष्कर्ष

भारतीय सरकार में आपका स्वागत है। इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको रसखान जी द्वारा रचित रचनाओं एवं उनके जन्म जीवन परिचय उनके महत्वपूर्ण कृतिया संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां, या फिर यूपी बोर्ड में लगातार पूछे जाने वाले क्वेश्चन को इस पोस्ट में आप तक पहुंचने का प्रयास किया गया है।

FAQ

Q. रसखान का दूसरा नाम क्या है?

A. सैयद इब्राहिम

Q. रसखान की प्रमुख रचना कौन सी है?

A. ‘सुजान रसखान’ और ‘प्रेमवाटिका’।

Q. रसखान किसका भक्त था?

A. कृष्ण भक्त रसखान मुस्लिम थे। इनके काव्य में भक्ति और शृंगार रस दोनों प्रमुखता से मिलते हैं

Q. रसखान के शिष्य कौन थे?

A. रसखान ने ‘गोस्वामी विट्ठलनाथ’ से दीक्षा प्राप्त की।

1 thought on “रसखान का जीवन परिचय,उनका लेख एवं महत्वपूर्ण कृतियां”

Leave a comment