राधाकमल मुखर्जी आधुनिक भारत के प्रसिद्ध चिन्तक एवं समाजशास्त्री..

राधाकमल मुखर्जी आधुनिक भारत के प्रसिद्ध चिन्तक एवं समाजशास्त्री इनका जन्म दिसम्बर, 1889 को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जनपद के बहरामपुर नामक गाँव में हुआ था। उन्होंने अपनी आरम्भिक शिक्षा कृष्णनाथ स्कूल बहरामपुर से प्राप्त की थी तथा उन्होंने उच्च शिक्षा कलकत्ता विश्वविद्यालय से प्राप्त की है। Radhakamal Mukherjee

लखनऊ विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र एवं समाजशास्त्र के प्राध्यापक तथा आएaआवपकुलपति रहे। वर्ष 1921 में उत्तर प्रदेश में सर्वप्रथम लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रोफेसर मुखर्जी के नेतृत्व में समाजशास्त्र का अध्ययन प्रारम्भ हुआ।a

राधाकमल मुखर्जी के विचार

राधाकमल मुखर्जी ने अपनी पुस्तक दे डाइमेशन्स ऑफ वेल्यूज (1964) में सामाजिक मूल्यों को परिभाषित करते हुए कहा कि मूल्य समाज द्वारा मान्यता प्राप्त ये इच्छा है, जिनका आन्तरीकरण सीखने या समाजीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से होता है और जो प्राकृतिक अधिमान्यताएँ मानक और अभिलाषाएँ बन जाते हैं।मूल्यों को विभिन्न परिप्रेक्ष्य में देखने व विश्लेषण करने का प्रयास किया है,इसलिए उन्होंने अपनी पुस्तक ‘मूल्यों का सामाजिक ढांचा’ में मूल्यों की चर्चा विस्तार से की है।

राधाकमल मुखर्जी की यह मान्यता है कि सम्पूर्ण सामाजिक संगठन और व्यवस्था का आधार मूल्य हैं। उन्होंने व्यक्ति, मूल्य व समाज का पारस्परिक सम्बन्ध माना है और उन्हीं के पारस्परिक आदान-प्रदान से व्यक्ति के पूर्ण बनने की बात कही है। उनका यह विचार है कि ऐसी स्थिति में वह हिन्न-भिन्न नहीं रह जाता है, बल्कि वह व्यक्ति के एक समय में एक साथ ही अपने व्यक्ति से एकात्मकता खोजता है और उसी से स्वयं को पृथक रूप से खोजता है। वह एक समय में एक अंग भी है और एक समय भी वह व्यक्ति भी है और समष्टि भी।

मनुष्य एक साथ विचारात्मक और आत्मज्ञानी प्राणी है। मुखर्जी का यह विचार है कि मनुष्य इन्द्रमय चिन्तन करता है और इन्द्र में रहता है। मनुष्य समस्त सामाजिक सम्बन्धों व पृष्ठभूमि में जीवन मूल्य कहीं परस्पर विरोधी है, तो कहीं उनमें एकरूपता है, परन्तु व्यक्ति इन इन्द्वात्मक प्रवृत्तियों की ओर सदैव सजग नहीं रहता है और न उनका यह स्वभाव है, फिर भी सामाजिक व्यवस्था, संस्कृति अपने प्रतिद्वन्द्वी का तीव्र विरोध करती है और उसे परास्त कर विजय की कामना रखती है। इसके लिए संघर्ष करने के दौरान विरोधी दृष्टिकोण व आशय को भी आंशिक रूप से स्वीकार कर लेती है।

मूल्य के आधार

मूल्यों का स्वरूप अमूर्त होता है। मूल्य समाज के आदर्श होते है। समाज के सभी सदस्यों का अपने समाज के मूल्यों के प्रति एक संवेगात्मक सम्बन्ध होता है। प्रत्येक मनुष्य अपने धर्म के धार्मिक मूल्यों के अनुसार यह मानकर व्यवहार कर रहा है कि उसके लिए सही व्यक्ति यही है। मूल्यों को पूर्ण रूप से पांच आधारों ‘बाँटकर समझा जा सकता है।

1. मूल्य कई स्तरों पर पाए जाते हैं, लेकिन कुछ मूल्य सापेक्षिक दृष्टि से अधिक अमूर्त होते हैं, तो कुछ कम प्रजातन्त्र के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की स्वतन्त्रता का विरोध करने का अधिकार एक सामान्य प्रकार का मूल्य है। ईश्वर सर्वशक्तिमान है। यह एक अमूर्त सामाजिक मूल्य है।

2. मूल्यों को उसकी महत्ता के आधार पर क्रमबद्ध किया जा सकता है, क्योंकि सभी मूल्य समान महत्त्व के नहीं होते हैं। मूल्यों को हम उनकी महत्ता के आधार पर क्रमबद्ध कर सकते हैं।

3. मूल्य हमेशा गतिशील होता है। समय और परिस्थितियों के अनुसारउसमें हमेशा परिवर्तन होता रहता है। जैसे नैतिक या धार्मिक लोग जिन्हें गलत करने के लिए कई बार सोचना पड़ता है। आज के मनुष्य में नैतिकता का पतन हो चुका है। वे कोई भी गलती करने से हिचकते नहीं हैं।

4. कुछ मूल्य स्पष्ट होते हैं, तो कुछ अस्पष्ट अर्थात् सभी मूल्य समान रूप से स्पष्ट नहीं होते है जैसे हमें बड़ों का आदर करना चाहिए। यह अस्पष्ट है, क्योंकि हमें आज्ञा का पालन करना समाज में बाध्य नहीं है। दूसरी ओर समाज में विवाह अपनी ही जाति में करते हैं। यह समाज का स्पष्ट और निश्चित मूल्य है।

5. कभी-कभी मूल्य एक-दूसरे का विरोधी होता है। समाज का स्वरूप जितना बड़ा होता है. मूल्यों के बीच संघर्ष भी उतना ही अधिक होता है। विभिन्न मूल्यों के बीच प्रायः संघर्ष होते हैं।

आधुनिक प्रजातान्त्रिक मूल्य जैसे अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता,धर्म-निरपेक्षता, वयस्क मताधिकार, शिक्षा पाने का अधिकार, ये सभीआपसी संघर्षो का ही परिणाम है।

राधाकमल मुखर्जी का समाजशास्त्रीय सिद्धान्त

भारत में समाजशास्त्र को प्रतिष्ठित करने तथा उसे अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्रदान करने में डॉ. राधाकमल मुखर्जी का योगदान अतुलनीय है। उनका ‘मूल्यों का समाजशास्त्र’ भारत में ही नहीं, अपितु विश्व में समाजशास्त्रियों द्वारा सराहा गया है।

राधाकमल मुखर्जी ने अपनी पुस्तक द स्ट्रक्चर ऑफ सोशल वैल्यूज (1949) में कहा है कि मनुष्य मूल्यों की रचना करने वाला और मूल्यों पर अमल (मानना) करने वाला प्राणी है। मनुष्य मूल्यों का स्रोत ही। नहीं, बल्कि मूल्यों का निर्णायक भी है जो समूहों और संस्थानों के कार्य को सही ढंग से चलाने के लिए सभी अन्तर्वैयक्तिक लक्ष्यों, सम्बन्धों और व्यवहारों में बिखरे पड़े होते हैं। कभी-कभी वैयक्तिक सामाजिक मूल्यों के बीच अन्तर किया जाता है। मूल्य औरयद्यपि व्यक्ति जिन्हें वैयक्तिक मूल्य समझता है वे भी साधारणतया उसी समाज से ग्रहण करता है। शिशु जन्म से ही नहीं, बल्कि बड़ा होकर सामाजिक प्राणी बनता है। इसके लिए शिशु समाजीकरण की प्रक्रिया से गुजरता है। समाजीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत व्यक्ति समूह के मूल्यों को स्वयं में आत्मसात् करता है। व्यक्ति सभी मूल्यों को एक समान महत्त्व नहीं देता है।

मनुष्य कम महत्त्वपूर्ण मूल्य की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण मूल्यों को वरीयता देता है। मनुष्यों को कभी-कभी मूल्यों से उत्पन्न द्वन्द्व का सामना करना पड़ता है। ऐसी परिस्थिति में मनुष्य मूल्यों के क्रम से उस सम्बन्ध को समाप्त करता है। ऐसा नहीं होने पर व्यक्ति की गतिविधियों अस्त-व्यस्त हो सकती है एवं व्यक्ति के व्यक्तित्व को गम्भीर स्थिति में पहुँचा सकती हैं।

इस सम्बन्ध में राधाकमल मुखर्जी ने कहा है कि विभिन्न स्तरों का विभिन्न आयामों वाले आर्थिक, नैतिक या धार्मिक जीवन के मूल्य एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। सभी समूह और संस्थान, चाहे वे आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, शैक्षणिक आदि कुछ भी हो, आपस में एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। व्यक्ति विभिन्न समूहों या संस्थाओं के सदस्यों के रूप में जान-बूझकर या अनजाने में विभिन्न मूल्यों का अनुसरण करता है और अपने कार्यों में सन्तुलन बनाए रखने का प्रयास करता है। मगर सन्तुलन कभी-कभी बिगड़भी जाता है जिसका गम्भीर परिणाम होता है। मूल्य किसी भी संस्कृति काकेन्द्र बिन्दु और उसकी प्रकृति है।

व्यक्ति को प्रायः बहुत से मूल्यों के बारे में पता नहीं होता, क्योंकि वे उसके व्यक्तित्व का अंग बन चुके होते हैं। मूल्य व्यक्ति को समाज में समायोजित करने में सहायता करता है तथा व्यक्तियों को वैध ढंग से गतिशील भी रखता है। समाज में विभिन्न प्रकार के मूल्यों के बीच प्रायः टकराव होता रहता है। इसी टकराव से सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन सम्भव होता है। मूल्यों का टकराव हमेशा दुष्कर नहीं होता है।

राधाकमल मुखर्जी का मूल्यों की उत्पत्ति का सिद्धान्त

मूल्यों की उत्पत्ति व विकास सामूहिक सम्बन्धों की संरचना में होता है। इसलिए जब भी संस्कृति में परिवर्तन होते हैं, नये मूल्यों का जन्म होता है। इन्होंने मानव को खोज करने वाला व मूल्यों का निर्माण करने वाला प्राणी माना है। राधाकमल मुखर्जी ने मूल्यों की उत्पत्ति के विभिन्न स्तर बताएं हैं, जो निम्नलिखित है –

• लक्ष्य मनुष्य को आधारभूत आवश्यकताएँ उसके जीवन के लक्ष्य निर्धारित करती है। ये लक्ष्य इन आवश्यकताओं की पूर्ति में तनाव व संचय को कम करने में सहायक है।

• आदर्श प्रतियोगी लक्ष्यों में जो सर्वोत्तम होते है, उनका प्रायिकता के आधार पर चयन किया जाता है और ये अन्ततोगत्वा आदर्श बन जाते हैं।• मान्यताएं जो आदर्श समय के साथ स्थायी हो जाते हैं और समूह में अपने अस्तित्व और कल्याण के लिए आवश्यक बन जाते हैं, उन्हें मान्यताओं का रूप दे दिया जाता है।

• मूल्य ये मान्यताएं जब मनुष्य की चेतना में स्थायित्व प्राप्त कर लेती हैं और इनमें प्रविष्ट हो जाती है, तब ये मूल्य बन जाते हैं।राधाकमल मुखर्जी द्वारा मूल्यों का संस्तरणराधाकमल मुखर्जी ने मूल्यों की उत्पत्ति व विकास के आधार पर सामाजिक अन्तःक्रिया और सामाजिक संरचना को माना है। सामाजिक स्तरों के आधार पर मूल्यों के संस्तरण का निर्माण होता है, जो निम्नलिखित है।

• भीड़ भीड़ में नैतिक भावनाओं की अमानवीय अभिव्यक्ति को देखा जा सकता है। भीड़ में सामान्यतः किसी त्रुटि या सामाजिक अवांछित कार्य को सुधारने का वातावरण प्रदर्शित होता है। ऐसे अवसर पर नैतिकता से सम्बन्धित मूल्यों का जन्म होता है और अपने स्वार्थों के अनुरूप समूहों में भाग लेने लगता है। इन विभिन्न समूहों की विशेषता है कि इनका एकत्रीकरण का आधार स्वार्थ है।

• समाज समाज में समानता व न्याय की अभिव्यक्ति होती है। इसके सदस्य सामाजिक जीवन में समानता व न्याय को बनाए रखने के लिए आवश्यक मूल्यों की अभिव्यक्ति करते हैं।

• जन समुदाय जन समुदाय एक श्रेष्ठ नैतिक सामाजिक समूह है। इस स्तर पर जब भी मानव पहुंचता है, तब अपनी भूख-प्यास एवं आवश्यक तथ्यों की पूर्ति करके बन्धुत्व के आध्यात्मिक मूल्यों; जैसे-प्रेम, समानता, एकता आदि को विकसित करता है।

राधाकमल मुखर्जी की प्रमुख कृतियाँ

• द सोशल फंक्शन ऑफ आर्ट, 1948

• द स्ट्रक्चर ऑफ वैल्यूज सोशल, 1949

• ए हिस्ट्री ऑफ इण्डियन सिविलाइजेशन, 1956

• द डाइमेशन्स ऑफ वैल्यूज, 1964

• द कम्युनिटी ऑफ कम्युनिटीज, 1966

• द वे ऑफ ह्यूमैनिज्म, 1968

• द फिलॉसफी ऑफ सोशल साइन्सेज

•कास्टिक आर्ट ऑफ इण्डिया

•द वननेस ऑफ मैनकाइण्ड

• द डेस्टिनी ऑफ सिविलाइजेशन

• स्वार्थ समूह

स्वार्थ समूह में नैतिक सिद्धान्त को देखा जा सकता है। इसमें वर्गहित का संघर्ष निरन्तर चलता रहता है। इसके उदाहरण। है-आर्थिक, धार्मिक समूह

निष्कर्ष

भारतीय सरोकार में आपका स्वागत है दोस्तों जैसे कि आपको जानते हैं कि डॉ राधा कमल मुखर्जी द्वारा विशेष योगदान दिया गया है इसके माध्यम से हमने Dr. राधा कमल मुखर्जी से संबंधित पूरी जानकारियां इस पोस्ट के माध्यम से आपको मिल चुके होंगे जैसे की व्यक्ति विभिन्न समूहों या संस्थाओं के सदस्यों के रूप में जान-बूझकर या अनजाने में विभिन्न मूल्यों का अनुसरण करता है और अपने कार्यों में सन्तुलन बनाए रखने का प्रयास करता है। मगर सन्तुलन कभी-कभी बिगड़भी जाता है जिसका गम्भीर परिणाम होता है। मूल्य किसी भी संस्कृति काकेन्द्र बिन्दु और उसकी प्रकृती थी

FAQ

Q. राधा कमल मुखर्जी के अनुसार मूल्य क्या है

A. राधाकमल मुकर्जी – “मूल्य समाज द्वारा स्वीकृति प्राप्त वे इच्छाएँ या लक्ष्य हैं

Q. राधाकमल मुखर्जी के अनुसार समाज क्या है?

A. एक सार्वभौमिक सभ्यता के मूल्यों की व्याख्या करना चाहता है ।

Q. मुखर्जी के अनुसार परंपरा का क्या अर्थ है?

A. एक गतिशील तथ्य है। यह एक ऐतिहासिक प्रक्रिया है।

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