बिस्सा मुण्डा आन्दोलनों के कारणों की विवेचना

By Arun Kumar

Published on:

बिस्सा मुण्डा आन्दोलनों के कारणों की विवेचना

बिरसा मुण्डा आन्दोलन जनजातीय आन्दोलनों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। छोटा नागपुर की मुण्डा जनजाति में अंग्रेजों के खिलाफ स्वराज्य के लिए 1890 में आन्दोलन आरम्भ किया था। छोटा नागपुर की मुण्डा जनजाति अपने जीविकोपार्जन के लिए और अपने अस्तित्व को बचाने के लिए खेत-खलिहानों में बेजान अंग्रेजी कोड़ों की मार तथा जमीदारों और ठाकुरो द्वारा महिलाओं के शारीरिक शोषण से जूझ रही थी।

इसी समय सन् 1894 में यहाँ पर भयंकर अकाल पड़ने से अनाज की कमी के कारण इनका जीवन यापन करना मुश्किल हो गया क्योंकि लगान और करो में छूट की मांग करने पर जमीदारों और अंग्रेजों के अत्याचार में वृद्धि हो गयी। मुण्डा किसानों के समय पर मालगुजारी न देने पर इनके साथ मारपीट और मुण्डा महिलाओं का दैहिक शोषण किया जाता था। 23 अगस्त 1895 को मालगुजारी वसूल करने आये सिपाहियों ने मण्डाजनजाति के घरो में घुसकर जब इनके बर्तन और गहने छीने तो महिलाओं ने इनका विरोध किया। इसी बीच पुलिस का हेड सिपाही जब एक महिला के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश कर रहा था तो विरसा नाम के एक मुण्डा जनजाति के नवयुवक ने कुल्हाड़ी से उसकी हत्या कर दी। मुण्डा जनजाति के आन्दोलनों का यह प्रथम हिंसात्मक विरोध था। 26 अगस्त को विरसा वापस छोटा नागपुर पहुंचा तब तक मुण्डाओं में विरसा के प्रति श्रद्धा और अंग्रेजो के प्रति घृणा की भावना फैल चुकी थी। छोटा नागपुर में विरसा सेवादल का गठन करके 5000

आदिवासियों के साथ छोटा नागपुर में अंग्रेजों के खिलाफ सामूहिक बगावत नारा बुलन्द हुआ। 11 अगस्त 1897 में खुटी क्षेत्र के एक थाने में मुण्डाओं के दल ने लगभग 200 सिपाहियों को मारकर जंगलों में छिपने के साथ ही ‘जंगल राज’ की घोषणा कर दी। 24 दिसम्बर 1899 को विरसा के नेतृत्व में रांची पर धावा बोला गया। अंग्रेज सरकार ने मुण्डाओं को सबक सिखाने के लिए ‘डोमरी’ में सामूहिक हत्याओं तथा बलात्कार का सिलसिला शुरू कर दिया। औरतों बच्चों और बूढ़ों का नरसंहार हुआ जिससे युवा मुण्डाओं ने पुनः जंगलो में छिपकर गुरिल्ला युद्ध के माध्यम से अंग्रेजों से लड़ाई की। 1899 में विरसा मुण्डा को सहयोगी अंग्रेजो का शिकार हुआ और 3 जनवरी 1900 को पुनः बिरसा को गिरफ्तार कर लिया गया। 9 जून 1900 को हजारीबाग की जेल में ही विरसा मुण्डा का देहान्त हो गया।

विरसा मुण्डा नाम का यह जनजातीय आन्दोलन प्रमाणित करता है कि जनजातीय समाज शोषण, दबाव अत्याचार और स्वाभिमान के प्रति अत्यन्त ही संवेदनशील समाज है और अपने स्वाभिमान के लिए चिरसा मुण्डा ने इस आन्दोलन के द्वारा ब्रिटिश शासन को बुरी तरह परेशान किया।

Arun Kumar

Arun Kumar is a senior editor and writer at www.bhartiyasarokar.com. With over 4 years of experience, he is adept at crafting insightful articles on education, government schemes, employment opportunities and current affairs.

Leave a comment