शोध क्या है? Whate is Research

अनुसन्धान अथवा शोध की विस्तृत कार्य योजना अथवा शोधकार्य प्रारम्भ करने से पूर्व सम्पूर्ण शोध प्रक्रियाओं की एक स्पष्ट संरचना को शोध प्रारूप या शोध प्रश्न या अनुसन्धान परचना के रूप में जाना जाता है।

शोध प्रश्न के सम्बन्ध में यह स्पष्ट होना चाहिए कि यह शोध का कोई चरण नहीं है, क्योंकि शोध के जो निर्धारित या मान्य चरण है, उन सभी पर वास्तविक कार्य प्रारम्भ होने के पूर्व ही विस्तृत विचार होता है तथा प्रत्येक चरण से सम्बन्धित विषय पर रणनीति तैयार की जाती है। जब सम्पूर्ण कार्य योजना विस्तृत रूप से संरचित हो जाती है, तब वास्तविक शोध कार्य प्रारम्भ हो जाता है अर्थात् ये सभी घटित क्रियाएँ शोध प्रश्न या शोध प्रारूप या अनुसन्धान प्ररचना की क्रियाविधियों द्वारा ही प्रतिपादित की जा सकती है।

शोध प्रारूप का निर्माण

सामाजिक अनुसन्धान या शोध में समस्या के चुनाव व निरूपण तथा उपकल्पनाओं का निर्माण कर लेने के पश्चात् अनुसन्धान प्ररचना (शोध प्रश्न/प्रारूप) बनाई जाती है। इसका कार्य अनुसन्धान को एक निश्चित दिशा प्रदान करना है। किसी भी सामाजिक अनुसन्धान की प्रक्रिया को समुचित रूप में पूरा करने के लिए प्रारम्भ में ही निर्धारित की गई योजना की रूपरेखा को सामाजिक अनुसन्धान की प्ररचना कहा जाता है।

अनुसन्धान प्ररचना या शोध-प्रारूप का अर्थ सैल्टिज, जहोदा तथा अन्य के अनुसार, “सामाजिक अनुसन्धान का अर्थ सामाजिक घटनाओं तथा तथ्यों के बारे में नवीन जानकारी प्राप्त करना है अथवा पूर्व अर्जित ज्ञान में संशोधन, सत्यापन एवं संवर्द्धन करना है।” प्ररचना शब्द का अभिप्राय पूर्व निर्धारित रूपरेखा है।

एकोफ ने प्ररचना शब्द की व्याख्या करते हुए कहा है कि “निर्णय कार्यान्वित करने की स्थिति आने के पूर्व ही निर्णय करने की प्रक्रिया को प्ररचना या शोध प्रश्न/ प्रारूप कहते हैं।” यह एक सुविचारित पूर्वानुमानों की प्रक्रिया है जो सम्भावित स्थिति के नियन्त्रण के लिए अपनाई जाती है। इस प्रकार प्ररचना का अर्थ कार्य प्रारम्भ होने के पूर्व सम्भावित स्थिति के नियन्त्रण के लिए तैयार की गई रूपरेखा या कार्यक्रम की योजना से लिया जाता है। संक्षेप में अनुसन्धान प्ररचना अनुसन्धान कार्य प्रारम्भ करने के पूर्व का एक विधिवत् कार्यक्रम है।

शोध- प्रारूप की एक अच्छी व्याख्या कलिंजर ने प्रस्तुत की है। उनके अनुसार. अनुसन्धान या शोध प्रारूप अन्वेषण की योजना, संरचना एवं युक्ति है जिससे शोध-प्रश्नों के उत्तर प्राप्त किए जा सके एवं प्रसरण को नियन्त्रित किया जा सके। कलिजर ने अपनी परिभाषा में अनुसन्धान प्ररचना के दो उद्देश्यों की चर्चा की।

(1) शोध सम्बन्धी प्रश्न का उत्तर प्राप्त करना

(ii) प्रसरण से उत्पन्न दोषों को नियन्त्रित करना जिससे वे उत्तर विश्वसनीय एवं वैध हो सके।

गेराल्ड आर. लेस्ली कहते है कि “शोध प्रश्न/ प्रारूप वह ब्लूप्रिण्ट है, जो परिवत्यों को पहचानता है तथा तथ्यों को एकत्र करने एवं उनका विवरण देने के लिए की जाने वाली कार्य प्रणालियों को अभिव्यक्त करता है।”

शोध प्रश्न / प्रारूप को अत्यन्त विस्तार से समझाते हुए सौमेन्द्र पटनायक ने लिखा है। कि. “शोध प्रारूप / प्रश्न एक प्रकार की रूपरेखा है, जिसे आपको शोध के वास्तविक

क्रियान्वयन से पहले तैयार करना होता है। यह योजनाबद्ध रूप से तैयार एक प्रारूप होता है, जो उस रीति को बतलाता है जिसमें आपने अपने शोध की कार्य योजना तैयार की है।”

पी.वी. यंग के अनुसार, “जब एक सामान्य वैज्ञानिक मॉडल को विविध कार्यविधियों में परिणत किया जाता है, तो शोध प्रारूप / शोध प्रश्न/अनुसन्धान प्ररचना की उत्पत्ति होती है।”

शोध प्रश्न की प्रमुख विशेषताएँ

शोध प्रश्न की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं

• यह लचीली होनी चाहिए जिससे कि आवश्यकता पड़ने पर किसी भी चरण में थोड़ा-बहुत परिवर्तन किया जा सके।• यह उपयुक्त होनी चाहिए जिससे कि विश्वसनीय सामग्री का संकलन किया जा सके।

• यह कार्यकुशल होनी चाहिए जिससे कि अनुसन्धान के उद्देश्यों को सफलतापूर्वक प्राप्त किया जा सके।

• यह मितव्ययी होनी चाहिए जिससे कि उपलब्ध साधनों की सीमाओं के अन्तर्गत ही सम्पूर्ण अनुसन्धान को पूरा किया जा सके

शोध प्रश्न या अनुसन्धान प्ररचना के प्रकार

उपरोक्त निर्णयों को ध्यान में रखते हुए सम्पूर्ण अनुसन्धान प्ररचना को मुख्य रूप से चार भागों में विभाजित किया जा सकता है।

1. निदर्शन प्ररचना इसमें अध्ययन की प्रकृति के अनुसार निदर्शन की इकाइयों के आकार तथा निदर्शन की पद्धति के बारे में पूर्व निर्णय लिया जाता है।

2. अवलोकनात्मक प्ररचना इसमें उन दशाओं के बारे में पूर्व निर्णय लिया जाता है जिनके अन्तर्गत अवलोकन किया जाना है अथवा अन्य किसी प्रविधि द्वारा सामग्री संकलित की जानी है।

3. सांख्यिकीय प्ररचना इसका सम्बन्ध संकलित सामग्री के विश्लेषण से है।

4. संचालन प्ररचना इसके अन्तर्गत उपरोक्त प्ररचना सम्बन्धी कार्य प्रणालियों को लागू किया जाना है। इसी के द्वारा ही अन्य तीनों प्ररचनाओं में समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया जाता है।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि अनुसन्धान प्ररचना में कम-से-कम चार बातों के बारे में पूर्व निर्णयों को सम्मिलित किया जाना अनिवार्य है।

  • अनुसन्धान समस्या की स्पष्ट प्रस्तावना
  • सामग्री संकलन हेतु प्रयोग की जाने वाली प्रविधियाँ एवं कार्य प्रणालियाँ
  • अध्ययन की सामग्री तथा
  • सामग्री के संसाधन एवं विश्लेषण हेतु प्रयोग की जाने वाली पद्धतियाँ
  • इसी तरह उद्देश्यों की भिन्नता के आधार पर अनुसन्धान प्ररचना के
  • प्रमुख प्रकार हैं।
  • अन्वेषणात्मक या निरूपणात्मक अनुसन्धान प्ररचना
  • वर्णनात्मक अनुसन्धान प्ररचनानिदानात्मक अनुसन्धान प्ररचनाघटनोत्तर अनुसन्धान प्ररचनाप्रयोगात्मक अनुसन्धान प्ररचना।

शोध अभिकल्प के उद्देश्य (Objectives of Research Design )

सामान्य रूप से किसी भी शोध कार्य में तीन प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ये तीन समस्याएं हैं-व्यावहारिक शोध समस्या, वैज्ञानिक अथवा बौद्धिक शोध समस्या एवं सैद्धान्तिक व्यवस्थाओं को विकसित करने की समस्या। व्यावहारिक शोध समस्याएं, समस्याओं के समाधान एवं सामाजिक नीतियों के निर्धारण में सहायता प्रदान करती हैं, जबकि वैज्ञानिक अथवा बौद्धिक शोध का सम्बन्ध मौलिक वस्तुओं से होता है। इसके अतिरिक्त कुछ शोध ऐसे भी होते हैं, जिनका उद्देश्य सैद्धान्तिक व्यवस्थाओं का विकास करना होता है. जिनके आधार पर विचारों का परीक्षण किया जाता है। सामान्यतः शोध अभिकल्प के दो प्रमुख उद्देश्य शोध समस्या का उत्तर प्रदान करना एवं विविधताओं को नियन्त्रित करना होते हैं।

शोध समस्या का उत्तर प्रदान करना

शोध अभिकल्प, शोधकर्ता को विभिन्न शोध प्रश्नों के उत्तर प्रदान करने में सहायता करता है। शोध अभिकल्प यथासम्भव रूप में प्रामाणिकता, विषयात्मकता, यथार्थता, निश्चयात्मकता आदि प्राप्त करने में सहायता पहुँचाता है। ऐसा करने के लिए शोध अभिकल्प यथासम्भव उन समस्त प्रमाणों को एकत्रित करने का प्रयास करता है जो कि शोध समस्या से सम्बन्धित होते हैं।शोध अभिकल्पनाओं के रूप में समस्या को इस तरह प्रस्तुत किया जाता है कि इसका आनुभविक परीक्षण सम्भव हो सके, जितनी सम्भावनाएँ परीक्षण की होती हैं, उतने ही प्रकार की शोध अभिकल्पनाएँ तैयार करते हैं। विश्वसनीय परिणाम प्राप्त करने के लिए चरों के मध्य पाए जाने वाले सम्बन्धों के उपयुक्त सन्दर्भ ढाँचे की स्थापना की जाती है।

विविधताओं को नियन्त्रित करना

शोध अभिकल्प, विविधताओं को नियन्त्रित करने में शोधकर्ता की सहायता करता है। शोध के समय में विविध त्रुटियों की सम्भावना बनी रहती है।

शोध अभिकल्प में इन विविध त्रुटियों को कम करने के दो प्रमुख स्रोत हैं

1. शोध परिस्थितियों को अधिक नियन्त्रित करते हुए परिमापन के कारण उत्पन्नत्रुटियों को यथासम्भव कम करना।

2. मापों की विश्वसनीयता को बढ़ाना।

वस्तुतः शोध अभिकल्प के नियन्त्रण के कार्यक्रम तकनीकी हैं। इस अर्थ में शोध अभिकल्प एक नियन्त्रणकारी व्यवस्था है। इसके पीछे पाया जाने वाला प्रमुख सांख्यिकी सिद्धान्त यह है कि क्रमबद्ध विविधताओं को अधिक से अधिक बढ़ाए एवं साथ ही बाह्य क्रमबद्ध विविधताओं को नियन्त्रित करे।इस प्रकार हम देखते हैं कि मूलतः शोध अभिकल्प के प्रथम उद्देश्य में शोधकर्ता अपने शोध के लिए चयनित समस्या से सम्बन्धित प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करता है और शोध अभिकल्प उस उत्तर को प्रामाणिक, वैषयिक और यथार्थ रूप में प्रस्तुत करता है। इसी प्रकार दूसरे उद्देश्य के द्वारा शोध के दौरान उपस्थित विविधताओं को नियन्त्रित करता है। यह नियन्त्रण भी उसे शोध अभिकल्प से ही प्राप्त होता है।

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