रेशम कीट पालन से कमाई लाखों रुपए, शहतूत की खेती कैसे करें

By Arun Kumar

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रेशम विकास विभाग रेशम कीट पालन की नवीन तकनीक

1. भूमि का चयन :

शहतूत की खेती प्रायः सभी प्रकार की मिट्टी एवं जलवायु में की जा सकती है परन्तु बलुई दोमट मिट्टी अति उत्तम है तथा मिट्टी में पानी का ठहराव नहीं होना चाहिए।

(क) नर्सरी ऊपादन :

पौधशाला में पौधों को अच्छी तरह तैयार करने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।

1. समय दिसम्बर- जनवरी अथवा जून-जुलाई

2. भूमि की तैयारी –

1. जुताई तीन बार 1-1/2 फीट गहरी

2. दीमक उपचार हेतु क्लोरीपाइरीफास का प्रयोग करें।

3. खाद-गोबर की सड़ी खाद 15-20 टन प्रति एकड़।

4. क्यारियो की बनावट-अर्चा के मौसम में जमीन से उठी हुई तथा जाड़ो के मौसच में भूमि की सतह के बराबर।

5. क्यारियों के आकर 10’x4′ तथा दो क्यारियों के बीच में एक फुट जगह।

6. शहतूत की प्रजाति-उन्नत किस्म की प्रजातियों वर्षा पर आधारित भूमि के लिए सिंचित भूति पर खेती के लिए एस-146, C-2088, S-1035 डी. डी. आदि।

कनवा-2 प्रजाति भी उत्तम है परन्तु बसन्त फसल में प्रस्फुटन देर से होने के कारण इस प्रजाति के साथ किसी अन्य उपरोक्त वर्णित प्रजातियों में से एक का भी रोपण करना चाहिए।

3 कलमों का चयन एवं रोपण विधि-कलम तर्जनी उंगली के बराबर मोटी 6 से 9 इंच लंबी एवं पंक्ति की दूरी 6 इंच तक रखनी चाहिए। कलमें तिरछी झुकी उनकी एक आंख जमीन से ऊपर होनी चाहिए।

(ख) पौधशाला की देख-रेख

  1. सिंचाई कलम रोपण के तुरन्त बाद तथा उसके पश्चात् 10 से 15 दिन के अन्तराल पर।
  2. रासयनिक खाद-तीन माह बाद यूरिया 35 किग्रा० प्रति एकड़ की दर से दो बार में प्रयोग करें।
  3. निराई-आवश्यकतानुसार

(ग) बगीचों हेतु प्रत्यारोपण

6 माह पश्चात्, 5 से 8 फीट ऊचाई वाले स्वस्थ

पौधों का प्रत्यारोपण 3×3 की दूर पर 1′ x 1′ x 1′ नाप गड्ढ़ा बनाकर एवं गोबर की सड़ी खाद 1 किग्रा० प्रति गड्ढ़ा की दर से डालकर करना चाहिए यदि भूमि में दीमक का प्रकोप हो तो आवश्यकतानुसार क्लोरीपाइरीफास डालनी चाहिए। इसके अतिरिक्त 4′ x 4′, 5×5′, 6′ x 3′ x 2′ पर वृक्षारोपण किया जा सकता है।

(घ) रासायनिक खाद –

वर्षा पर आर्धारित भूमि के लिए प्रथम वर्ष में 50:25:25 कि०ग्रा० प्रति एकड़ नाइट्रोजन, फासफोरस तथा पोटास दो बार में, दूसरे वर्ष तथा उसके पश्चात् 100:50:50 कि०ग्रा०प्रति

एकड़ दो बार में खाद का प्रयोग बगीचों की कटाई के उपरान्त करना चाहिए। नाइट्रोजन (यूरिया) का प्रयोग वर्ष में 2 बार और फासफोरस एवं पोटास का प्रयोग वर्षा काल में ही करना चाहिए। सिंचित भूमि के लिए-प्रथम वर्ष में 100:50:50 कि०ग्रा० प्रति एकड़ (दो बार में) । दूसरे वर्ष तथा उसके पश्चात् 25:100:100: कि०ग्रा० प्रति एकड़ (दो बार में) बगीचों की कटाई छटाई के उपरान्त।

रेशम कीट पालन के लिये छटाई द्वारा पौधों में पत्तों की मात्रा तथा गुणवत्ता में भारी वृद्धि होती है। इसलिए वर्ष में दो बार पौधों की छटाई अति आवश्यक है।

बगीचों की कटाई एवं छंटाई

(1) जून माह-जमीन में 6′-9′ की उंचाई पर टहनियों के तल से। (2) दिसम्बर माह-जमीन से 3 फीट उंचाई पर।

रेशम कीट पालन एवं कोया उत्पादन

सफलतम् रेशम कीट पालन हेतु कीट पालन गृह, स्वच्छता, अनुकूल तापमान, विशुद्धिकरण, अच्छी पत्ती का चयन, कीड़ों का उचित फलाव, तथा आरोपण का विशेष महत्व है।

किसानों को सरकार द्वारा छोटी अवस्था के रशम कीटों का पालन करने के उपरान्त ही कीट दिये जाते हैं। कीट पालन करने हेतु किसानों को निम्न सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए।

(क) विशुद्धिकरण

कीटपालन गृह एवं आवश्यक सामग्री जैसे ट्रे, स्टैंड, माउन्टेज, चापिंग बोर्ड आदि को अच्छी तरह पानी से साफ करके सुखा लेने के पश्चात् 2 प्रतिशत फार्मलीन से उनका विशुद्धिकरण कीटपालन करने के एक सप्ताह पहले पूर्ण कर लेना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त सेनीटक, क्लोरोफेक्ट से भी विशुद्धिकरण कर किया जाता है।

(ख) कीटपालन का मौसम –

मौसम मैदानी क्षेत्र

  1. बसंत 1 फरवरी-मार्च
  2. बसंत 2 मार्च-अप्रैल
  3. मानसून 1 अगस्त-सितम्बर
  4. मानसून 2 सितम्बर-अक्टूबर
  5. शरद 1 अक्टूबर-नवम्बर
  6. शरद 2 नवम्बर-दिसम्बर

(ग) प्रजातियाँ –

  1. बसंत एवं पतझड़ ऋतु द्विफसलीय x द्विफसलीय सी.एस.आर. X 2 सी.एस.आर. 4, एस.एच. 6, X एन.बी. 4 डी 2 एन.बी. 4 डी 2 x एस.एच.6, एस.एच. 6 x के.ए.
  2. ग्रीष्म एवं मानसून ऋतु – बहुफसलीय x द्विफसलीय पी.एम. x वाई

तृतीय अवस्था में कीड़ों को मध्यम तथा पौधे के ऊपर से 10 से 15 पत्ती तक, चौथी अवस्था में माध्यम तथा 15 पत्ती से नीचे की पत्तियाँ और पंचवीं अवस्था में खुरदारी तथा पूरी पकी हुई पत्तियाँ खिलनी चाहिए।

कीटपालन ट्रे में कीटों की समुचित फैलाय उनके स्वास्थ्य एवं वृद्धि पर सीधा प्रभाव पड़ता है। कीटों के सघन होने पर उन्हे उचित आहार नही मिल पाता है। जिससे उनका विकास रूक जाता है और कीट छोटे-बड़े हो जाते है। जिनके कारण बीमारी फैलने को सम्भावना बढ़ जाती है।

(च) निर्मोचन (मोल्ट)-

निर्मोचन में कीड़ों के जाने के पूर्व आहार की मात्रा कम करते हुए पत्ती छोटे-छोटे टुकड़ों में देनी चाहिए तथा निर्मोचन के समय कमरे में नमी (आर्द्रता) एकदम कम कर देनी चाहिए और कीड़ों का आहार निर्मोचन से बाहर आने के पश्चात् ही देना चाहिए।

(छ) अरोपण (माउन्टिंग) –

सही सावधानियों को आपरोपण में न बरतने पर 15 से 25 प्रतिशत तक फसल का नुकसान हो जाता है।

  1. रेशम कीट पांचवी अवस्था में मौसम के अनुसार 6 से 8 दिन आहार लेने के उपरान्त पक जाता है।
  2. इस समय से अपना सिर उठाकर दांए बाए कोया बनाने हेतु चलाने लगता है।
  3. पके हुए कीड़ों को उचित समय पर चुनने के पश्चात् चंद्रिका में आरोपित करना चाहिए। आरोपण के लिए चंद्रिका या प्लास्टिक माउन्टेज अत्यन्त उपयुक्त है जिससे कोया अच्छा व सही बनता है तथा आरोपण के दौरान होने वाली हानि की संभावनायें भी कम हो जाती है।

यदि चन्द्रिका या प्लास्टि माउन्टेज न हो तो सरसों की सूखी तुड़ी, युकेलिप्टस के सुखें पत्तों सहित टहनियों, आम के सूखे पत्तों सहित टहनियां, सूखी घास आदि प्रयोग की जा सकती है।

इसके प्रयोग में ये सावधानी आवश्यक है कि ये सभी पूर्णरूपेण सूखे हुए हो। इनके बीच हवा आने जाने की व्यवस्था हो एवं कीड़ों का फैलाव सही हो कीड़ों को कोया बनाने के लिए उचित जगह मिले सकें। आरोपण के समय कमरों को खुला रखना चाहिए तथा तापक्रम एवं नमी ज्यादा नहीं होना चाहिए।

रेशम कीट के रोग (silkworm diseases)

इस क्षेत्र में रेशम कीट को प्रमुख रूप से ग्रेसरी तथा फ्लैचरी से नुकसान होता है। बीमारियों के विस्तृत विवरण निम्न प्रकार है।

ग्रैसरी – Grocery

लक्षण :

  1. इस रोग से ग्रसित कीड़ों के अर्न्तखण्ड में सूजन आ जाती है।
  2. त्वचा के रंग एवं बनावट में परिवर्तन आने के बाद यह फट जाती है जिसे दूध जैसा रस बाहर आने लगता है।
  3. कीड़ा पत्ती नहीं खाता तथा इधर उधर धूमकर दे अथवा चटाई, कमरे की दीवार के किनारे पर चलने लगता है।

कारण :

1. तापमान के दिन में बार-बार अधिक उतार चढ़ाव (तापमान 22-30°C)

2. एकाएक वर्षा से वायुमंडल में नमी बढ़ जाना।

उपचार:

  1. उचित समय पर कीट शैय्या की सफाई।
  2. छोटे/रोगी कीड़ों की नियमित रूप से छटाई।
  3. कीटशैय्या में कीड़ों का सही फैलाव।
  4. कीड़ों को उनकी अवस्था के अनुसार उचित पत्ती देना।
  5. तापक्रम या नमी के अत्यधिक उतार चढ़ाव को न होने देना।
  6. रोगी कीड़ों का एकत्र कर घर से दूर ले जाकर गड्ढ़े में दवा देना चाहिए
  7. सुरक्षा या संजीवनी या विजेता 2.50 से 3.00 किग्रा0 प्रति 100DFLS का इस्तेमाल करना चाहिए।

फ्लैचरी

लक्षण:

  1. इस रोग से ग्रसित कीट पत्ती खाना बन्द कर देता है एवं धीरे-धीरे इसका आकार सिकुड़ने लगता है तथा अन्त में कीड़े की मृत्यु हो जाती है।
  2. कीड़ा छोटा होने के साथ-साथ इसका शरीर नरम हो जाता है और प्रतिदिन कीड़ों की उचित सफाई न करने, अच्छी पत्ती न खिलाने से बीमारी की अधिकता में इसका रंग काला पड़ जाता है।

कारण

तापमान 28-35°C आर्द्रता 55-65 प्रतिशत

उपचार

रोग से बचाव के लिए वे सभी सावधानियां रखनी चाहिये जो ग्रेसरी रोग में आवश्यक है। उपरोक्त बीमारियों के लिए केन्द्रीय रेशम बोर्ड द्वारा रेशम कीट औषधि का निर्माण किया गया है, इसे प्राप्त कर निर्देशानुसार तीसरी, चौथी अथवा पांचवी अवस्था में सफाई के पशचात एवं पत्ती देने के एक घण्टा पूर्व करना चाहिये।

रेशम कीट पालकों के लिए शहतूत की खेती हेतु कार्यकालापों की सूची

जनवरी 1-15 तक

पौधशाला में कलमों को रोपित करना व सिंचाई वृक्षारोपण हेतु पौधों को लगाना व सिचाई।

जनवरी 16-31 तक

खेतों में गोबर का खाद देना, तथा निराई-गुड़ाई।

फरवरी 1-15 तक

निराई, रासायनिक उर्वरक देना, आवश्यकतानुसार सिंचाई।

फरवरी 16-28 तक

पौधशाला व खेतों की देखरेख, निराइ आवश्यकतानुसार सिचाई, चाकी कीटापालन

मार्च 1-16 तक

पौधशाला की निराई व सिंचाई, प्रौढ़ावस्था का कीटपालन।

अप्रैल 16 से अप्रैल 15 तक

ग्रीष्म फसल हेतु पत्ती तोड़ना, पौधशाला में रासायनिक खाद उर्वरक व पानी देना। ग्रीष्मफसल की चाकी कीटपालन।

मई 16 से जून 15 तक

पौधशाला व खेती की निराई, गुड़ाई, सिचाई।

जून 16 से जुलाई 31 तक

पौधशाला से पौधे निकालना, खेत में पौधे लगाना, पौधशाला में तैयार करना व कलमें लगाना, प्रथम वर्ष के पौधों को रासायनिक उर्वरक देना, पुराने पौधों को कटाई-छटाई और निराई-गुड़ाई।

अगस्त 1 से 15 तक

कटाई-छटाई की गयी खेतों में रासायनिक खाद देना, निराई-गड़ाई।

अगस्त 16 से सितम्बर 15 तक

निराई-गुड़ाई, पौधशाला की देखरेख, मानसून फसल हेतु पत्ती तोड़ना।

सितम्बर 16-30 तक

पतझड़ फसल हेतु पत्ती तोड़ना, पौधशाला की देखरेख ।

अक्टूबर 1-15 तक

पत्ती तोड़ना, पौधशाला में यूरिया देना।

अगस्त 16 से 15 नवम्बर तक

शरद प्रथम फसल हेतु पत्ती तोड़ना, पौधशाला की निराई गुड़ाई, पौधशाला में यूरिया देना।

नवम्बर 16 से दिसम्बर 31 तक

पुराने पौधों की कटाई-छटाई, शहतूत की खेतों की निराई-गुड़ाई व सिंचाईद्व पौधशाला व खेती हेतु जमीन की तैयारी तथा कटाई-छटाई

Arun Kumar

Arun Kumar is a senior editor and writer at www.bhartiyasarokar.com. With over 4 years of experience, he is adept at crafting insightful articles on education, government schemes, employment opportunities and current affairs.

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