भारतीय जनजातियों अथवा बहुपतिविवाह पर टिप्पणी

भारतीय जनजातियों अथवा बहुपतिविवाह पर टिप्पणी

या विवाह को परिभाषित कीजिए। जनजातीय समाजों में विवाह सम्बन्धी निषेधों का वर्णन कीजिए। (Comment on Indian tribes or polyandry or define marriage)

या

प्र०-जनजातीय समाज में विवाह

उत्तर – विवाह प्रत्येक समाज चाहे वह आदिम हो सभ्य, समाज को संस्कृति का एक आवश्यक अंग होता है क्योंकि यह वह साधन है जिसके आधार पर समाज की प्रारिम्भक इकाई ‘परिवार’ का निर्माण होता है। परिवार बसाने के लिए दो या अधिक स्त्री-पुरुष में आवश्यक संबंध जिसमें यौन संबंध सम्मलित है। स्थापित करने और उसे स्थिर रखने की संस्थात्मक व्यवस्था प्रत्येक समाज में पाया जाता है जिसे बिना कहते है।

विवाह की परिभाषा बोगार्डस (Bogardus) के शब्दों में विवाह स्त्री और पुरुष को पारिवारिक जीवन में प्रवेश करवाने की एक संस्था है।”

वेस्टरमार्क (Bogardus) के अनुसार “विवाह एक या अधिक पुरुषों का एक सा अधिक स्त्रियों के साथ होने वाला वह संबंध है जिसे प्रथा या कानून स्वीकार करता है और जिसमें विवाह करने वाले व्यक्तियों के और उससे पैदा हुए सम्भावित बच्चों के बीच एक दूसरे के प्रति होने वाले अधिकारों और कर्तव्यों का समावेश होता है।

विवाह के उद्देश्य– विवाह परिवार की आधारशिला है और परिवार में ही बच्चे का समाजीकरण और लालन पालन होता है। समाज की निरन्तरता विवाह एवं परिवार से ही सम्भव है। विवाह नातेदारी का भी आधार है। विवाह के कारण ही कई नये संबंधो का जन्म होता है। विवाह से दोनो पक्षों के लोगों में वैवाहिक संबंध स्थापित होते है जैसे-एक व्यक्ति दमाद, जीजा, फूफा, मौसा आदि बनता है तो स्त्री पत्नी बहू भाभी आदि बनती है। विवाह का आर्थिक उद्देश्य भी होता है। आदिवासियों में आर्थिक हितों की रक्षा के लिए एवं भरण पोषण के लिए भी विवाह जरूरी है। विवाह का उद्देश्य धार्मिक कार्यों की पूर्ति भी है जैसे कि हिन्दुओं में।

जनजातियों में विवाह के प्रकार-

विवाह में सम्मिलत होने वाले औथू की संख्या में आधार पर – विवाह के प्रमुख दो भेद है-

इन सभी का यहाँ पर उल्लेख करेंगे।

एक विवाह (Monogamy) – एक विवाह से तात्पर्य है एक

समय में एक व्यक्ति एक ही स्त्री से विवाह करें। एक विवाह वह नियम है जिसके अन्तर्गत एक जीवन साथी के जीवित रहते हुए कोई स्त्री अथवा पुरुष दूसरा विवाह नहीं कर सकता। भारत की अधि कांश जनजातियों में विवाह का यहीं नियम पाया जाता है।

बहु विवाह (Polygamy) एक पति या पत्नी के जीवित रहते हुए अन्य स्त्री या पुरुष से विवाह करना बहु विवाह कहलाता है। इसके निम्न उपभेद है-

बहुपति विवाह (Polyandry) बहुपति विवाह वह विवाह है जिसमें एक पत्नी के साथ दो या अधिक पुरुषों का विवाह होता है। बहुपति विवाह की परिभाषा करते हुए रिवर्स लिखते है. “एक स्त्री का कई पतियों के साथ विवाह संबंध बहुपति विवाह कहलाता है।” भारत में तिब्बत, देहरादून, जोनसार, बाबर परगना तथा शिमला की पहाड़ियों में वाली जनजातियों बहपुति प्रथा प्रचलित है।

बहुपति विवाह के भी दो रूप है एक वह जिसमें एक स्त्री के सभी पति आपस में भाई होते हैं। यह प्रथा तिब्बत में है। मैं क्लैनन ने इसे तिब्बती बहुपति प्रथा कहा। इसे भ्रातृक बहुपति प्रथा के नाम से पुकारा जाता है। खस टोडा, एवं कोटा लोगो में भ्रातृक बहुपति प्रथा प्रचलित है। आभ्रात बहुपति विवाह में स्त्री के पतियों का आपस में भाई होना आवश्यक नहीं है।

बहुपत्नी विवाह (Polygyny) एक पुरुष का अनेक स्त्रियोंसे विवाह बहुपत्नी विवाह है। आर्थिक कठिनाइयों के कारण सामान्य रूप से बहुपत्नी विवाह भारत की जनजातियों में नही किया जाता जनजातियों में धनी व्यक्ति अधिकतर बहुपत्नी विवाह करते है। नागा, गोंड, बैगा, टोडा तथा मध्यभारत के कुछ जनजातियों मेंबहुपत्नी प्रथा पायी जाती है।

समूह विवाह (Group Marriage) समूह विवाह में पुरुषों का एक समूह स्त्रियों के एक समूह से विवाह करता है और समूह का प्रत्येक पुरुष समूह की प्रत्येक स्त्री का पति होता है। परिवार और विवाह की प्रारम्भिक अवस्था में यह स्थिति रही होगी ऐसा उ‌द्विकासवादियों की धारणा है। यह प्रथा आस्ट्रेलिया की जनजातियों में पायी जाती है जहां एक कुल की सभी पुत्रियां दूसरे कुल की भावी पत्नियां समझी जाती है। वेस्टमार्क का कहना है कि ऐसे विवाह भारत, तिब्बत एवं लंका के बहुपति विवाह प्रथा वाले समाजों में पाये जाते है।

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