महादेवी वर्मा की जीवन परिचय, हिंदी साहित्य में योगदान

By Arun Kumar

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महादेवी वर्मा जीवन-परिचय

महादेवी वर्मा का जन्म फर्रुखाबाद (उ०प्र०) के एक शिक्षित परिवार में सन् 1907 ई० में हुआ। इनके पिता श्री गोविन्द वर्मा भागलपुर (बिहार) के एक कॉलेज में प्रधानाचार्य थे तथा माता श्रीमती हेमरानी देवी धार्मिक स्वभाव की थीं। इनकी माताजी को हिन्दी साहित्य में विशेष रुचि थी। कभी-कभी वह कविता भी लिखा करती थीं। इस प्रकार महादेवी वर्माजी को साहित्य- अनुराग पैतृक रूप में मिला था। इनके ये संस्कार अवसर पाते ही विकसित हो उठे।

परिचय: एक दृष्टि में

नाममहादेवी वर्मा
पिता का नामश्री गोविन्द वर्मा
जन्मसन् 1907 ई०
जन्म-स्थानफर्रुखाबाद (उ०प्र०)
शिक्षाएम०ए० (संस्कृत)
सम्पादनचाँद (पत्र)
भाषा-शैलीभाषा– ब्रजभाषा व खड़ीबोली।
शैली-मुक्तक, चित्र, प्रगीत, ध्वन्यात्मक, सम्बोधन, प्रश्न
प्रमुख रचनाएँहिमालय, मेरा परिवार, यामा, ध्वन्यात्मक, सम्बोधन, प्रश्न। अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, सप्तपर्णा आदि
निधनसन् 1987 ई०
साहित्य में स्थानछायावादी कवियों में अग्रणीय तथा
‘आधुनिक युग की मीरा’ के नाम से प्रसिद्ध हिन्दी-साहित्य में अमर स्थान |

महादेवीजी ने सन् 1933 ई० में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में संस्कृत विषय में एम०ए० किया और उसी वर्ष प्रयाग महिला विद्यापीठ’ की प्राचार्य नियुक्त हो गईं। इस पद पर कार्य करते हुए इन्होंने कुछ समय तक ‘चाँद’ नामक पत्र का सम्पादन किया। इनके जीवन पर महात्मा गांधी का और इनकी कला- साधना पर कवि गुरुदेव रवीन्द्रनाथ का विशेष प्रभाव पड़ा। भारत सरकार ने इन्हें ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया। सन् 1983 ई० में महादेवीजी को इनके काव्य ग्रन्थ ‘यामा’ पर ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ प्राप्त हुआ और इसी वर्ष उत्तर प्रदेश सरकार ने इनको एक लाख रुपये का ‘भारत भारती पुरस्कार’ देकर इनकी साहित्यिक सेवाओं का सम्मान किया। सन् 1987 ई० में महादेवीजी का निधन हो गया।

साहित्यिक-परिचय

महादेवीजी का स्वभाव अत्यन्त शान्त, सरल और मधुर था। इन्हें साहित्य में रुचि तथा काव्य के जन्मजात संस्कार प्राप्त हुए थे। सर्वप्रथम इनकी रचनाएँ ‘चाँद’ पत्रिका में प्रकाशित हुई। इसके बाद महादेवीजी ‘चाँद’ की सम्पादिका भी रहीं। इन्होंने प्रयाग में ‘साहित्यकार संसद’ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य साहित्यकारों की सहायता करना और उनकी रचनाओं को प्रकाशित करना था। इनके जीवन का उद्देश्य साहित्य सेवा और जन सेवा रहा। इन्हें काव्य रचना ‘नीरजा’ और ‘यामा’ पर क्रमशः सेकसरिया और मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्रदान किए गए। चित्रकला और संगीत में महादेवीजी को विशेष रुचि थी। इसका प्रमाण इनकी कविताओं में भी दिखाई देता है। महादेवीजी का काव्य संगीत की मधुरता लिए हुए है। ये अपनी कविताओं में चित्रकला जैसे शब्दचित्र उपस्थित कर देती थीं।

कृतियाँ– ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्यगीत’, ‘दीपशिखा’, ‘यामा’ इन संग्रहों के अतिरिक्त महादेवी वर्मा की ‘सप्तपर्णा’ और ‘हिमालय’ काव्य कृतियाँ हैं। इन्हीं कविता संग्रहों में कुछ गीतों के संकलन ‘संधिनी’ और ‘आधुनिक कवि’ । , शीर्षक से प्रकाशित हो चुके हैं। गद्य में ‘अतीत के चलचित्र’, ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’, ‘मेरा परिवार’ आदि । प्रसिद्ध रचनाएँ है।

भाषा-शैली : भाषा-काव्य के क्षेत्र में महादेवीजी की प्रारम्भिक रचनाएँ ब्रजभाषा में हैं, किन्तु बाद में खड़ी बोली पर ही आ गईं और उसी में अपना स्थान बनाया। इनकी खड़ीबोली शुद्ध, मधुर और कोमल है। इसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है। भाषा को मधुर और कोमल बनाने के लिए कहीं-कहीं शब्दों को बदल दिया गया है। कहीं पर शब्द मनमाने ढंग से तोड़-मरोड़ दिए गए हैं। सूक्ष्म भावनाओं का चित्रण होने के कारण इनकी भाषा में सांकेतिकता और संवेदनात्मकता है।

शैली – महादेवी जी ने अपने काव्य की रचना मुक्तक रूप में की है। इन्होने अपने काव्य में विविध शैलियों को अपनाया है। चित्र-शैली का इनके काव्य में सुन्दर रूप देखने को मिलता है। इसमें कवयित्री ने भावों को अनेक स्थानों पर चित्रात्मक रूप में प्रस्तुत किया है। महादेवीजी को इस शैली के प्रयोग में पूर्ण सफलता प्राप्त हुई है। इनकी दूसरी शैली प्रगीत शैली है। इस शैली का प्रयोग इनके काव्य में बड़े व्यापक रूप में देखने को मिलता है। इस शैली में संगीत की प्रधानता है, किन्तु इसमें लय और ताल का सुन्दर निर्वाह नहीं हुआ है। यह ध्वन्यात्मक शैली भी कही जा सकती है। इस शैली में भक्तिकाल से चले आनेवाले गीतों की शैली का उत्कर्ष रूप देखने को मिलता है। इन दोनों शैलियों के अतिरिक्त महादेवीजी ने सम्बोधन शैली और प्रश्न शैली का प्रयोग भी अपने काव्य में किया है।

इन्होंने अपना लगभग समस्त काव्य गीतों में लिखा है। इसके अतिरिक्त कतिपय मात्रिक छन्दों का प्रयोग भी किया है। इनके गीतों में सरसता, कोमलता, मधुरता, संगीतात्मकता तथा प्रवाह आदि सभी गुण विद्यमान हैं।

हिन्दी साहित्य में स्थान– महादेवी वर्मा हिन्दी-साहित्य की उन विभूतियों में से हैं, जिन पर सभी को गर्व है। इनका काव्य वेदना, रहस्य, प्रकृति-चित्रण के साथ लाक्षणिकता, प्रतीकात्मकता और कोमलकान्त पदावली का सुन्दर समन्वय हैं। महादेवी का साहित्यिक- अवदान अनुपम है।

निष्कर्ष

भारतीय सरकार में आपका स्वागत है दोस्तों हम इस पोस्ट के माध्यम से महादेवी वर्मा जी द्वारा हिंदी साहित्य में उनके योगदान एवं यूपी बोर्ड में अक्सर पूछे जाने वाले महत्वपूर्ण बिंदुओं पर इस पोस्ट के माध्यम से आप तक पहुंचाने का कार्य कर रहा हूं अगर आपको पोस्ट से जानकारी मिली हो तो इसे अधिक से अधिक शेयर करें।

FAQ

Q. महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएं कौन सी है?

A. ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्यगीत’, ‘दीपशिखा’, ‘यामा’

Q.महादेवी वर्मा को भारत रत्न कब मिला?

A. सेकसरिया पुरस्कार (1934), द्विवेदी पदक (1942), भारत भारती पुरस्कार (1943), मंगला प्रसाद पुरस्कार (1943) पद्म भूषण (1956), साहित्य अकादेमी फेल्लोशिप (1979), ज्ञानपीठ पुरस्कार (1982), पद्म विभूषण (1988

Q. महादेवी वर्मा कौन सा काव्य है?

A. महादेवी वर्मा रहस्यवाद और छायावाद की कवयित्री थीं।

Arun Kumar

Arun Kumar is a senior editor and writer at www.bhartiyasarokar.com. With over 4 years of experience, he is adept at crafting insightful articles on education, government schemes, employment opportunities and current affairs.

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