महात्मा गांधी की पूरी कहानी, लेख और भारत को आजादी दिलाने में क्या रहा योगदान, जाने…

महात्मा गाँधी (Mahatma Gandhi)भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आधुनिक भारत के महान जय नायक, समाजसुधारक और दार्शनिक थे। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबन्दर (गुजरात) में हुआ था।

उन्होंने अपना व्यावसायिक जीवन 1891 ई. में मेरिस्टर के रूप में प्रारम्भ किया। महात्मा गाँधी को एक मुकदमे की पैरवी के लिए दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहाँ उन्होंने देखा कि की रंगभेद की बहुत से काले लोग और भारतीय पीड़ित थे। गांधी ने इसका विरोध किया। गांधीजी वर्ष 1915 में भारत लौटे, जब तक ने यहाँ प्रसिद्ध हो चुके थे। यहाँ पर भारतीयों कोदशा को देखकर भारतीय आन्दोलन में शामिल हो गए।

प्रथम विश्वयुद्ध (1914-18) के बाद जब अंग्रेज ने भारतीयों पर अत्याचार जारी रखा, तो गांधीजी ने अहिंसा पर बल देकर जनता के उग्र आन्दोलन को हिंसात्मक होने से बचाया। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व भी संभाला था। उन दिनों राष्ट्रीय आन्दोलन की प्रमुख संस्था कांग्रेस थी। अग्रेजों ने वर्ष 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध में भारतीयों को उनकी इच्छा के विरुद्ध शामिल कर लिया, जिसका गांधी ने विरोध किया। गांधीजी ने वर्ष 1942 में इसके विरोध में भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया। 18 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतन्त्रता मिली परन्तु भारत दो टुकड़ो में विभाजित हो गया। महात्मा गांधी ने धार्मिक सहिष्णुता और एकता का प्रचार जारी रखा। 30 जनवरी, 1946 को नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को गोली मारकर हत्या कर दी।

विकास का सिद्धान्त

गांधीजी विकास की ऐसी अवधारणा के विरुद्ध थे जिसका लक्ष्य भौतिक इच्छाओं को बढ़ाना और उनकी पूर्ति के उपाय ढूंढना हो। ये मनुष्य के चरित्र को इतना उन्नत करना चाहते थे कि वह भौतिक इच्छाओं का दमन करके अपने मन को वश में कर ले। गांधीजी ने यह शिक्षा दी कि मनुष्य को भौतिक वस्तुओं का उतना ही उपयोग करना चाहिए, जितना उसके शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अनिवार्य हो। अधिक चाह की मोह माया में मनुष्य भ्रम के जाल में फंस जाते हैं, जिससे मनुष्य की संकल्प शक्ति नष्ट हो जाती है। दूसरी ओर, इच्छाओं को संयत रखने से निम्न दो उद्देश्यों की प्राप्ति होती है।

सामाजिक न्याय को बल मिलना

इसमें मनुष्य के सामाजिक न्याय को बल मिलता है, क्योंकि संसाधन सीमित हैं, ऐसे में मनुष्य को अपनी इच्छाओं को भी सीमित रखना चाहिए। यदि मनुष्य अपनी इच्छाओं पर लगाम नहीं लगाता, तो यह धरती पर संसाधनो का अभाव उत्पन्न कर देगा। इससे दूसरे लोग अपनी न्यूनतम आवश्यकत्ता को पूरा नहीं कर पाएंगे। ऐसे में गांधीजी के सामाजिक न्याय के सिद्धान्त के अनुसार, मनुष्य को ऐसा कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए जो समाज के लाखो-करोड़ों लोगों को सुलभ न हो सके।

मनुष्य का नैतिक चरित्र उन्नत होना

गांधीजी ने मनुष्य को अपनी आवश्यकता की पूर्ति के अतिरिक्त अधिशेष ग्रहण पर नियन्त्रण की बात की है। ऐसे में मनुष्य जब अपनी इच्छाओं पर नियन्त्रण स्थापित कर लेता है, तो उसकी अन्तरात्मा शुद्ध हो जाती है। उसकी दृष्टि में अपने-पराए का अन्तर ही समाप्त हो जाता है। गांधीजी ने विकास का जो मार्ग दिखाया है, वह मनुष्य के स्वभाव और चरित्र को नए साँचे में ढालने पर बल देता है जिससे मनुष्य में उच्च नैतिक चरित्र का निर्माण होता है।

पश्चिमी सभ्यता का विरोध

महात्मा गांधी भारत के विकास के लिए उसे पश्चिमी सभ्यता में ढालना नहीं चाहते थे। उनका विश्वास था कि पश्चिमी सभ्यता मनुष्य को उपभोक्तावाद का रास्ता दिखाकर नैतिक पतन की ओर ले जाएगी। नैतिक उत्थान कारास्ता उन्होंने आत्मसंयम और त्याग भावना से अपनाने को कहा है। गांधीजी ने यंग इण्डिया में वर्ष 1927 में कहा है कि, “मैं यह नहीं मानता कि इच्छाओं को बढ़ाने या उनकी पूर्ति के साधन जुटाने से संसार अपने लक्ष्य की ओर एक कदम भी बढ़ा पाएगा मनुष्य अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए अन्धी दौड़ चल रहा है। मैं इसे शैतानी सभ्यता कहता हूँ।” गांधीजी ने हिन्द स्वराज में लिखा है कि आधुनिक सभ्यता दिखावटी रूप से समानता के सिद्धान्त को सम्मान देती है, परन्तु यथार्थ के स्तर पर प्रजातिवाद (Racism) को बढ़ावा देती है।

इसमें अश्वेत जातियों को मानवीय गरिमा से वंचित रखा जाता है। कहीं उन्हें दास बनाकर और कहीं बन्धुआ मजदूर बनाकर रखा जाता है। गाँधीजी के अनुसार, आधुनिक सभ्यता के अन्तर्गत चेतन की तुलना में जड़ को और नैतिकता की तुलना में राजनीति एवं अर्थशास्त्र को ऊंचा स्थान दिया जाता है। गांधीजी ने इस प्रवृत्ति का घोर विरोध किया है।

गाँधीजी का भावी समाज

गाँधीजी ने शारीरिक श्रम के सिद्धान्त के अन्तर्गत यह शिक्षा दी है कि प्रत्येक मनुष्य को शारीरिक श्रम करके अपने उपभोग की वस्तुओं के उत्पादन में योगदान देना चाहिए। गाँधीजी ने प्रौद्योगिकी प्रधान उद्योगों के स्थान पर श्रम- प्रधान उद्योगों को वरीयता दी है। उन्होंने पुंज-उत्पादन के स्थान पर जनपुंज द्वारा उत्पादन की प्रणाली को उचित ठहराया है। उन्होंने विशेषकर कुटीर उद्योगों का समर्थन किया है।

प्रशासन के स्तर पर गाँधीजी ने विकेन्द्रीकरण का समर्थन किया। उन्होंने यह भी विचार दिया है कि आदर्श राज्य छोटे-छोटे आत्मनिर्भर ग्राम समुदायों का संघ होगा। ग्राम समुदाय का संचालन ‘पंचायत’ द्वारा होगा, जिन्हें प्रतिवर्ष निर्वाचित किया जाएगा। ग्राम पंचायतों को विजयी, कार्यकारी और न्यायिक शक्तियाँ प्राप्त होंगी। समाज में एकजुटता बनाए रखने के लिए मुख्यतः नैतिक सत्ता और जनमत का सहारा लिया जाएगा।

गाँधीजी ने राज्य की व्यवस्था में विस्तृत अधिकारी तन्त्र की आवश्यकता नहीं समझी, क्योंकि अधिकांश निर्णय प्रक्रिया विकेन्द्रीकृत होगी। समाज में भूख, अपराध नहीं रहेगा, तो पुलिस की विशेष आवश्यकता नहीं रहेगी। समाज के लोग ही बारी-बारी से प्रशासन का कार्य सँभालेंगे। गाँधीजी ने मनुष्य को उपभोग के नियमन और इच्छाओं के नियन्त्रण का जो सन्देश दिया है, वह आज के युग में मानवता के भविष्य की रक्षा के लिए पर्यावरणवाद का महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त बन चुका

गाँधीजी की प्रमुख कृतियाँ.

इण्डियन ओपिनियन, 1903

यंग इण्डिया, 1919

हिन्द स्वराज, 1909

दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह, 1924

आत्मकथा-सत्य के साथ मेरे प्रयोग की कहानी, 1927

मेरे सपनों का भारत, 1927

हरिजन, 1933

आरोग्य की कुँजी, 1948

निष्कर्ष

भारतीय सरोकार में आपका स्वागत है इस पोस्ट के माध्यम से महात्मा गांधी से संबंधित पूरी जानकारियां आपको मिल चुके होंगे निश्चित रूप से इस पोस्ट के माध्यम से महात्मा गांधी से संबंधित पूरी जानकारी आपको मिल चुकी होगी।

FAQ

Q. महात्मा गांधीजी का जन्म कब हुआ?

A. जन्म 2 अक्टूबर 1869

Q. गांधी जी के नारे कौन कौन से हैं?

A. करो या मरो। भारत छोड़ो।जहां प्रेम है वहां जीवन है। भगवान का कोई धर्म नहीं है।जहां पवित्रता है, वहीं निर्भयता है।

Q. गांधी क्यों प्रसिद्ध है?

A. 1922 में असहयोग आंदोलन और 1930 में नमक मार्च और बाद में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में देश का नेतृत्व किया।

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