मैक्स वेबर (Max Weber) का जीवन परिचय
प्रसिद्ध समाजशास्त्री, दार्शनिक, जुरिस्ट तथा राजनीतिक अर्थशास्त्री के साथ प्रशासनिक चिंतक के रूप में विख्यात मैक्स वेबर का जन्म 21 अप्रैल, 1864 को जर्मनी के एफुटु (Effutu) शहर में हुआ था। ये बचपन से समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र जैसे विषयों में रुचि रखते थे।
1882 ई. में वेबर ने एक विधि छात्र के रूप में हीडलवर्ग विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। आगे चलकर इन्होंने जूनियर वकील के रूप में कार्य करते हुए पढ़ाई जारी रखी। 1896 ई. में इन्होंने रेफरेंडर परीक्षा पास की, जो ब्रिटिश तथा अमेरिकी कानूनी प्रणाली में बार एसोसिएशन की परीक्षा के समकक्ष थी। 1889 ई. में इन्होंन वाणिज्यिक भागीदारी के कानूनी इतिहास पर शोध प्रबन्धक लिखकर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। ये बर्लिन के विश्वविद्यालय में विधि संकाय के प्रोफेसर बने। तत्पश्चात् ये अर्थशास्त्र का प्रोफेसर बनने के साथ सोशल पॉलिटिक्स में शामिल हुए। इसके अतिरिक्त इन्होंने प्रशासनिक क्षेत्र में अपना उल्लेखनीय योगदान दिया। प्रथम विश्वयुद्ध में भी इनका योगदान रहा। 14 जून, 1920 को इनकी मृत्यु हो गई।
जर्मन समाजशास्त्री मैक्स वेवर का समाजशास्त्रीय विश्लेषण में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। मैक्स वेबर समाजशास्त्र के एक ऐसे प्रत्यक्षवादी विद्वान् हैं जिन्होंने अध्ययन विधि को अपने समाजशास्त्रीय विश्लेषण से प्रभावित किया है।
समाजशास्त्र की व्याख्या करते हुए मैक्स वेबर ने कहा है कि समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो सामाजिक क्रिया का निर्वाचनात्मक (Interpretative Understanding) बोध कराता है जिसके कारण सामाजिक क्रिया तथा इसकी गतिविधियों तथा परिणामों को कारण सहित व्याख्या सम्भव हो पाती है।
मैक्स वेबर का समाजशास्त्रीय सिद्धान्त(Sociological Principles of Max Weber)
मैक्स वेबर ने सामाजिक क्रियाओं के अध्ययन पर विशेष बल दिया है। इनका मानना था की समाज का अध्ययन मूल्य से मुक्त नहीं हो सकता। सामाजिक क्रियाएँ समाजशास्त्र का एक केन्द्रीय अध्ययन विषय है। इसका उद्देश्य सामाजिक क्रिया का अर्थपूर्ण अध्ययन करने से है।
वेबर ने सामाजिक क्रिया का विश्लेषण करते हुए सामाजिक क्रिया को शारीरिक क्रिया से अलग बताया है। उनका मानना है कि कोई भी शारीरिक क्रिया सामाजिक क्रिया का रूप नहीं ले सकती, क्योंकि सामाजिक क्रिया में दो या दो से अधिक व्यक्ति के बीच सम्बन्ध पाया जाना आवश्यक है। व्यक्तियों के बीच अन्तःक्रिया के कारण एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के सम्पर्क में आकर अपने व्यवहार को नियन्त्रित करता है। ऐसे में उन्हें एक-दूसरे को सांस्कृतिक तथा सामाजिक पृष्ठभूमि का ज्ञान होता है। जिसके कारण उनके बीच सम्बन्ध विकसित होते हैं। यदि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से मिलने पर हाथ मिलाकर उसका अभिवादन करता है, तो दूसरा व्यक्ति भी हाथ जोड़कर अभिवादन करता है। इसलिए समाज में व्यक्ति को जो आदते विकसित होती है, वे प्रत्येक समाज में अलग-अलग होती हैं।
समाजशास्त्रीय सिद्धान्त से सम्बन्धित आदर्श विधि
मैक्स वेबर ने अपनी अध्ययन विधि में ‘आदर्श विधि’ को अवधारणा का भी वर्णन किया है, जिसमें उन्होंने बताया है कि आदर्श प्रारूप एक विश्लेषणात्मक अवधारणा (Analytic Construct) है। इसके द्वारा एक शोधकर्ता समाज में समान तथा असमान प्रवृतियों की पहचान करता है। वेबर का कहना है कि आदर्श विधि न तो सांख्यिकी रूप से एक औसतन इकाई है और न ही यह एक उपकल्पना (Hypothesis) है।
वह आदर्श विधि को एक मानसिक अवधारणा मानते है, जिसमें एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में बोधगम्य सम्बन्धों को संगठित कर समझने की कोशिश की जाती है। इस प्रकार की परिस्थितियों का निरीक्षण कर इन्होंनेवैज्ञानिक दृष्टिकोण से एक पक्षीय दृष्टिकोण को अपनी विश्लेषणात्मकअवधारणा का आधार बनाया।
आदर्श प्रारूप एक अमूर्त अवधारणा है जिसकी कल्पना शोधकर्ता शोध सेसम्बन्धित समुचित ज्ञान प्राप्त कर करता है। आदर्श प्रारूप का तीन स्तर परवर्णन किया गया है, जो निम्नलिखित है
1. ऐतिहासिक रूप से महत्त्वपूर्ण घटनाओं का आदर्श प्रारूप जिसमें पश्चिमी देश, प्रोटेस्टेण्ट ऐधिक तथा आधुनिक पूँजीवाद को आदर्श प्रारूप में चित्रित किए जाने की प्रक्रिया है।
2. आदर्श प्रारूप ऐतिहासिक तथ्यों के अमूर्त तत्त्वों का विश्लेषण भी करता है जिसको अनेक ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक सन्दर्भ में देखा जा सकता है जैसे-‘अधिकारी तन्त्र’ तथा ‘सामन्तवाद’
3. आदर्श प्रारूप विवेकपूर्ण तथा तर्कसंगत तरीके से एक विशेष प्रकार के व्यवहार द्वारा तैयार किया जाता है। वेबर का कहना था कि आदर्श प्रारूप का अर्थ नैतिक मूल्यों से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए और न ही इसे आदर्श क्रिया के रूप में देखा जाना चाहिए।
समाजशास्त्रीय सिद्धान्त से सम्बन्धित पूँजीवाद
वेबर ने पूँजीवादी सोच की व्याख्या करते हुए आधुनिक समाज के लक्षणों की एक सूची तैयार की तथा उन लक्षणों के आधार पर जो पूँजीपति समाज के सामान्य लक्षण थे उन्हें उन्होंने आदर्श रूप में रखा।अनेक सामाजिक क्रियाओं का ऐतिहासिक सन्दर्भ में अध्ययन करने केबाद उन्होंने निम्न चार सामाजिक क्रियाओं का उल्लेख किया है
1. तार्किक क्रियाएं (Rational Actions) तार्किक क्रियाओं से अभिप्राय उन क्रियाओं से है जो तर्क और विवेक पर आधारितः होती है। इन क्रियाओं में साधन तथा लक्ष्य, दोनों में एक विवेकपूर्ण सम्बन्ध स्थापित होता है।
2. मूल्यों पर आधारित क्रियाएँ (Value Oriented Action) यह वह क्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने व्यवहार को अपने मूल्यों की कसौटी पर खरा उतारता है; जैसे—एक जहाज के कैप्टन का डूबते जहाज से उतर कर नहीं भागना।
3. संवेगात्मक क्रियाएँ (Emotional Actions) मनुष्य की संवेगात्मक क्रियाएँ उन क्रियाओं का बोध कराती हैं जो मनुष्य के संवेग पर आधारित होती है। किसी व्यक्ति का धार्मिक विश्वास, उसके परिवार के सदस्यों के साथ उसका सम्बन्ध, उसके सभी संवेगों या संवेदनाओं पर आधारित होता है।
4. परम्परागत क्रियाएं (Traditional Actions) इन क्रियाओं में सामाजिक क्रियाओं तथा परम्परा का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है जिसके कारण व्यक्ति के व्यवहार परम्परा से जुड़े होते हैं। एक संयुक्त परिवार के सदस्य कई धार्मिक कार्यों का पालन परम्परा से जुड़े होने के कारण करते हैं। ठीक उसी प्रकार कुछ सामाजिक परम्पराएँ होती है, जिसका पालन व्यक्ति समाज के सदस्य होने के नाते करते हैं।
वेबर का मानना था कि आधुनिक समाज में जो सामाजिक क्रियाएँ होती हैं, उन सभी सामाजिक क्रियाओं को तार्किक सामाजिक क्रिया से जोड़कर देखा जाना चाहिए। यह आवश्यक नहीं है कि आधुनिक समाज में जिन सामाजिक क्रियाओं को हम देखते हैं, वे सभी तार्किक क्रियाओं के अन्तर्गत आती हो, बल्कि आधुनिक समाज में मूल्यों पर आधुनिक क्रियाएँ संवेगो पर आधारित क्रियाओं के साथ-साथ पम्परागत क्रियाओं की भी व्यवहार में प्रयोग करते देखा जा सकता है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि सामाजिक क्रियाएँ एक स्वतन्त्र रूप में पाई जाने वाली क्रियाएं हैं।
मैक्स वेबर का पद्धतिशास्त्र(Methodology of Max Weber)
समाजशास्त्रीय अध्ययन के सिद्धान्त में वेबर के पद्धतिशास्त्र (Methodology) का महत्वपूर्ण योगदान है। वेबर ने प्राकृतिक विज्ञान एवं समाजशास्त्र में प्राकृतिक घटना एवं सामाजिक क्रिया के आधार पर भेद किया है। प्राकृतिक घटनाएँ न तो अर्थपूर्ण होती है और न ही उसका कोई उद्देश्य होता है, जबकि सामाजिक क्रियाएँ अर्थपूर्ण एवं उद्देश्यपरक होती हैं। प्राकृतिक विज्ञान में सार्वभौमिक नियम पाए जाते हैं, जो सभी समय, स्थानों एवं कालों में समान होते हैं, लेकिन समाजशास्त्रीय नियम में ये विशेषता नहीं पाई जाती है।
वेबर के पद्धतिशास्त्र को विशेषताएं निम्नलिखित है
- वेबर के समाजशास्त्र को निर्वाचनात्मक या अवबोधन समाजशास्त्र कहा जाता है, क्योंकि वेवर ने समाजशास्त्र में सामाजिक क्रियाओं में अर्थपूर्ण अवबोधन पर बल दिया है।
- प्राकृतिक विज्ञान की भाँति वेबर ने सामाजिक घटनाओं को समझने के लिए कार्य-कारण सम्बन्धों के आधार पर व्याख्या करने पर बल दिया।
- वेबर ने तुलनात्मक अध्ययन पद्धति अपनाने पर बल दिया है. क्योंकि इस विधि के द्वारा हम समाज की समानता और असमानता को जात कर सकते हैं।
- वेबर ने घटनाओं के अध्ययन के लिए कुछ चयनात्मक तथ्यों के ही अध्ययन करने पर बल दिया है तथा जो तथ्य उचित नहीं है, उसे छोड़ देने को कहा है।वेबर ने सामाजिक घटनाओं की वस्तुनिष्ठता पर बल दिया है और मूल्यांकनात्मक निर्णयों से दूर रहने की बात की है, क्योंकि मूल्यांकनात्मकअध्ययन वैज्ञानिक अध्ययन नहीं हो सकता है।
- समाजशास्त्र में ‘क्या है’ का अध्ययन होना चाहिए ‘क्या होना चाहिए’ का नहीं। अच्छा-बुरा, सही-गलत, उचित-अनुचित आदि के आधार पर व्याख्यामूल्यांकनात्मक होनी चाहिए, वैज्ञानिक नहीं।
मैक्स वेबर का धर्मशास्त्र(Theology of Max Weber)
समाजशास्त्रीय अध्ययन में वेबर के धर्मशास्त्र (Theology) का योगदान उल्लेखनीय है। उन्होंने विश्व के सभी धर्मों का अध्ययन कर धर्म तथा आर्थिक व सामाजिक घटनाओं के बीच सम्बन्ध दर्शाने का प्रयत्न किया है।
वेबर ने विश्व के छ: प्रमुख धर्म हिन्दू, बौद्ध, इस्लाम, यहूदी, कन्फ्यूशियस एवंईसाई का अध्ययन किया। अध्ययन के पश्चात् उन्होंने यह बताया कि आधुनिक पूँजीवाद केवल पश्चिमी देशों में हो सबसे पहले क्यों आया। इसके लिए उन्होंने विभिन्न धर्मो में पाई जाने वाली धार्मिक आचार पद्धति का तुलनात्मक अध्ययन किया तथा उनका आर्थिक व सामाजिक संगठनों से सम्बन्धों का विश्लेषण किया। मार्क्स की भाँति वेवर भी सामाजिक संरचना एवं सामाजिक जीवन में आर्थिक कारक को ही महत्त्वपूर्ण मानते हैं, परन्तु मार्क्स की भाँति वे आर्थिक कारकों को मानव के सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, साहित्यिक, कलात्मक और दार्शनिक जीवन को निर्धारित करने वाला एकमात्र कारक नहीं मानते हैं।
वेबर ने धर्म की समाजशास्त्रीय विवेचना कर निम्नलिखित निष्कर्ष दिए
- धार्मिक एवं आर्थिक घटनाएँ परस्पर एक-दूसरे पर निर्भर होती हैं। इनमें से किसी एक को निर्णायक मानना उचित नहीं है। ये दोनों एक दूसरे को प्रभावित करती हैं।
- धार्मिक एवं आर्थिक आधार पर किसी घटना की विवेचना नहीं करनी चाहिए, वरन अन्य कारकों का भी ध्यान रखना चाहिए।
- वेबर ने धार्मिक कारक को एक परिवर्तनीय तत्त्व मानकर उसका आर्थिक तथा अन्य सामाजिक घटनाओं पर प्रभाव ज्ञात करने का प्रयत्न किया है।
- वेबर ने सभी धर्मों का उल्लेख न कर केवल उसके आदर्श प्रारूप का उल्लेख किया है। इसी प्रकार उन्होंने अपने आर्थिक कारकों के भी आदर्श प्रारूपों को ज्ञात किया। उन्होंने धर्म के अध्ययन में आदर्श प्रारूप की अवधारणा का प्रयोग किया है।
मैक्स वेबर की रचनाएँ
- द प्रोटेस्टेण्ट एथिक एण्ड द स्पिरिट ऑफ कैपिटलिज्म, 1905
- द रिलीजन ऑफ इण्डिया, 1916
- द रिलीजन ऑफ चाइना, 1916
- द थ्योरी ऑफ सोशियल एण्ड इकोनोमिक ऑर्गनाइजेशन, 1922
- द सिटी, 1922
- द मैथडोलॉजी ऑफ सोशल साइंस
- जनरल इकोनोमिक हिस्ट्री
- द रेशनल एण्ड सोशियल फाउण्डेशन ऑफ म्यूजिक
निष्कर्ष
भारतीय सरोकार की इस लेख को पढ़ने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, इस पोस्ट के माध्यम से मैक्स वेबर का जीवन परिचय, सिद्धांत, पद्धती शास्त्र एवं लेख संबंधी पूरी जानकारी आपको मिल चुकी होगी।
FAQ
Q. मैक्स वेबर का प्रमुख सिद्धांत क्या है?
A. मैक्स वेबर कहते हैं कि, जैसे-जैसे प्रजातंत्र का विस्तार होता है वैसे-वैसे नौकरशाही पर आधारित प्रशासन व्यवस्था की ज़रूरत भी बढ़ती जाती है। वेबर की इन भावनाओं के लिये जूलियन फ्रायड ने लिखा है, ”यह सामान्यत: स्वीकार कर लिया गया है कि प्रजातंत्रीकरण और नौकरशाही साथ-साथ चलते हैं।”
Q. वेबर के अनुसार धर्म क्या है?
A. प्रत्येक समाज की अलग – अलग सांस्कृतिक विशेषताओं पर वेबर ध्यान देते हैं। धर्म को वह उस व्यापक ऐतिहासिक प्रक्रिया का अंग मानते हैं, जिसके अंतर्गत पूँजीवाद, औद्योगीकरण और तर्कसंगति का विकास शामिल हैं। आपने पढ़ा कि किस प्रकार इन चिंतकों के विश्लेषण की इकाइयाँ भिन्न थी।
Q. नौकरशाही कितने प्रकार के होते हैं?
A. तकनीकी रूप में नौकरशाही शब्द का प्रयोग दो अलग-अलग प्रकार से किया जाता है। विलोबी के अनुसार विस्तृत अर्थ में यह एक सेवीवर्ग प्रणाली है जिसके द्वारा कर्मचारियों को विभिन्न वर्गीय पदसोपान जैसे सेक्शन, डिवीज़न, ब्यूरो तथा विभाग में बांटा जाता है।