रज्जब अली का जीवन परिचय, स्वतंत्रता सेनानी.

By Arun Kumar

Updated on:

Advertisements

अंग्रेजों से भिड़े गली-गली, इतिहास में गुम हो गए रज्जब अली

आजमगढ़। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों से लड़कर वीरगति को प्राप्त हुए अमर शहीद रज्जब अली की वीरता की कहानी आज इतिहास के पन्नों में ही सिमटकर रह गयी है। आजाद भारत में किसी ने भी इनकी वीरगाथा को संजोने का प्रयास नहीं किया।

संक्षिप्त परिचय

नामरज्जब अली
जन्म1812
शहीद20 जून 1857
पिताशेख बुधन अली
योगदानस्वतंत्रता सेनानी
वंशजजावेद अली जमीदार

उपेक्षा के चलते इस जांबाज बलिदानी की न तो प्रतिमा लगी और न ही कोई स्मारक बन सका।

जिला मुख्यालय से करीब 12 किमी दूर सदर तहसील क्षेत्र के एक छोटे से गांव बम्हौर के बड़ा पुरा में जमींदार परिवार में शेख रज्जब अली का जन्म 1812 में हुआ था। युवावस्था की दहलीज पर पहुंचते ही शेख रज्जब अली जमींदार बन गए। धीर-धीरे उन्होंने पांच छावनियां बना लीं। बम्हौर, भितरी, बसौना, नीबी व नत्थूपट्टी उनकी छावनी थी।

उस उक्त दौरान अंग्रेजों का जुल्म चरम पर पहुंच गया था। 1837 से 1857 तक अंग्रेजों ने एक लाख एकड़ भूमि को लगान के नाम पर नीलाम कर दिया था। इसके बाद शेख रज्जब अली ने अंग्रेजों को भगाकर देश को आजाद कराने का प्रण ले लिया। अंग्रेजों से मोर्चा लेने के लिए रज्जब अली ने चार हजार नौजवानों की एक सेना बना ली। जब तक वह बरतानिया हुकूमत से टकराने लगे।

खोल दिया था सीधा मोर्चा

रज्जब ने अंग्रेजों के विरुद्ध सीधा मोर्चा खोल दिया था और जनपद में घूम-घूम कर लामबंदी करने लगे। एक दिन अंग्रेजों ने रज्जब के सहयोगी मोहब्बतपुर ग्राम निवासी जगबंधन सिंह को गिरफ्तार कर लिया। जगबंधन की बहन अंग्रेजों की आंखों में धूल झोंककर बम्हौर पहुंच रज्जब अली को सूचना दी।

लाकअप तोड़ सेनानियों को कराया आजाद

रज्जब अली का खून खौल उठा और उन्होंने अपने चार हजार नौजवानों की सेना के साथ आजमगढ़ कोतवाली पर धावा बोल दिया। लाकअप तोड़कर जगबंधन के साथ ही अन्य सेनानियों को भी आजाद करा दिया। कोतवाल ने जब सिपाहियों को फायरिंग का हुक्म दिया तो रज्जब ने उसे घोड़े से नीचे खींच लिया और पटककर मारने लगे। इस बीच अंग्रेजी सेना आ गई। रज्जब अली ने घोड़े पर सवार होकर पलक झपकते ही दर्जनों अंग्रेज सैनिकों के सिर धड़ से अलग कर दिए। इससे अंग्रेजी सेना में भगदड़ मच गई। तभी अंग्रेजों ने फायरिंग शुरू कर दी। फायरिंग से रज्जब अली की सेना बिखर गई और वे मोर्चा लेते हुए मोमरखापुर गांव पहुंच गए।

सिर धड़ से अलग कर तीन दिन तक घुमाया


रज्जब अली का पीछा करते हुए अंग्रेजी फौज ममरखापुर गांव पहुंची। यहां भी रज्जब अंग्रेजी सैनिकों की गर्दन काटते हुए तमसा नदी में कूद गए। तभी अंग्रेजों ने फायरिंग शुरू कर दी। पीठ में गोली लगने पर रज्जब अली ने कहा कि कौन कायर पीठ में गोली मार रहा और घूमकर उन्होंने अपना सीना खोल दिया। तभी कई गोलियां उनके सीने में आ लगीं। इसके बाद भी उन्होंने नदी पार कर ली। अंग्रेजों ने रज्जब की मौत होने के बाद भी उनका सिर धड़ से काटकर अलग कर दिया और एक बांस में टांगकर उसे तीन दिन तक क्षेत्र में घुमाते रहे। जिससे कोई फिर से बगावत करने की हिम्मत न कर सके। 20 जून 1857 को शेख रज्जब अली देश के लिए शहीद हो गए।

बलिदानी के नाम से कब्रिस्तान व स्कूलशेख रज्जब अली के नाम से उनके परपौत्र शेख जावेद उर्फ मुन्ना ने वैरीडीह गांव निवासी समाजसेवी डॉ. शारिक अहमद खां की प्रेरणा से 2007 में बम्हौर में 10 बिस्वा का कब्रिस्तान बनवाया। यहीं स्मारक बनवाया और उस पर एक तोप भी लगवा दी। वह प्रति वर्ष 20 जून को अपने शहीद परदादा रज्जब अली की याद में गोष्ठी व रेस, वालीबाल प्रतियोगिता, कवि सम्मेलन कराते हैं। वे कहते हैं कि सरकार को भी ऐसे शहीद की स्मृति संजोने का प्रयास करना चाहिए। गांव के ही मौलवी असहद ने परपौत्र की इजाजत पर शहीद रज्जब अली के नाम से वर्ष 1990 में हायर सेकेंडरी स्कूल की नींव रखी।

परिवार

शहीद शैख रज्जब अली स्वतंत्र सैनानी के वंशज जावेद अली जमीदार, राणा परवीन पत्नी जावेद अहमद, शैख शाजिया, शैख राशिद, शेख रज्जब अली, शैख अब्दुल करीम, शैख अब्दुल रहीम है।

निष्कर्ष

भारतीय सरोकार में आपका स्वागत है। रज्जब अली की याद में गोष्ठी व रेस, वालीबाल प्रतियोगिता, कवि सम्मेलन लगातार होते रहते हैं। अगर यह पोस्ट पढ़कर आपको अच्छा लगे तो इसे अधिक से अधिक शेयर करें।

FAQ

Q. रज्जब अली कहा जन्म हुआ था?

A. उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में।

Q. रज्जब अली का जन्म कब हुआ?

A. 1812

Arun Kumar

Arun Kumar is a senior editor and writer at www.bhartiyasarokar.com. With over 4 years of experience, he is adept at crafting insightful articles on education, government schemes, employment opportunities and current affairs.

Leave a comment