खासी एकता आन्दोलनों, का कारण

खासी एकता आन्दोलनों के मुख्य कारणों की विवेचना

खासी एकता आन्दोलन

खासी जनजाति ने बाहरी समुदायों द्वारा अपनी पारम्परिक भाषा, वेशभूषा, संस्कृति और सामाजिक मूल्यों को प्रभावित करने के विरोध में स्वतन्त्रता के पश्चात खासी एकता के लिए संगठित होने के उद्देश्य से यह आन्दोलन किया गया था। साखी जनजाति मातृसत्तात्मक है तथा इसकी संस्कृति अन्यजनजातियों से अलग है। ईसाई मिशनरियों के प्रचार-प्रसार ने खासी समाज की सुविधाएं तो प्रदान की लेकिन इनसे खासियों में विभिन्न समस्याएं भी बढ़ने लगी।

पश्चिमीकरण एवं आधुनिकीकरण के प्रभाव ने खासी समाज को अपनी परम्परागत संस्कृति से अलग करना आरम्भ कर दिया। यह अपने पारम्परिक संगीत और ललितकलाओं के प्रति उदासीन होने लगे। धर्म परिवर्तन कर रहे खासी जनजाति के लोगो को चर्च और मिशनरी की सुविधाएं मिलने से उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति में भी परिवर्तन होने पर वहाँ पर धर्म परिवर्तन का बढ़ावा मिलने लगा। ऐसे खासी समाज के लोगो को भय सताने लगा कि कहीं एक दिन हमारी संस्कृति और पहचान ही न समाप्त हो जाय।

खासी जनजाति (Khasi tribe) अपने समाज में धर्म परिवर्तन में होने वाली वृद्धि को देखते हुए यह समझ गयी कि इसाइयों का विरोध करने से कुछ नहीं होगा अतः उन्होंने यह सोचना शुरू कर दिया कि इसाई मिशनरियों से लाभ को प्राप्त करते हुए समान्तर स्तर पर अपनी पारम्परिकता को ही बनाएं रखना चाहिए। इसी नयी दिशा के साथ एकात्मकता के नाम पर खासी समाज ने धर्म की छूट देते हुए अपने सामाजिक मूल्यों, आदशों, वैवाहिक, मान्यताओं, नृत्य संगीत तथा पारिवारिक संगठन को बनाएं रखने की अपील की जिसे इसाई और गैर इसाई सभी खासी लोगो ने स्वीकार किया। इसके खासी संस्कृति संरक्षण के लिए एक नए आन्दोलन की शुरूआत हुई। खासी एकात्मकता आन्दोलनकारियों ने इसाई मिशनरीयो के

लाभ को अस्वीकार न करते हुए भी यह माना कि बाह्य तत्वों के प्रवेश के कारण ही खासी संस्कृति का ह्यास हुआ है। इनका मानना है कि खासी समाज को उन इसाईयों से ज्यादा खतरा है जो धर्म परिवर्तन को प्रोत्साहन देने के लिए यहाँ पर बसे हुए है। साथ ही यह भी महसूस करने लगे है कि बंगाली, सिधी तथा मारवाड़ी यहाँ पर उद्योग धन्धों के नाम पर बसकर खासी समाज की आर्थिक संरचना को नष्ट कर रहे है। अपनी पारम्परिक बिरसात की रक्षा के लिए भी क्षेत्रीय स्तर पर आज भी खासी लोग अपनी शक्ति संरचना को विभिन्न प्रकार के पदो से संचालित कर रहे है। आज भी इनके यहाँ पर मुखिया के निर्णय को ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस प्रकार आजादी के बाद अपनी अस्मिता की पहचान के लिए ही खासी जनजाति ने गोरो जनजाति के साथ मिलकर ‘मेघालय’ नाम से पृथक राज्य के मांग के लिए खासी एकात्मक आन्दोलन प्रारम्भ किया।

FAQ

Q. खासी विद्रोह में क्या हुआ था?

A. 1829 – 33

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