राबर्ट किंग मर्टन लेख, सिद्धांत एवं उनका जीवन परिचय

राबर्ट किंग मर्टन जीवन परिचय – Robert King Merton Biography

राबर्ट किंग मर्टन (4 जुलाई, 1910-23 फरवरी 2003) एक अमेरिकी समाजशास्त्री (American sociologist) थे। इन्होंने अपना अधिकांश समय एक प्रोफेसर के रूप में कोलम्बिया विश्वविद्यालय (Columbia University) में बिताया।

इन्हें वर्ष 1994 में विज्ञान के समाजशास्त्र की स्थापना के लिए राष्ट्रीय पदक से सम्मानित किया गया। इन्हें समाजशास्त्र का संस्थापक पिता माना जाता है। इन्होंने प्रकार्यवाद, अनपेक्षित परिणाम, भूमिका तनाव जैसी अनेक अवधारणाएँ विकसित की। इन्होंने प्रकार्यवाद (functionalism) का सर्वप्रथम उल्लेख अपनी पुस्तक ‘प्रिंसिपल ऑफ सोशियोलॉजी’ (Principles of Sociology) में किया। इन्होंने प्रकार्य के सन्दर्भ में प्रकार्यात्मक विकल्पों की अवधारणा का भी सुझाव दिया।

मर्टन के अनुसार, “समस्याओं की समाजशास्त्रीय व्याख्या करने की आधुनिक पद्धति के रूप में प्रकार्यवादी विश्लेषण एक सर्वाधिक आशाजनक पद्धति है। लेकिन साथ ही साथ सबसे कम विधिवद्ध प्रणाली भी है। यह प्रकार्यवाद एक साथ अनेक बौद्धिक क्षेत्रों में विकसित हो गया है, जिसके फलस्वरूप इसका गहन विस्तार न होकर खण्ड विस्तार हुआ है।” मर्टन ने मैलिनोवस्की, ब्राउन, क्लाइव आदि मानवशास्त्रियों से अपने प्रकार्य की अवधारणा के मूल स्रोतों को ग्रहण किया।

मर्टन ने अपने कार्य सम्बन्धी विश्लेषण में प्रकार्य को पाँच अर्थों में प्रस्तुत किया है

  • प्रकार्य सार्वजनिक उत्सव या सम्मेलन के रूप में।
  • प्रकार्य व्यवसाय के रूप में।
  • प्रकार्य एक सामाजिक पद पर आसीन व्यक्ति के कार्यकलाप के रूप में।
  • गणित शास्त्रीय प्रकार्य ।
  • व्यवस्था को बनाए रखने में सहायक प्राणीशास्त्रीय या सामाजिक कार्यप्रणालियों के रूप में प्रकार्य।

मर्टन ने प्रकार्य के पाँचवें अर्थ को अपनी प्रकार्य की अवधारणा का आधार बनाया। मर्टन के अनुसार, प्रकार्य को प्रतीतिक अनुभवों के रूप में समझना गलत होगा। इसलिए मर्टन ने प्रकार्य के दो आधारभूत अर्थों को स्वीकार किया है

  • एक सावयवी व्यवस्था के रूप में प्रकार्य
  • एक सावयवी व्यवस्था के अन्तर्गत किसी लक्ष्य, उद्देश्य आदि के परिणामोंके रूप में प्रकार्य।

मर्टन की मान्यताएँ

मर्टन के अनुसार, दूसरे प्रकार्यवादी विद्वान् यह विश्वास करते हैं कि प्रामाणिक सामाजिक कार्यकलाप या सांस्कृतिक इकाइयाँ सम्पूर्ण सामाजिक या सांस्कृतिक व्यवस्था के लिए प्रकार्यात्मक होती हैं। इस प्रकार के सभी सामाजिक या सांस्कृतिक तत्त्व या इकाइयाँ समाजशास्त्रीय प्रकार्यों की पूर्ति करते हैं। इस तरह इन्होंने बताया कि प्रकार्य विश्लेषण को समाज के संगठन, संस्थान या समूह तक विस्तारित किया जा सकता है। यद्यपि मर्टन ने इन मान्यताओं या आधारों को संशोधित रूप में स्वीकार करते हुए अन्तिम रूप में अपने कुछ आधारों या मान्यताओं को प्रस्तुत किया है। ये मान्यताएँ निम्नलिखित हैं –

  • प्रकार्यात्मक एकता या संगठन यथार्थ में एक प्रयोग सिद्ध या प्रत्यक्षमूलक संगठन है।
  • सामाजिक रीतियाँ या घटनाएँ एक समूह के लिए प्रकार्यात्मक हो सकती हैं, जबकि दूसरे समूहों के लिए वही रीतियाँ या घटनाएँ अप्रकार्यात्मक हो सकती हैं।
  • सार्वभौमिक प्रकार्यवाद की धारणा में संशोधन आवश्यक है, क्योंकि एक समाज या समूह के जो प्रकार्यात्मक परिणाम हैं, वे दूसरे समाजों या समूहों पर लागू नहीं हो सकते हैं।
  • आर के मर्टन ने दुष्क्रिया को समझाया है। इन्होंने दुष्क्रिया को किसी गतिविधि के नकारात्मक नतीजे बताया। साथ ही सात्मीकरण लाने वाले व्यवहार को विचलन बताया जिसके विश्लेषण में आविष्कार, विधिवाद व रोट्रीटिज्म शामिल होता है। इनके अनुसार, व्यक्तियों समूहों समाज और संस्कृति के लिए सांस्कृतिक पद के विविध मद कार्यात्मक अपरिहार्यता के आधारभूत तत्व के रूप में समाहित पाए जाते हैं।

मर्टन के अनुसार प्रकार्यवाद की अवधारणाएँ

मटन ने प्रकार्यात्मक विश्लेषण के सन्दर्भ में चार अवधारणाओं को विकसित किया है

  • प्रकार्य चे परीक्षित परिणाम जो कि एक व्यवस्था विशेष के अनुकूलन या सामंजस्य को सम्भव बनाते हैं, प्रकार्य कहलाते हैं।
  • अकार्य के निरीक्षित परिणाम जो कि व्यवस्था के अनुकूलन या सामंजस्य को कम करते हैं. अकार्य कहलाते हैं।
  • प्रकट प्रकार्य वे निरीक्षित परिणाम जो कि व्यवस्था के अनुकूलन या सामंजस्य में अपना योगदान देते हैं और जो कि व्यवस्था के अंश ग्रहण करने वालों के द्वारा मान्य तथा इच्छित होते हैं, प्रकट कार्य कहलाते हैं
  • अन्तर्निहित प्रकार्य ये प्रकार्य न तो मान्य होते हैं और न तो इच्छित। अन्तर्निहित प्रकार्य प्रकट प्रकार्य का विलोम है, जिसे कि सचेत रूप में नहीं किया जाता है। व्यवस्था के अंश ग्रहण करने वालों के द्वारा ये प्रकार्य अनजाने में ही हो जाते हैं।

रॉबर्ट किंग मर्टन की प्रमुख पुस्तकें

  • सोशल थ्योरी एण्ड सोशल स्ट्रक्चर
  • फोक्सड इन्टरव्यूह
  • द सोशियोलॉजी ऑफ साइन्स थ्योरीटिकल
  • क्राइमोनोलॉजी
  • फैक्टर डिटरमाइनिंग ह्यूमन बिहेवियर

प्रकार्यवाद की सामान्य आलोचना

समाजशास्त्र में प्रकार्यवाद को डार्विन की खोज के आधार पर प्रस्तुत करने का श्रेय हरबर्ट स्पेन्सर को है। इसके विकास में रेडक्लिफ ब्राउन, नाडेल, मैलिनोवस्की आदि मानवशास्त्रियों ने सहयोग किया, समाजशास्त्र में हम जिस प्रकार्यवाद को देखते हैं, वह केवल प्रकार्यवाद न होकर संरचनात्मक प्रकार्यवाद है अर्थात् इकाइयों के प्रकार्यों का अध्ययन उनकी वास्तविक संरचना को पृथक् करके नहीं, बल्कि संरचनात्मक सन्दर्भ में किया जाता है।

निष्कर्ष

प्रकार्यवाद के समर्थक इकाइयों के प्रकार्यों का अध्ययन उनके संरचनात्मक सन्दर्भ से अलग करके करते हैं। आधुनिक अनुसन्धानों से स्पष्ट है कि संरचनात्मक सन्दर्भ के बिना इकाइयों के प्रकारों की वास्तविकताओं को जाना नहीं जा सकता। प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण तुलनात्मक अध्ययन के लिए उचित नहीं है, क्योंकि यदि दो इकाइयों के प्रकार्यों की तुलना संरचनात्मक सन्दर्भ की अवहेलना करके की जाए, तो ऐसे अध्ययन के निष्कर्ष कभी यथार्थ नहीं हो सकते।

FAQ

Q. रॉबर्ट मर्टन का सिद्धांत क्या है?

A. समस्याओं की समाजशास्त्रीय व्याख्या करने की आधुनिक पद्धति के रूप में प्रकार्यवादी विश्लेषण एक सर्वाधिक आशाजनक पद्धति है। लेकिन साथ ही साथ सबसे कम विधिवद्ध प्रणाली भी है। यह प्रकार्यवाद एक साथ अनेक बौद्धिक क्षेत्रों में विकसित हो गया है, जिसके फलस्वरूप इसका गहन विस्तार न होकर खण्ड विस्तार हुआ है।”

Q. मर्टन के अनुकूलन के 5 तरीके क्या हैं?

A. अनुरूपता, नवीनता, कर्मकांड, पीछे हटने और विद्रोह हैं ।

Q. अनुकूलन लक्षण क्या है?

A. जिसमें जीव तनावपूर्ण स्थिति में पहुचने पर स्वय को उस स्थिति में सहजतापूर्वक रहने के लिये शीघ्र ही अनुकूलित कर लेता है।

Total Time:

Leave a comment