सरयू में कूद पड़े थे इंद्रदेव, अब विराजने जा रहे सबके राम
श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन से रहा है जुड़ाव, अयोध्या में विराजेंगे श्रीराम तो कौड़ीकोल में मनेगी दीपावली
कप्तानगंज, बस्ती: 90 के दशक में जब श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन अपने चरम पर था, उस समय कप्तानगंज थाना क्षेत्र के कौड़ीकोल गांव निवासी इंद्रदेव उपाध्याय अपनी साइकिल से क्षेत्र में इस आंदोलन को संभाल रहे थे।
![](https://bhartiyasarokar.com/wp-content/uploads/2024/01/20240111_113023-1024x789.jpg)
सुबह आरएसएस की शाखाओं पहुंच कर लोगों को इस आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित करते थे। कहते थे जब तक प्रभु श्रीराम का मंदिर ना बन जाए, तब तक हमें चैन से नहीं बैठना है।22 अक्टूबर, 30 अक्टूबर और दो नवंबर 1990 में कार सेवा के दौरान उनकी सक्रिय सहभागिता थी। जीवन भर वह राम मंदिर निर्माण की अलख जागते रहे। दो नवंबर 1990 को कार सेवा के समय कार सेवकों को सहेजने के लिए उनकी ड्यूटी अयोध्या धाम में राम की पैड़ी और पुराने पुल के बीच लगी हुई थी।
![](https://bhartiyasarokar.com/wp-content/uploads/2024/01/IMG-20240117-WA0005.jpg)
जब आंदोलन अपने चरम पर पहुंचा तो पुलिस ने भीड़ पर अंधाधुंध गोलियां चलाना चलाना शुरू किया तो उनसे बचने के लिए इंद्रदेव सरजू नदी में कूद पड़े। हालांकि तैराकी कला जानने के कारण अपनी जाउनकी पत्नी शांति देवी बताती हैं कि काफी उपचार के बाद भी उनका जीवन नहीं बचाया जा सका।1992 के शुरुआत में ही उनकी मृत्यु हो गई। वह बताती हैं कि उस समय उनके तीनों बच्चे संजय, अजय और विजय छोटे-छोटे थे। कभी कभी जब बच्चों की दुहाई देकर मैं उन्हें इन आंदोलनों का हिस्सा बनने से रोकना चाहती थी तो वह कहते थे कि सबके मालिक प्रभु श्रीराम हैं।
वह जैसा चाहेंगे वही होगा। उन दिनों जब श्रीराम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था तो भोर में ही साइकिल लेकरघर से निकल जाते और देर रात तक वापस आते। गांव-गांव जाकर लोगों को राम मंदिर निर्माण के लिए हर स्तर से तैयार रहने को प्रेरित करते। उन दिनों सरकार भी राम भक्तों के विरुद्ध थी, अगर विषम परिस्थितियों को लेकर हम लोग उनको कुछ समझाने का प्रयास करते तो हमेशा यही कहते कि अगर उनकी सेवा में मेरे प्राण भी चले गए तो समझ लेना कि मेरा जीवन धन्य हो गया। आज वह नहीं हैं, लेकिन अब उन जैसे तमाम लोगों के प्रयास सार्थक हो रहे हैं।
प्रभु श्रीराम अपने दिव्य और भव्य मंदिर में विराजने जा रहे हैं। ऐसे में हमारे प्रसन्नता की कोई सीमा नहीं है। 22 जनवरी को हम उनको अपनी श्रद्धांजलि देते हुए अपने घर पर वहां की प्रतिष्ठा कार्यक्रम को दीपोत्सव व पूजन-अर्चन के साथ मनाने का प्रयास करेंगे। इसके बाद जब कभी भी प्रभु बुलाएंगे तो हम अयोध्या धाम जाकर उनका दर्शन करेंगे।