भारत में बाल-अपराध (JUVENILE DELINQUENCY IN INDIA)भारत में बाल अपराध सम्बन्धी आंकड़ों में अनेक कर्मियों हैं। कई बार बाल अपराधियों के अपराध पुनिस में दर्ज नहीं कराए जाते। समाज के समृद्ध एवं धनी लोगों के बच्चों द्वारा किए गए अपराधा का भी साधान उल्लेख नहीं किया जाता, क्योंकि उन्हें आवश्यक संरक्षण प्राप्त है, जयकि गरीवों के बीमा अपराधों के लिए दण्डित किया जाता है।
बाल अपराधों के अनुपयुक्त आंकड़ों के लिए पुलिस की ओर से को पकड़ने में अरुचि, उनका अनुपयुक्त प्रशिक्षण, अक्षमता एवं जनता द्वारा सहयोग काय है।
अतः जितने मुकदमे दर्ज किए जाते हैं, बाल-अपराध (child crime) की संख्या साधारणतः उनसे कई गुना अधिक होती है। प्रति वर्ष भारत में करीब 80 से 90 हजार तक बाल-अपराधियों को न्यायालय के सम्मुख उपस्थित किया जाता है, जो कि बाल अपराधियों की वास्तविक संख्या से काफी कम है।
भारत में बाल-अपराध की निम्नांकित विशेषताएं हैं:
1. भारत में जितने वाल-अपराध प्रति वर्ष किए जाते हैं इनमें से मुश्किल से 2 प्रतिशत ही पुलिस एवं न्यायालय के ध्यान में आते हैं। वर्तमान में भारत में लगभग 16,500 वच्चे प्रतिवर्ष विभिन्न अपराधों के अन्तर्गत पकड़े जाते हैं।
2. भारत में प्रति वर्ष 50 हजार वाल अपराध भारतीय दण्ड संहिता (IPC) के अन्तर्गत और 85 हजार स्थानीय और विशिष्ट कानूनों के अन्तर्गत किए जाते हैं।
3. गांवों की तुलना में बाल-अपराध शहरों में अधिक होता है। शहरी क्षेत्रों में भी बड़े-बड़े शहर जैसे दिल्ली, चेन्नई, मुम्बई, कोलकाता, चण्डीगढ़, कानपुर, आदि में वाल-अपराच अधिक होते हैं।
भारत के 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले 23 नगरों में 1994 में 1,362 वाल अपराध दर्ज किए गए। शहरों में बाल-अपराच अधिक होने के कई कारण है; जैसे वहां जब माता एवं पिता दोनों ही काम पर चले जाते हैं तो घर में बच्चों पर नियन्त्रण रखने वाला कोई नहीं होता, वे आवारागर्दी करने लगते हैं। शहरों में बच्चों से वेश्यावृत्ति में सहायता पहुंचाने, भीख मांगने, आदि का कार्य भी करवाया जाता है।
शहर का भीड़-भाड़ युक्त वातावरण, गन्दी बस्तियां, अश्लील एवं अपराधी चलचित्र, अति सम्पन्नता के प्रति आक्रोश, बेकारी एवं नितान्त गरीबी,आदि वाल-अपराध को प्रोत्साहित करते हैं।
4. लड़कों में लड़कियों की तुलना में वाल-अपराध अधिक पाए जाते हैं। इस अन्तर का कारण यह है कि भारतीय समाज में लड़कियों पर परिवार का नियन्त्रण अधिक होता है। लड़कों में शारीरिक शक्ति की अधिकता, मुक्त वातावरण में रहने तथा बाह्य जीवन में भाग लेने के कारण अपराध करने की प्रवृत्ति अधिक पायी जाती है। नवीन आंकड़े यह बताते हैं कि वाल-अपराध की प्रवृत्ति पिछले 10 वर्षों में लड़कों की तुलना में लड़कियों में दुगुनी रही है। जिस प्रकार के अपराधों में वृद्धि हुई है उनमें चोरी, शराबवृत्ति एवं जुआ खेलने से सम्बन्धित अपराध अधिक हैं।
5. सर्वाधिक बाल-अपराध महाराष्ट्र में (27.9%) और उसके बाद क्रमशः मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब व राजस्थान में होते हैं। सबसे कम बाल-अपराध केरल में होते हैं।
6. भारत में अधिकतर वाल-अपराधों में आर्थिक प्रकृति के अपराध जैसे चोरी, सेंधमारी, झगड़े-फसाद, हत्या एवं राहजनी, आदि होते हैं। 1995 में दण्ड संहिता के अन्तर्गत कुल संज्ञेय अपराधों (9,766) में से सबसे अधिक सम्पत्ति सम्बन्धी थे- चोरी 29.0%, सेंधमारी 13.2%, लूटमार 0.8% और डकैती 0.6%। इसका कारण यहां की गरीबी और परिवार की छिन्न-भिन्न अवस्था, गन्दी बस्तियां, अकाल, बाढ़, बेकारी, आदि हैं। लड़कों द्वारा आर्थिक अपराध अधिक किए जाते हैं जबकि लड़कियों द्वारा यौन सम्बन्धी अपराध । इनके अतिरिक्त अपरहण, धोखाधड़ी, जुआ, शराबवृत्ति, आबकारी एवं रेलवे नियमों से सम्बन्धित वाल-अपराध भी किए जाते हैं।
7. बाल-अपराधी व्यक्तिगत रूप से अपराध कम करते हैं। वे किसी अपराधी गिरोह के साथ मिलकर ही अपराध करते हैं। यह गिरोह उन्हें प्रशिक्षण देता एवं संरक्षण प्रदान करता है।
निष्कर्ष
बाल अपराधों के अनुपयुक्त आंकड़ों के लिए पुलिस की ओर से को पकड़ने में अरुचि, उनका अनुपयुक्त प्रशिक्षण, अक्षमता एवं जनता द्वारा सहयोग काय है।
FAQ
Q. बाल अपराध का मुख्य कारण क्या है?
A. बुद्धि की कमी, संवेगात्मक अस्थिरता तथा संघर्ष मनोस्नायु विकृति, मनोविकृति एवं मनोविकृत व्यक्तित्व
Q. बाल अपराध कितने प्रकार के होते हैं?
A. आम तौर पर, बाल शोषण के चार अलग-अलग मान्यता प्राप्त प्रकार हैं: शारीरिक शोषण, उपेक्षा, यौन शोषण और भावनात्मक शोषण।
Q. भारत का सबसे बड़ा अपराध क्या है?
A. आत्म विश्वास की अभाव पर आत्म हत्या सबसे बड़ा सामाजिक और नैतिक अपराध